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नोटबंदी पर नीतीश का दांव

नीतीश कांग्रेस नीत क्षेत्रीय दलों या फिर तीसरे मोर्चे का चेहरा बनकर सामने आ सकते हैं

Sitesh Dwivedi

नोटबंदी के निर्णय से केंद्र सरकार कितने नफा नुकसान में होगी, इसका परिणाम तो भविष्य में सामने आएगा. लेकिन, कांग्रेस के साथ खड़े विपक्षी दलों से अगल बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने समर्थन के 'मास्टर स्ट्रोक' ने राज्य से केंद्र तक कई संतुलन साध लिए हैं.

भविष्य की राजनीति को देखकर फैसला लेने वाले नीतीश ने फैसले से 'भूत, भविष्य और वर्तमान' की राजनीति को अपने पक्ष में करने का प्रयास किया है. साथ ही बिहार की राजनीति में तनिक हावी होते सहयोगी राष्ट्रीय जनता दल को तगड़ा 'झटका' दिया है.


इस फैसले से शराब बंदी को लेकर घरेलू राजनीति में घिरे नीतीश एक बार फिर राष्ट्रीय राजनीतिक चर्चा में आ गए हैं. वहीं निर्णय से निराश व राज्यों में हाशिये पर खड़ी कांग्रेस इसे आरजेडी से समझना चाह रही है.

नीतीश के निर्णय से कांग्रेस आहत

पार्टी अध्यक्ष सोनिया गांधी ने इस मसाले को लेकर जहां राजद मुखिया लालू से बात की, वहीं नीतीश कुमार ने नोटबंदी के बाद बेनामी सम्पत्ति पर सरकार के हमले को भी समर्थन के संकेत देकर अपने इरादे स्पष्ट कर दिए हैं. हालांकि इसे बिहार की राजनीति में किसी बदलाव के नजरिये से देखना जल्दबाजी होगी. इसमें जेडीयू-आरजेडी गठबंधन सरकार में टूट-फूट की गुंजाइश तलाशने वालों को फिलहाल निराशा ही हाथ लगेगी.

नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी

नीतीश के इस निर्णय से सबसे ज्यादा कांग्रेस आहत है. पार्टी नोटबंदी के विरोध में विपक्षी लामबंदी के जरिये पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व को स्वीकार्यता की दिशा में ले जाना चाह रही थी. इसमें उसे सफलता मिलती भी दिख रही थी, लेकिन नीतीश के निर्णय ने उसे यह सफलता चखने का मौका नहीं दिया. जाहिर तौर पर नीतीश के निर्णय से कांग्रेस को तगड़ा झटका लगा है.

पार्टी के एक वरिष्ठ नेता ने इसे स्वीकार भी किया. उनके मुताबिक 'नोटबंदी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे हैं, ऐसे में हमारे ही सहयोगी नीतीश के निर्णय से हमें दुख हुआ है।' वहीं, पार्टी के नेतृत्व में भी नीतीश के निर्णय को लेकर नाराजगी है. इस सन्दर्भ में पार्टी अध्यक्ष सोनिया ने बिहार में दूसरे सहयोगी राजद नेता लालू यादव से फोन पर बात भी की, लेकिन इससे कोई सकारत्मक राह निकलती नहीं दिख रही.

नीतीश चले केंद्र की ओर

कांग्रेस नेताओं को लगता है नीतीश अपने राजनीति को राज्य से केंद्र की ओर लाना चाहते हैं. कांग्रेस नेता के मुताबिक 'बिहार चुनाव के समय महागठबंधन की ओर से मुख्यमंत्री पद के लिए नीतीश के नाम पर सहमति बनाने में कांग्रेस की अहम भूमिका रही. राजद को राजी करने में कांग्रेस का अहम रोल था.

नाराज कांग्रेस ने स्पष्ट किया है कि गठबंधन की ओर से प्रधानमंत्री पद के लिए केवल एक ही उम्मीदवार होगा, वह राष्ट्रीय पार्टी से ही चुना जाएगा. वहीं, जेडीयू के एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि हमें अपनी राजनीतिक राह पर चलना है. 2019 के चुनाव अभी दूर हैं, ऐसे में उस समय क्या राजनीतिक परिस्थितियां होगी इसका महज आंकलन किया जा सकता है, उस पर कोई निर्णय लेना अभी जल्दबाजी होगी. हालांकि, नरेंद्र मोदी के खिलाफ चेहरे की बाबत उन्होंने कहा कि, वह क्षेत्रीय दल का ही होगा.

ममता भी चलीं केंद्र की ओर

दरअसल, राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल नेता ममता के उभार को कांग्रेस के समर्थन से जेडीयू आहत है. पार्टी नेताओं का मानना है कि ममता का अचानक देश के हिंदी भाषी राज्यों में धरना प्रदर्शन और हिंदी में ट्वीट न केवल भविष्य की तैयारी है. बल्कि, कांग्रेस की तृणमूल से जुगलबंदी क्षेत्रीय दलों में महत्वाकांक्षा की लड़ाई शुरू करने की शुरुआत भी. जाहिर है एक बार ऐसी लड़ाई शुरू होने के बाद क्षत्रपों में किसी नाम को लेकर सहमति बनेगी नहीं, और बात अपने आप कांग्रेस के पाले में होगी.

नीतीश कुमार, ममता बनर्जी और अरविंद केजरीवाल

जाहिर है, ऐसी किसी स्तिथि में न चूकने की रणनीति बना रहे नीतीश 2019 के लोकसभा चुनाव को दिमाग में रखते हुए ही नोटबंदी के फैसले का समर्थन कर रहे हैं. नोटबंदी के खिलाफ खड़े विपक्ष से दूरी ने न केवल नीतीश की एक स्वतंत्र छवि वाले नेता की छवि गढ़ी है बल्कि, उन्हें बिहार में राजद की छाया से भी बाहर खड़ा कर दिया है.

नीतीश का सोचा-समझा कदम 

जेडीयू रणनीतिकारों को लगता है, नीतीश कुमार के प्रधानमंत्री पद तक पहुंचाने वाली दिशा में 'लालू और सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव' की युगलबंदी भी बड़ी चुनौती बन सकती है. ऐसे में इनसे भी निश्चित समय तक निश्चित दूरी की रणनीति भविष्य में काम आएगी. खासकर जब सपा को दो माह बाद चुनावों का सामना करना होगा.

देखो और इंतजार करो की रणनीति पर विश्वास करने वाले नीतीश ने अगर पहल कर नोटबंदी पर दांव लगाया है तो यह सोच समझ के उठाया गया कदम है.

कुछ समय पहले तक केंद्र में सत्ताधारी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने एकीकृत विपक्ष का सम्भावित संभावित चेहरा माने जा रहे नीतीश ने सभी संभावनाओं के लिए द्वार खोल रखे हैं. वे कांग्रेस नीत क्षेत्रीय दलों या फिर तीसरे मोर्चे का चेहरा बनकर सामने आ सकते हैं.