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RSS की तारीफ कर नीतीश कुमार ने BJP के साथ अपने गठजोड़ को पुख्ता कर दिया है

दिलचस्प बात यह है कि दो साल पहले नीतीश कुमार ने मोदी के “कांग्रेस मुक्त भारत” नारे के जवाब में “संघ मुक्त भारत” का नारा दिया था

Sanjay Singh

आरएसएस को जनता दल (यू) प्रमुख और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के रूप में एक नया प्रशंसक मिल गया है. वह एक बड़ा नाम हैं, ऊंची साख वाले नेता हैं, ऐसे शख्स हैं जिन्हें एनडीए में फिर से शामिल होने के लिए जुलाई 2017 के अंतिम हफ्ते में आरजेडी और कांग्रेस को झटका देकर महागठबंधन से निकल जाने तक, तथाकथित उदारवादी-धर्मनिरपेक्षवादियों के बीच नरेंद्र मोदी का जवाब माना जाता था. इस तरह उनके शब्द पूरे संघ परिवार के कानों के लिए मधुर संगीत की तरह हैं.

नीतीश कुमार ने आरएसएस की सांगठनिक क्षमता और प्रतिबद्धता को लेकर उसकी काफी तारीफ की थी. हालांकि, उन्होंने यह भी जोड़ा कि वे आरएसएस की विचारधारा से सहमत नहीं हैं, जिसकी उन्हें जरूरत भी नहीं है, क्योंकि उनका अपना दर्शन (समाजवादी) और अपनी शैली है, लेकिन संघ की प्रतिबद्धता, दृढ़ता, संगठन की गहरी जड़ों और हमेशा विस्तार की सोच के लिए बहुत सम्मान है.


आरएसएस को तारीफ और राहुल पर आरोप

यह पहली बार है जब नीतीश ने सार्वजनिक रूप से आरएसएस के बारे में प्रशंसा भरी टिप्पणी की है. वह भी ऐसे समय में जब सहिष्णुता-असहिष्णुता की बहस चरम पर है और धर्मनिरपेक्षतावादी पार्टियां संघ पर लगातार निशाना साधे हुए हैं. विपक्ष में सबसे बड़ी पार्टी के नेता राहुल गांधी विशेष रूप से आरएसएस पर हमलावर हैं. नीतीश कुमार भी राहुल गांधी के आलोचक हैं, हालांकि ये एक अलग मुद्दा है, और उन्होंने खुद के महागठबंधन से बाहर जाने के लिए राहुल को जिम्मेदार ठहराया.

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पटना में एबीपी न्यूज के न्यूज कॉन्क्लेव में सवालों के जवाब देते हुए नीतीश ने कहा कि वह छात्र जीवन से ही आरएसएस को जानते हैं, जब 1974 में आपातकाल के दौरान उन्हें मीसा में जेल भेजा गया था, वह वहां केएन गोविंदाचार्य के संपर्क में आए, जो कि खुद भी उन्हीं आरोपों के तहत जेल में बंद थे और आरएसएस के सभी प्रकार के साहित्य पढ़े. अलग बात है कि वह अंततः राम मनोहर लोहिया, महात्मा गांधी और जयप्रकाश नारायण के दर्शन से प्रभावित हुए. उन्होंने कई बार दोहराया कि आरएसएस एक पुराना संगठन है, जिसकी स्थापना 1925 में हुई थी और तब से यह बहुत बड़ा हो गया है.

उन्होंने आरएसएस पर टिप्पणी करते हुए कहा कि वे 1925 से अपनी कठोर प्रक्रिया के अनुसार काम कर रहे हैं, यह एक बड़ा संगठन है, आप उनके दृष्टिकोण से सहमत हों या असहमत लेकिन जो बात ध्यान देने योग्य है वह है इनकी प्रतिबद्धता. देश के विभिन्न हिस्सों के लोग सालों साल से देश के विभिन्न कोनों में अलग-अलग जिलों में रह रहे हैं. ऐसी प्रतिबद्धता है यहां. आरएसएस ने जनसंघ का गठन किया था और बीजेपी भी काफी व्यापक हो गई है.

दृष्टिकोण से बनाई दूरी

हालांकि उन्होंने आगे ये भी जोड़ा, 'मैं आरएसएस के दृष्टिकोण के साथ सहमति नहीं जता रहा हूं, मेरा अपना दृष्टिकोण और शैली है, लेकिन आरएसएस के बारे में एक बात समझने लायक है, वह है उनके काम में दृढ़ता. 1925 से लेकर आज तक यह कितना फैल चुका है. क्या कोई पूर्वोत्तर में उनके काम के बारे में कल्पना कर सकता है. उत्तर-पूर्व में कुछ राज्यों में हिंदू आबादी बहुत कम है, लेकिन फिर भी उनकी दृढ़ता ही है जिसके चलते उन्होंने तत्काल परिणाम की अपेक्षा के बिना काम किया.'

उन्होंने कहा, 'आप एक खास नजर से आरएसएस को देखते हैं. आरएसएस का काम करने का अपना तरीका है. हम छात्र दिनों से आरएसएस को देख रहे हैं. इसका एक और पहलू है, जो दिखता नहीं है.'

नीतीश ने फिर कहा कि उन्होंने जेपी (जयप्रकाश नारायण) को ‘छात्र संघर्ष समिति’ (इंदिरा गांधी की ओर से लगाए गए आपातकाल का विरोध करने के लिए) के दौरान कहते सुना था कि आरएसएस का केवल 1/8 काम लोगों के सामने आता है और 7/8 काम लोग नहीं देख पाते हैं. उन्होंने कहा जेपी ने जो कहा था, उस पर उनको पूरा यकीन है.

बीजेपी से पूरी तरह एकाकार हो गए हैं नीतीश

नीतीश की टिप्पणी एनडीए के दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है. वह 2013 के मध्य से 2017 के मध्य की अवधि को छोड़कर बीजेपी के साथ गठबंधन में हैं. ऐसा कहकर वह बीजेपी के साथ अपने गठबंधन को पूर्ण और निर्विवाद बनाते हैं. वह बीजेपी से उस वक्त अलग हो गए थे, जब नरेंद्र मोदी को बीजेपी का प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में नामित किया ही जाने वाला था और वह उनके दोस्त हैं. मोदी एक मामूली स्वयंसेवक से यहां तक पहुंचे हैं.

बीजेपी से उनके पूरी तरह एकाकार हो जाने का एक अन्य संकेत उन्होंने जेडी (यू) में प्रशांत किशोर की उनके डिप्टी के रूप में नियुक्ति के बारे में बताते हुए दिया. उन्होंने यह राज खोला कि उनकी नियुक्ति के लिए बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने उन्हें दो बार फोन किया था. प्रशांत किशोर 2017 के बिहार चुनाव में नीतीश के रणनीतिकार थे और नीतीश के सरकारी घर में ही रहते थे.

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दिलचस्प बात यह है कि दो साल पहले जब नीतीश कुमार आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन का नेतृत्व कर रहे थे, तो उन्होंने मोदी के चुनावी अभियान में 'कांग्रेस मुक्त भारत' के नारे के जवाब में 'संघ मुक्त भारत' का नारा दिया था.