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नीतीश को फिर से साबित करना होगा, हम ही हैं 'सुशासन बाबू'

पिछले दो दशक के बाद पहली बार किसी एक ही पार्टी या गठबंधन की सरकार केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों में आई है

Amitesh

छठी बार बिहार के मुख्यमंत्री बनने के बाद नीतीश कुमार ने विधानसभा में विश्वासमत हासिल कर लिया है. घर वापसी के बाद पुराने साथी के साथ सरकार बनी और फिर अब विधानसभा में बहुमत भी साबित हो गया. लेकिन, इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि नीतीश के लिए अब सुकून के पल आने वाले हैं.

बल्कि, उनके लिए असली चुनौती अब शुरू होने वाली है. यह चुनौती नीतीश के लिए भी है और उनकी पुरानी पार्टनर बीजेपी के लिए भी. क्योंकि अब वो सब करके दिखाना होगा जिसको अबतक वो कर नहीं पा रहे थे.


अब नहीं होगा लालू का बहाना 

जिस भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाकर नीतीश ने लालू के साथ नाता तोड़ा, सरकार के ठीक तरह से काम ना करने की बात की, अपनी असहजता को भी खुलकर सामने ला दिया था. अब उन तमाम परेशानियों से उनका पीछा छूट गया है. अब नीतीश लालू की जिद्द और उनके काम करने  के मामले में दखलंदाजी पर कोई बहाना नहीं बना सकते. अब तो बस काम करके दिखाना होगा.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को इस बात का एहसास है. उन्हें पता है कि बिहार की जनता के दरबार में उन्हें अपने कामों का हिसाब देना है. उनसे कई तरह के सवाल भी पूछे जाएंगे. मौके परस्त होने के आरोप भी विरोधियों की तरफ से लगाए जाएंगे, लेकिन, इन सारे सवालों का जवाब उन्हें बचे हुए चालीस महीनों में देना होगा.

नीतीश कुमार ने इस बाबत पहले ही संकेत भी दे दिया है. बिहार की जनता के हित में बेहतर काम करने की बात कही जा रही है. उन्होंने साफ कर दिया है कि सत्ता उनके लिए सेवा है, मेवा नहीं.

बिहार के डिप्टी सीएम सुशील कुमार मोदी ने विश्वास मत हासिल करने के बाद कहा कि सरकार के बचे 40 महीने में बहुत कुछ करना है. सुमो का बयान आने वाले दिनों में एनडीए सरकार के एजेंडे और उसकी चुनौतियों को दिखाता है.

शानदार था नीतीश का पहला टर्म 

दरअसल, 2005 में जब नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी थी तो उस वक्त सरकार का पहला टर्म काफी बेहतर माना गया. 15 सालों के लालू-राबड़ी शासने के बाद बिहार में बदलाव की बयार साफ दिख रही थे.

कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर बड़ा बदलाव दिखा जब सारे अपराधी या तो सलाखों के पीछे चले गए या फिर पुलिसिया कारवाई से डरकर दुबक गए. दूसरी तरफ, हर क्षेत्र में विकास देखने को मिला. शिक्षा से लेकर स्वास्थ्य सेवाएं बेहतर हुईं.

बेहतर सड़क, शिक्षा व्यवस्था और वहां लड़कियों के लिए साईकिल देने के फैसले ने बिहार की तस्वीर ही बदल दी. बिहार के ठीक रास्ते पर जा रहा था. लेकिन, 2010 में बीजेपी के साथ दोबारा सत्ता में आने के बाद इस रफ्तार को कायम नहीं रखा जा सका.

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2013 में बीजेपी के भीतर नरेंद्र मोदी की बढ़ती ताकत ने नीतीश कुमार को असहज कर दिया. नीतीश ने अलग राह पकड़ ली. लोकसभा चुनाव में मुंह की खाने के बाद आरजेडी और कांग्रेस के साथ फिर से हाथ मिलाने के बाद नीतीश कुमार ने महागठबंधन की सरकार बनाई और फिर 2017 में बीजेपी के साथ खड़े हो गए हैं.

लेकिन, 2013 से 2017 तक बीजेपी के साथ छोड़ने के दौरान बिहार में कानून-व्यवस्था भी काफी चरमरा गई. इस दौरान बिहार में शिक्षा के स्तर में भी काफी गिरावट आई. विकास की राह पर चल रहे बिहार में विकास के बजाए चर्चा अलग-अलग मुद्दों को लेकर शुरू हो गई.

लेकिन, अब एक बार फिर से नीतीश-सुमो की जोड़ी पर बिहार के विकास को रफ्तार देने की बड़ी जिम्मेदारी होगी. एक बार फिर से बिहार में कानून-व्यवस्था को बेहतर करना होगा. विकास की राह पकड़नी होगी.

दोनों जगह एनडीए की सरकार होने से बढ़ गई है आस

अब केंद्र में मोदी सरकार और प्रदेश में नीतीश सरकार बन गई है. एनडीए की दोनों सरकार के बचे हुए कार्यकाल में बिहार के उस तबके के भीतर बेहतर परिणाम की अपेक्षा काफी बढ़ गई है, जो इस दिन की आस में पहले से ही टकटकी लगा कर देख रहा है.

क्योंकि नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के काम करने के तरीके और उनके कोर वोटर्स भी लगभग एक हैं. पिछले लोकसभा चुनाव के वक्त बिहार के सवर्ण मतदाताओं के साथ-साथ पिछडे अति-पिछडे, दलित-महादलित मतदाताओं का बड़ा तबका मोदी के नाम पर बीजेपी के साथ जुड़ा था. लेकिन, विधानसभा चुनाव के वक्त इस तबके का बड़ा हिस्सा नीतीश के साथ हो गया था.

अब जबकि दोनों इस वक्त एक साथ खड़े हैं तो अपेक्षा बढ़ना स्वाभाविक है. अब लोगों को विधानसभा चुनाव के वक्त किए गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उन वादों की भी याद आ रही है जिसमें बिहार के लिए स्पेशल पैकेज की बात कही गई थी. बिहार के विकास के सपने दिखाए गए थे.

बिहार के लोगों की अपेक्षा इसलिए भी और बढ़ गई है क्योंकि पिछले दो दशक के बाद पहली बार किसी एक ही पार्टी या गठबंधन की सरकार केंद्र और राज्य दोनों ही जगहों में आई है. अब नीतीश-नमो की जोड़ी पर बिहार में बेहतर काम करने और परिणाम देने की बड़ी जिम्मेदारी होगी, क्योंकि वक्त कम है.

विधानसभा चुनाव में चालीस महीने का वक्त है तो लोकसभा चुनाव में महज 20 महीने का ही वक्त रह गया है. मतलब नीतीश के बीजेपी के साथ आने के बाद अब हनीमून पीरियड का वक्त नहीं बचेगा, उन्हें तुरंत काम में लगना होगा. अगर ऐसा कर पाए तो नीतीश फिर से सुशासन बाबू के अवतार में और बेहतर तरीके से निखर कर सामने आएंगे.