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कांग्रेसी रणनीति: मनमोहन सिंह की बढ़ती राजनीतिक सक्रियता के क्या हैं मायने

मनमोहन सिंह की सक्रियता हाल के दिनों में बढ़ी है. कांग्रेस की ये नई रणनीति है.

Syed Mojiz Imam

कांग्रेस के तीन मुख्यमंत्रियों ने एक साथ शपथ ली है. कांग्रेस की बड़ी जीत के बाद एक बस की तस्वीर वायरल हो रही है. जिसमें गैर बीजेपी दल के कई नेता बस में सवार थे. राहुल गांधी भी थे, लेकिन तस्वीर में मनमोहन सिंह का होना नया राजनीतिक संदेश है.

मनमोहन सिंह की सक्रियता हाल के दिनों में बढ़ी है. कांग्रेस की ये नई रणनीति है. राहुल गांधी की राजनीतिक विश्वसनीयता तीन राज्यों के परिणाम के बाद बढ़ी है. विपरीत परिस्थिति में राहुल गांधी ने बीजेपी से संघर्ष किया है. लेकिन जिस मिजाज से सहयोगी दल या भविष्य के सहयोगी दलों का व्यवहार है, उससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि 2019 में कांग्रेस के युवा चेहरे के लिए काफी बाधांए खड़ी हो सकती हैं.


इस सूरत में कांग्रेस एक बार फिर मनमोहन सिंह को आगे कर सकती है. मनमोहन सिंह के साथ ज्यादातर लोगों को काम करने में कोई अड़चन नहीं होगी, जिसका फायदा कांग्रेस उठा सकती है.

सज्जन कुमार की सजा के बाद कांग्रेस एक बार फिर दोराहे पर है. कांग्रेस को ऐसे चेहरे की तलाश है जो 1984 के दाग को धुल सकता हो, मनमोहन सिंह पहले ही इस पूरे मामले पर माफी मांग चुके हैं. जाहिर है कि 84 का जिन्न कांग्रेस के पीछे है. सिखों के जख्म ताजा हो गए हैं. कांग्रेस इसको नजरअंदाज करने का जोखिम नहीं उठा सकती है. ऐसे में इस वजह से भी मनमोहन सिंह पार्टी के लिए फायदेमंद हो सकते हैं.

मनमोहन सिंह, मोस्ट अंडररेटेट पॉलिटिशियन

कांग्रेस में अंदरखाने मनमोहन सिंह को यही कहा जाता है. कांग्रेस के नेताओं को लगता है कि मनमोहन सिंह साइलेंट ऑपरेटर हैं. पूर्व प्रधानमंत्री की विश्वसनीयता पार्टी के बाहर और भीतर है. बतौर अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह की ख्याति है. कांग्रेस में आलाकमान का विश्वासपात्र होना बड़ी उपलब्धि होती है. मनमोहन सिंह के सोनिया गांधी और राहुल गांधी दोनों के साथ अच्छे रिश्ते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री की अपनी कोई लॉबी नहीं है, सिवाय चंद लोगों के जिनका उनके यहां आना-जाना है.

कांग्रेस के दस साल के शासन में मनमोहन सिंह ने गांधी परिवार के साथ मिल जुलकर काम किया है. अपने पूर्ववर्ती नरसिंहाराव की तरह नहीं, जिनपर गांधी परिवार की शंका हमेशा बनी रही. मनमोहन सिंह ने ऐसा कोई काम नहीं किया जिससे गांधी परिवार के दिल में कोई शक पैदा होता. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में कांग्रेस ने कई सोशल सेक्टर की स्कीम शुरू की थी. जिसमें मनरेगा प्रमुख है.

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हालांकि मनमोहन सिंह ने 2008 में अमेरिका के साथ सिविल न्यूक्लियर डील की, जिसकी वजह से सरकार पर संकट भी आया लेकिन सरकार बच गई थी. 2009 के आम चुनाव में मनमोहन सिंह की अगुवाई में कांग्रेस को पहले ये ज्यादा सीट मिली, लेकिन दूसरे कार्यकाल में लचर प्रशासन और घोटालों के आरोप की वजह से कांग्रेस की 2014 में दुर्दशा हो गई थी.

