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बिहार आईएएस विवाद: नीतीश को आर-पार की लड़ाई लड़नी ही होगी

नीतीश के काम करने का तरीका बिहार के लिए मील का पत्थर साबित होगा

Ajay Singh

नौकरशाही की तरफदारी के लिए जितनी तोहमत नीतीश कुमार पर लगाई गई हैं उतनी शायद ही किसी और मुख्यमंत्री पर लगी होंगी. जब से उन्होंने मुख्यमंत्री बने हैं तभी कहा जाता रहा है कि सरकार चलाने के मामले में वे नौकरशाहों की ज्यादा सुनते हैं और राजनेताओं की कम.

बिहार के हाल के घटनाक्रम को देखते हुए यह बात बड़ी मानीखेज हो उठी है. भ्रष्टाचार के आरोप में राज्य के कर्मचारी चयन आयोग के अध्यक्ष सुधीर कुमार की गिरफ्तारी के बाद बिहार सरकार और सूबे के आईएएस एसोसिएशन की बीच तनातनी चल रही है.


पुलिस के मुताबिक किरानी या क्लर्क के पद पर बहाली की परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक करने के मामले में सुधीर कुमार के खिलाफ ऐसे सबूत मिले हैं जिन्हें झुठलाया नहीं जा सकता.

सुधीर कुमार की गिरफ्तारी के बाद तकरीबन 50 आईएएस अधिकारी इसके विरोध में उतर आए. उन्होंने धमकी दी कि मंत्रीगण अगर मौखिक आदेश देते हैं तो हम उसे नहीं मानेंगे.

ये झगड़ा क्यों सामान्य नहीं है 

बिहार सरकार के इकबाल के खिलाफ बुलंद होती विद्रोह की यह चुप्पा आवाज एक अमंगल की सूचना है और इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती. और सौभाग्य कहिए कि नीतीश कुमार ने अमंगल के इस संकेत की अनदेखी नहीं की. उनकी मंशा मामले से एकदम सीधे निबटने की है.

सोमवार को बिहार विधानसभा के अपने भाषण में नीतीश कुमार ने साफ संकेत दिए कि संवैधानिक रीति से चुनी गई सरकार की खिलाफवर्जी को बख्शा नहीं जायेगा.

सूबे की विधानसभा में उन्होंने कहा कि 'मुझे आईएएस एसोसिएशन का ज्ञापन अभी नहीं मिला है लेकिन जब मिलेगा तो मैं इसके एक-एक शब्द को पढ़कर कदम उठाऊंगा जो आगे के लिए प्रशासन के मामले में मील का पत्थर साबित होगा.'

जाहिर है, मामले पर कुछ आईएएस अफसरों ने जो रवैया दिखाया उसे लेकर नीतीश कुमार के मन में नाराजगी है. आईएएस ऑफिसर अपने साथी के साथ हो रही तथाकथित ज्यादती के बारे में ज्ञापन लेकर राजभवन तक चले आए. उनका यह बरताव कुछ ऐसा था मानो वे आईएएस अधिकारी नहीं मजदूर-संघ वाले हों.

आखिर अब अफसर क्यों भड़के?

सवाल उठता है कि आखिर राज्य सरकार और नौकरशाहों खासकर आईएएस ऑफिसर के बीच अब तक चले आ रहे दांत काटी रोटी के रिश्ते में कड़वाहट कैसे आ गई?

इस सवाल का जवाब बड़ी आसानी से मिल सकता है बशर्ते आप सूबे के जटिल सियासी समीकरण को गौर से देखें. 2005 के बाद मुख्यमंत्री बनने पर नीतीश कुमार के सामने बड़ा सवाल यह था कि जड़ता के शिकार हो चले एक सूबे को कैसे फिर से चलने-फिरने लायक बनाया जाए.

लालू-राबड़ी के शासन के समय बिहार पूरी तरह नाकामी के गर्त में जा समाया था. बीजेपी के साथ गठबंधन में नीतीश सरकार को मनचाहे अधिकार हासिल थे और उन्होंने राज्य के खोए हुए वैभव की बहाली के लिए सूबे की नौकरशाही को ताकतवर बनाया.

