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नीतीश के लिए महागठबंधन में नो एंट्री : दबाव की रणनीति कहीं उल्टी न पड़ जाए

नीतीश कुमार को सोच-समझ कर बीजेपी पर दबाव बनाना होगा, वरना दबाव की उनकी रणनीति उल्टी पड़ सकती है.

Amitesh

जेडीयू के प्रधान महासचिव के सी त्यागी के बयान से उनकी झल्लाहट साफ-साफ दिख रही है. त्यागी ने पूर्व डिप्टी सीएम और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के बारे में कहा, ‘वो यूपीए और महागठबंधन के एक छोटे से मुहल्ले के नेता हैं. त्यागी ने कहा कि तेजस्वी अपरिपक्व और असभ्य वक्तव्य देने से बाज आएं. उन्हें आक्रामक वक्तव्य देकर माहौल को उत्तेजित करने का प्रयास नहीं करना चाहिए.’

न्यूज़ 18 से बात करते हुए केसी त्यागी ने कहा है कि ‘नीतीश कुमार को यूपीए में आने के लिए तेजस्वी के पास जाना पड़ेगा, वो हमारी ज़िंदगी का आखिरी दिन होगा.’


नीतीश पर हमले से नाराज जेडीयू

त्यागी के तेवर से साफ है कि जेडीयू अपने राष्ट्रीय अध्यक्ष और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर तेजस्वी यादव के बयान से काफी नाराज हैं. ऐसा होना लाजिमी भी है, क्योंकि हमला पार्टी के सबसे बड़े नेता पर हुआ है. पार्टी के चेहरे को धूमिल करने की कोशिश की गई है. तो त्यागी का सख्त तेवर दिखाना बनता भी है.

के.सी त्यागी ने नीतीश कुमार की तरफ से लालू प्रसाद यादव को फोन पर तबीयत की जानकारी लेने के मुद्दे को गैर राजनीतिक बताकर किसी भी राजनीतिक बातचीत और संभावना को सिरे से खारिज कर दिया है. लेकिन, उन्हें ऐसा करना क्यों पड़ा ? ऐसा लालू यादव के छोटे बेटे और विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के उस बयान के बाद कहना पड़ रहा है. क्योंकि तेजस्वी की तरफ से कहा गया था, ‘अब महागठबंधन में चाचा के लिए जगह नहीं है.’

बिहार में अटकलों का बाजार गर्म

दरअसल, पिछले कई दिनों से जेडीयू और बीजेपी के नेताओं के बीच बिहार में सीटों को लेकर बयानबाजी का दौर चल रहा है. बिहार में एनडीए का चेहरा कौन होगा ? किसको कितनी सीटें मिलेगी ? एनडीए में बिहार में बड़ा भाई कौन है ? छोटा भाई कौन है ? ये चंद सवाल ऐसे हैं जिनपर लगातार ऑन रिकॉर्ड और ऑफ रिकॉर्ड भी चर्चाओं का सिलसिला जारी है, अटकलों का बाजार भी गर्म है.

इन अटकलों को हवा तब मिली जब नीतीश कुमार की तरफ से बिहार को विशेष राज्य के दर्जे को लेकर शुरू की गई मांग फिर से जोर पकड़ने लगी. उसके बाद नोटबंदी पर उनका यू-टर्न यह बयां कर गया कि बिहार में एनडीए के भीतर सबकुछ सामान्य नहीं है. नीतीश कुमार की इस कोशिश को एनडीए के भीतर अपनी पॉजिशनिंग और पॉलिटिकल पॉश्चरिंग से जोड़कर देखा जा रहा था.

सीटों को लेकर है असल विवाद

इन बयानों के बाद जल्द ही सीटों को लेकर जेडीयू और बीजेपी नेताओं की तरफ से बयान आने लगे थे. जेडीयू के एक नेता ने इस बारे में बताया कि सीट शेयरिंग को लेकर अगर अभी से ही दबाव नहीं बनाएंगे तो आने वाले दिनों में बीजेपी के साथ समझौता करना मुश्किल हो जाएगा. इसीलिए जेडीयू 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव के फॉर्मूले पर आगे चलने की बात कर रही है, जब बिहार में जेडीयू 25 सीटों पर चुनाव लड़ती थी और बीजेपी के खाते में महज 15 सीटें होती थी.

लेकिन, 2014 में कहानी बिल्कुल उलट गई थी. जेडीयू ने अलग होकर चुनाव लड़ा और वो महज 2 सीटों पर सिमट कर रह गई. दूसरी तरफ, बीजेपी को 22 और उसकी सहयोगी एलजेपी को 6 और आरएलएसपी को 3 सीटें मिली थीं. ऐसे में बीजेपी अब लोकसभा चुनाव 2019 के लिए 22 सीटों पर अपना दावा कर रही है. हालांकि बीजेपी के नेता भी पर्दे के पीछे इस बात को स्वीकार भी करते हैं कि नीतीश कुमार के साथ आने के बाद अब 22 सीटों पर लड़ना संभव नहीं होगा. लेकिन, सामने आकर अभी भी 22 सीटों पर ही दावा करते हैं. अभी कुछ दिन पहले ही बिहार बीजेपी के महामंत्री राजेंद्र सिंह ने जीती हुई सभी 22 सीटों पर लड़ने की बात भी दोहरा दी है. बीजेपी भी पूरी तरह से तोल-मोल करना चाहती है.

