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लालू को हद में रहने की नसीहत के बाद नीतीश ने मोदी को बताया अपराजेय

नीतीश कुमार नई सरकार बनाने के बाद पहली बार बोल रहे थे

Amitesh

मोदी से हाथ मिलाने के बाद से ही नीतीश कुमार को सेक्युलरिज्म पर घेरने की कोशिश हो रही है. सवाल लालू यादव भी पूछ रहे हैं तो कुछ सवाल उनकी पार्टी के भीतर से भी उठ रहे हैं. लेकिन, नीतीश कुमार ने सेक्युलरिज्म के नाम पर उन्हें घेरने वालों को उल्टा आईना दिखा दिया.

नीतीश ने यहां तक कह दिया कि मोदी को 2019 में चुनौती देने वाला कोई नहीं है. किसी के भीतर अब इतनी क्षमता नहीं है कि अगले लोकसभा चुनाव में उन्हें रोक सके. एक तरफ, मोदी की तारीफ तो दूसरी तरफ सेक्युलरिज्म पर अपने आलोचकों को करारा जवाब, ये नीतीश की रणनीति है जिसके तहत वह मोदी-प्रेम पर खुद को जवाब देने के लिए तैयार कर रहे हैं. उन्हें पता है कि विरोधी उन्हें मोदी से हाथ मिलाने के नाम पर ही घेरेंगे, तो फिर जवाब भी उसी लहजे में देना होगा.


मोदी की तारीफ करते हुए नीतीश ने सेक्युलरिज्म के उन तथाकथित झंडाबरदारों से ही पूछ लिया क्या सेक्युलरिज्म की चादर ओढ़कर लोक संपत्ति अर्जित करना जायज है. क्या यही सेक्युलरिज्म का मतलब है? उनकी तल्खी के निशाने पर सीधे लालू यादव हैं, उनकी पार्टी जेडीयू के भी वो नेता हैं जो मोदी के साथ जाने पर सवाल खड़े कर रहे हैं. इस बयान से लालू के साथ-साथ शरद यादव और अली अनवर जैसे उन जेडीयू नेताओं को भी सख्त संदेश दिया गया है.

सेक्युलरिज्म का झंडाबरदार कौन

दरअसल, नीतीश बताना चाहते हैं कि केवल अल्संख्यकों को वोट बैंक की तरह इस्तेमाल कर सेक्युलरिज्म की रट लगाने से नहीं बल्कि, उनके कल्याण के लिए काम करना होगा जैसा कि वो कर रहे हैं.

नीतीश ने पिछले 12 साल से अपनी सरकार की तरफ से अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए किए गए कामों को सिलसिलेवार ढंग से गिनाना शुरू किया. नीतीश के बयान में अल्पसंख्यक कल्याण के लिए किए जाने वाले अपनी सरकार के कामों से लेकर भागलपुर दंगा पीड़ितों तक का भी जिक्र था.

नीतीश इस वक्त अपनी आलोचना से परेशान नहीं हैं, बल्कि आगे विकास के जरिए आलोचना का जवाब देने की तैयारी में हैं. उन्होंने साफ कहा, 'भागलपुर दंगों के मामलों में फिर से मुकदमा चलाकर हमने न्याय दिलाने की कोशिश की, दंगा पीड़ितों को सही मुआवजा भी दिलवाया. अल्पसंख्यक लड़के-लड़कियों के लिए भी स्कॉलरशिप दी. एएमयू के लिए जमीन भी दी, अल्पसंख्यकों के लिए कब्रिस्तान से लेकर उनके लिए रोजगार के उपाय भी किए.'

फिर भी उनकी सेक्युलर छवि पर सवाल खड़ा करने वालों को उन्होंने दिखाने की कोशिश की है कि सेक्युलरिज्म का रट लगाने भर से नहीं, उनके विकास के जरिए असली सेक्युलरिज्म की परिभाषा गढ़ी जा सकती है.