याद कीजिए वह वाकया जब अपनी अकड़ के लिए पहचान बना चुके बाहुबली आनंदमोहन सिंह को एक आईपीएस ऑफिसर ने सरेआम थप्पड़ मारा और पूरे सूबे में जोरदार संदेश गूंजा कि अब राज कानून का ही चलने वाला है. राज्य में जो अधिकारी डीएम और एसपी के पद पर तैनात थे उन्हें निर्देश था कि राजनेताओं के दबाव में एकदम नहीं आना है.

लालू-राबड़ी का दौर याद है! 

जरा तुलना कीजिए इस स्थिति की लालू-राबड़ी के राज से जब मुख्य सचिव के पद पर बैठने वाले अधिकारियों की हैसियत मुख्यमंत्री-आवास की देखरेख में लगे किसी टहलुए से ज्यादा नहीं हुआ करती थी.

खूब कहानियां मिलती हैं कि उस वक्त मुख्य सचिव हाथ में पीकदान लेकर चलते थे कि लालू यादव पान खाकर उसमें पीक फीकें ! राज्य के सचिवालय में नारा गूंजा करता था कि '12 बजे तक लेट नहीं 3 के बाद भेंट नहीं.'

राबड़ी देवी के समय में मुख्यमंत्री का दफ्तर शायद ही कभी खुलता था क्योंकि उनको ऑफिस के काम में करने में तनिक भी रुचि नहीं थी. घर पर पतिदेव थे और वहीं बैठकर राजकाज चलाया करते थे.

नीतीश कुमार ने जब सूबे की मशीनरी को उसके पैरों के बल खड़ा किया तो काम की बदली हुई संस्कृति से राज्य का सियासी तबका सदमे में आ गया.

क्या हित प्रभावित हो रहे हैं?

आखिर, यह तबका नौकरशाही के जोड़-तोड़ से अपने स्वार्थ साधता था. नीतीश कुमार के वक्त में घड़ी का पेंडुलम डोलकर एकदम दूसरे छोर पर जा पहुंचा. अब नौकरशाह ही परमप्रभु बन बैठे. पार्टी में नीतीश कुमार की भारी आलोचना हुई कि वे नौकरशाहों को बढ़ावा दे रहे हैं जबकि भ्रष्टाचार करना उनकी फितरत ही में शामिल है.

बुनियादी ढांचे को बनाने के लिए राज्य से खूब रकम खर्च की जा रही थी. साथ ही केंद्र और राज्य की तरफ से सामाजिक कल्याण के मद में भी खूब योजनाएं चल रही थी. ऐसे में खबरें आने लगीं कि नौकरशाही बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार कर रही है.

दरअसल नौकरशाहों ने जान लिया है कि आरजेडी और जद(यू) का गठबंधन पेंचदार है और यही देखकर उन्हें अपने मन का करने की हिम्मत मिली है. फिलहाल इस बात की खूब खबर मिल रही है कि कई केंद्र और सरकारी सहायता मुहैया कराने के लिए चलाये जा रहे स्वास्थ्य केंद्र आरजेडी के एक खास मंत्री के लिए धन-उगाही का जरिया बने हुए हैं.

अनिश्चितता के माहौल में नौकरशाहों का एक तबका अपनी निष्ठा बदल रहा है और पटना मे कायम समानान्तर सत्ता-केंद्र को सलामी ठोंकने लगा है.

पटना राजभवन पर आईएएस अधिकारियों का प्रतिरोध की मुद्रा में खड़े होना एक संकेत है कि बिहार में सत्ता के समीकरण अभी सधे और संतुलित नहीं हैं.

मधुमक्खी के छत्ते में हाथ डाल ही दिया

सारे संकेत इसी बात के हैं कि आईएएस एसोसिएशन सत्ता-समीकरण की डावांडोल हालत का फायदा उठाने की मंशा से ओछी राजनीति करने पर उतारु हो उठा है.

नीतीश बड़े सधे हुए नेता हैं. उन्होंने तुरंत ही इस बीमारी को भांप लिया और बिना लाग-लपेट के यह संदेश सुनाया कि इस अवसर का इस्तेमाल वे अपने गवर्नेस के इतिहास में कुछ इस तरह से करेंगे कि वह आगे के वक्त के लिए मील का पत्थर साबित होगा. नीतीश कुमार जितनी जल्दी ऐसा करें बिहार और पूरे देश के लिए उतना ही अच्छा होगा.