मनमोहन सिंह के दूसरे कार्यकाल में कई नौकरशाहों की ताकत में इजाफा हो गया, जिसकी वजह से अहम मसलों पर सही फैसला नहीं हो पाया था. मसलन निर्भया कांड के बाद दिल्ली पुलिस कमिश्नर को न हटाना, जबकि तत्कालीन दिल्ली की सीएम इसके लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा रहीं थीं. सरकार ने अन्ना और रामदेव के आंदोलन से निपटने में भी सही तरीके से प्रयास नहीं किया जिसका राजनीतिक फायदा बीजेपी और अरविंद केजरीवाल को मिला.

मनमोहन सिंह मुफीद?

तीन मुख्यमंत्रियों के शपथ समारोह में मायावती और अखिलेश यादव का न आना महागठबंधन के लिए आशंका जाहिर करता है. ऐसा लग रहा है कि मायावती और अखिलेश यादव को राहुल गांधी के नेतृत्व को लेकर दिक्कत है, जिसे सार्वजनिक नहीं किया जा रहा है. लेकिन ममता बनर्जी ने कई बार इजहार इसका इजहार किया है. ऐसे में मनमोहन सिंह एक ऐसा चेहरा हैं कि जिनकी स्वीकार्यता सबके बीच में है.

दिल्ली का रास्ता यूपी से जाता है. ये सबको मालूम है. बीजेपी ने भी कई बार ये रास्ता यूपी से तय किया है. यूपी में बीजेपी को रोकना ही सबसे बड़ा काम है. कांग्रेस को यूपी में बड़ा गठबंधन खड़ा करने की जरूरत है. समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी और आरएलडी का गठबंधन लगभग फाइनल है. कांग्रेस को लेकर उहापोह बना हुआ है कि आखिर कांग्रेस को इस गठबंधन में जगह मिल पाएगी?

मनमोहन सिंह प्रासंगिक

(फोटो: फेसबुक से साभार)

देश की राजनीति में उथल-पुथल हो रहा है. सवाल बेरेजगारी और नोटबंदी से उपजे आर्थिक संकट से है. इसके बारे में मनमोहन सिंह का नजरिया अलग है. इसलिए मनमोहन सिंह की प्रासिंगकता बढ़ सकती है. जिन नीतियों का विरोध बीजेपी ने सरकार में न रहते हुए किया बाद में उसको लागू किया गया लेकिन ये नीति नोटबंदी के कारण सफल नहीं हो पाई है.

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हालांकि इस दौर से देश को निकालने के लिए मनमोहन सिंह से बेहतर कोई विकल्प कांग्रेस के पास नहीं हैं. बकौल कांग्रेस देश की आर्थिक हालत खस्ता है. इस संकट से मनमोहन सिंह ही निकाल सकते हैं. हालांकि मनमोहन सिंह की उम्र को लेकर सवाल उठ सकता है लेकिन वो अभी स्वस्थ हैं.

राहुल बनाम मनमोहन सिंह

तीन राज्यों में कांग्रेस को सफलता मिली है. इससे निश्चित तौर पर राहुल गांधी को बतौर नेता स्थापित किया है. राहुल गांधी के बारे में सारे संशय दूर हो रहे हैं. कांग्रेस के भीतर उन्होंने बेहतरीन सामंजस्य बैठाया है. वरिष्ठ नेताओं के साथ रिश्ते बनाने में सफलता हासिल की है. युवा नेताओं को तरजीह दे रहे हैं लेकिन ओल्ड गार्ड को नाराज नहीं कर रहे हैं.

तीनों राज्यों में मुख्यमंत्री बनाने में परिपक्व निर्णय लिया है. कांग्रेस के भीतर इससे स्वीकार्यता बढ़ी है. हालांकि गठबंधन को लेकर सहयोगी दल राहुल गांधी को लेकर सशंकित दिखाई दे रहे हैं. इसका माकूल जवाब कांग्रेस को ढूंढने की जरूरत है. इसमें जांचा-परखा चेहरा मनमोहन सिंह का नजर आता है. गठबंधन को सफलतापूर्वक चलाने का 10 साल का अनुभव है. कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं के बीच सामंजस्य बनाने में माहिर हैं.