बीजेपी के दखल से नाराज नीतीश !

नीतीश कुमार को बीजेपी का यही तेवर नापसंद है. एनडीए वन में नीतीश कुमार ने जब बीजेपी के साथ मिलकर सरकार चलाई तो उस वक्त उनके काम में दखलंदाजी बिल्कुल नहीं थी. उस वक्त तो बीजेपी के नेता भी नीतीश कुमार को ही अपना नेता मानकर उनके नेतृत्व में सरकार के काम और एनडीए की रणनीति को अंजाम देते थे. मतलब नीतीश ही बिहार में एनडीए का चेहरा भी थे और सरकार में अकेले ही निर्णायक भूमिका में भी थे.

लेकिन, अब पांच सालों में बीजेपी भी बहुत हद तक बदल गई है. अब बीजेपी आलाकमान के निर्देश पर बीजेपी के कोटे के मंत्री भी बिहार सरकार में अपनी उपस्थिति और दावेदारी का एहसास करा रहे हैं. नीतीश को चुभने वाले बयान भी बीजेपी नेताओं की तरफ से दिए जाते रहे हैं. ऐसे माहौल में उन्हें परेशानी भी हो रही है और सरकार पर नियंत्रण भी काफी हद तक कमजोर दिख रहा है.

पिछले कुछ दिनों से जेडीयू-बीजेपी में जारी तकरार भी सरकार और गठबंधऩ की इसी हलचल का प्रतिबिंब नजर आ रहा है. लेकिन, सवाल फिर उठता है कि क्या नीतीश कुमार वापस लालू यादव के साथ हाथ मिलाएंगे ?

करप्शन और कम्यूनलिज्म से समझौता नहीं करने की बात को लगातार दोहराने वाले नीतीश कुमार आने वाले दिनों में भ्रष्टाचार के मामले में सजायाफ्ता लालू यादव के साथ हाथ मिलाने से जरूर कतराएंगे, लेकिन, उनकी कोशिश बीजेपी पर दबाव बनाने की थी.

लालू से लगातार दूरी बनाने वाले नीतीश कुमार का अचानक उनके स्वास्थ्य को लेकर की गई चिंता भी बीजेपी को संदेश देने की कोशिश थी. उनकी तरफ से यह संकेत दिया जा रहा था कि राजनीति में कुछ भी संभव है. लेकिन, तेजस्वी यादव के बयान के बाद नीतीश कुमार के लिए मुश्किलें ज्यादा दिख रही हैं.

अब उनके पास बीजेपी पर दबाव  बनाने का विकल्प सीमित हो गया है. यही कारण है कि जेडीयू तेजस्वी यादव के बयान पर इस कदर बिफर गई है.

अब क्या करेंगे नीतीश ?

हालांकि नीतीश कुमार के सामने अभी विकल्प सीमित हैं. उन्हें या तो बीजेपी के साथ ही रहना होगा या फिर आने वाले दिनों में आरजेडी और बीजेपी से अलग एक तीसरे विकल्प की तलाश करनी होगी. अभी हाल ही में पटना में  पूर्व प्रधानमंत्री वी.पी सिंह की जयंती पर कार्यक्रम के दौरान नीतीश कुमार ने रामविलास पासवान के साथ मंच साझा किया था. पासवान के साथ बार-बार गलबहियां और नजदीकी दिखाकर नीतीश आने वाले दिनों में बीजेपी से मोल-तोल करने की कोशिश कर सकते हैं.

सूत्रों के मुताबिक, अगर बीजेपी के साथ सीटों को लेकर खटपट हुई तो फिर आने वाले दिनों में पासवान के साथ वो अलग मोर्चा बनाकर बिहार में ताल ठोक सकते हैं. फिलहाल तो यही लग रहा है कि नीतीश कुमार की बीजेपी पर दबाव की रणनीति ने उनका ही नुकसान किया है. तेजस्वी के तंज से उनकी छवि को ही नुकसान हुआ है. ऐसे में राजनीति के माहिर और चतुर खिलाड़ी नीतीश कुमार के अगले कदम का इंतजार करना होगा. अगले महीने की आठ तारीख को दिल्ली में जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक है. इस बैठक के बाद जेडीयू की आगे की रणनीति काफी हद तक साफ हो सकती है. लेकिन, नीतीश कुमार को सोच-समझ कर बीजेपी पर दबाव बनाना होगा, वरना दबाव की उनकी रणनीति उल्टी पड़ सकती है.