लालू को दिया करारा जवाब

नीतीश कुमार लालू यादव की उस बात का जवाब देने को भी आतुर दिख रहे थे, जिसमें लालू ने बार-बार उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का श्रेय लेने की कोशिश की. नीतीश ने लालू की इस भाषा को अहंकारी बताते हुए कहा कि हमलोग कास्ट बेस नहीं बल्कि मास बेस में यकीन करते हैं.

नीतीश ने लालू यादव को उनकी हैसियत दिखाने की कोशिश की जिसके जरिए साफ कर दिया कि अगर कास्ट बेस पर ही सियासत सफल होती तो 2010 में उनकी पार्टी की इतनी खराब हालत क्यों हो गई थी. यहां तक कि उस वक्त रामविलास पासवान भी लालू के साथ ही थे.

नीतीश कुमार ये दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि केवल जाति की सियासत के जरिए उनकी हैसियत को नहीं देखा जा सकता. उनका मास बेस और उनकी बिहार के लोगों के बीच बनी साफ-सुथरी छवि का ही परिणाम है कि जिसके जरिए बीजेपी के साथ 2010 का विधानसभा चुनाव स्वीप करने का मामला हो या फिर 2015 में लालू –कांग्रेस के साथ एकतरफा चुनाव जीतना, ये सबकुछ संभव हो पाया.

अब जबकि रामविलास पासवान भी नीतीश के ही साथ खड़े हैं तो ऐसी सूरत में लालू को अपने जाति बेस पर दंभ न भरने की नीतीश की नसीहत लालू को उनकी हैसियत का एहसास कराती है.

नीतीश कुमार बिहार की जनता को भी यह बताना चाहते हैं कि उन्होंने जनभावना का अपमान भी नहीं किया और न ही किसी को दगा दिया. लालू यादव की तरफ से उन्हें मुख्यमंत्री बनाने का एहसान दिखाने पर नीतीश आगबबूला थे. नीतीश ने साफ कर दिया कि यह खुद लालू यादव का फैसला था, जिसमें उन्होंने मुलायम सिंह यादव के घर हुई बैठक के बाद इस तरह का ऐलान करवा दिया. उन्हें डर था कि कहीं जेडीयू और कांग्रेस मिलकर न चुनाव लड़ लें, वरना लालू ऐसा नहीं करते.

सबके लिए संदेश

नीतीश ने लालू को उनके पुराने दिनों की याद दिलानी शुरू कर दी. छात्र जीवन से लेकर राजनीतिक जीवन के दौरान नीतीश कुमार ने लालू यादव को हर मोर्चे पर आगे बढ़ाया था, जिसका एक-एक कर उन्होंने जिक्र कर दिया. नीतीश ने कहा कि हमने कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद गैर-यादव सभी विधायकों को लामबंद कर लालू को विपक्ष का नेता बनाया.

इस वक्त जेडीयू में पूर्व अध्यक्ष शरद यादव नाराज हैं, लिहाजा उनकी तरफ से यह बताने की कोशिश की गई कि बिहार में बीजेपी के साथ जाने का फैसला बिहार के जेडीयू विधायक दल का था और बिहार जेडीयू के नेता ही बिहार के बारे में फैसला कर सकते हैं.

लेकिन, एनडीए में शामिल होने पर फैसला 19 अगस्त की पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में लिया जाएगा. संकेत है कि उस मीटिंग में शरद यादव भी होंगे और बाकी नेता भी जिनके सामने यह फैसला होगा.

नीतीश कुमार इस वक्त किसी तरह की भ्रम की स्थिति में नहीं हैं. वो मान कर चल रहे हैं कि बीजेपी के साथ मिलकर बिहार में उन्हें बचे हुए चालीस महीनों में बेहतर काम कर दिखाना होगा. सभी बातों का जवाब अपने काम से देना होगा. लिहाजा किसी तरह के किंतु-परंतु में पड़ने के बजाए पहले ही उन्होंने साफ कर दिया है कि मोदी की अगुआई में ही अगली बार सरकार बनेगी. हमें तो बस बिहार को बनाना है.