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यूपी चुनाव में नेपाली लोगों की दिलचस्पी!

यूपी के विधानसभा चुनाव पर नेपाल से लगी सरहद के पार रहने वाले लोगों की भी नजर

Amitesh

नेपाल से सटी सीमा पर भी हमेशा की तरह चहल-पहल है. उत्तर प्रदेश के बहराइच जिले की सीमा नेपाल से लगती है जिसे रूपेडिहा बॉर्डर कहा जाता है. रूपेडिहा के बाजार में इन दिनों आने वाले भारत के लोग हों या नेपाल के लोग, सबके भीतर इस बात को जानने की आतुरता है कि आखिर यूपी विधानसभा चुनाव में क्या होगा?

क्या इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का जादू चलेगा या फिर अखिलेश यादव या मायावती का सिक्का चलेगा.


रूपेडिरा बॉर्डर पर चाय की दुकान सजी है और हर रोज की तरह सीमा के उस पार के कुछ लोग भी यहां चाय पीने के लिए आ ही गए हैं. बातचीत शुरू होती है और अपने-अपने हिसाब से सब अपनी-अपनी राय रखते हैं. चाय की दुकान चलाने वाले सोहन लाल कहते हैं कि इस बार तो फूल का ही जोर है.

तो दूसरी तरफ बगल में ही एक अस्पताल में अपने पिता का इलाज कराने आए नानपुर यादव कहते हैं कि ‘जो भी हो हम तो आपन वोट अखिलेश के ही देहब.’

सबकी अपनी प्रिय पार्टी

जब हमने वहां मौजूद और लोगों को कुरेदना शुरू किया तो फिर धीरे-धीरे वहां चाय पर चुनावी चर्चा शुरू हो गई. रूपेडिहा सीमा पर ही एक अस्पताल में तीस सालों से काम कर रहे आसाराम सोनकर ने कहा कि ‘एक बार परिवर्तन की जरूरत है और हाथी को लोग वोट दें तो बेहतर है.’

इस पूरी बातचीत में नेपाल सीमा के पास के इलाकों में भी जाति का मुद्दा हावी रहा. सीमा के उस पार रहने वाले नेपाली नागरिक रमेश मिश्रा भी इस बातचीत में दिलचस्पी लेते हुए कह गए ‘इस बार तो साईकिल पंचर होगी और हाथ भी टूटेगा.’

रमेश मिश्रा जैसे बहुत से लोग हैं जो कि उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में खूब दिलचस्पी ले रहे हैं. रमेश मिश्रा कहते हैं ‘सीमा के इस पार हो या उस पार सबमें बेटी-रोटी का रिश्ता है तो दिलचलस्पी तो रहेगी ही. उनका कहना है कि हमारे घर की शादी जब एक-दूसरे देश में है, सबकुछ एक ही जैसा है तो नजर तो रहेगी ही.’

बाबा रामदेव के पंतजलि योग केंद्र से हफ्ते भर तक अपना इलाज करा कर लौट रहे दिनेश डांगी का कहना है कि ‘हमारा भारत से इस तरह का संबंध है कि एक-दूसरे के चुनावों में इंटरेस्ट तो रहेगा ही.’

नेपाल के तुलसीपुर दांगे इलाके में एक डेयरी फॉर्म चलाने वाले दिनेश डांगी का कहना है कि हम तो भारत से ही अपनी डेयरी के लिए कपिला पुश आहार ले कर जाते हैं.

यह बताने के लिए काफी है कि भारत और नेपाल के बीच आखिरकार किस तरह का रिश्ता है और दोनों एक-दूसरे पर किस हद तक निर्भर हैं.

रूपेडिहा में कपड़े की दुकान चलाने वाले अब्दुल सत्तार का कहना है ‘नेपाल की वजह से ही यहां रूपेडिहा का मार्केट चलता है. अधिकतर माल वहीं सप्लाई होता है. यहां कपड़े के दुकानों के अलावा कई किराना की दुकानें हैं जो नेपाल के लोगों के दम पर ही चलती हैं.’

सत्तार का कहना है कि यही हाल सीमा के उस पार नेपालगंज का है जहां भारत के खरीदार जाते हैं.

चावल और नमक का बड़ा बाजार है नेपाल

भारत से नेपाल में चावल की सप्लाई खूब होती है. बहराइच की मंडी से निर्यात होने वाले चावल का करीब 90 फीसदी केवल नेपाल में ही निर्यात होता है.

बहराइच मंडी के सचिव सुभाष सिंह बताते हैं कि पिछले वित्तीय वर्ष यानी 2015-16 में लगभग पांच लाख नब्बे हजार क्विंटल चावल का निर्यात नेपाल को किया गया जिसकी कीमत 1 अरब 21 करोड़ से भी ज्यादा थी.

बहराइच मंडी के भीतर इन दिनों धान लेकर आने वाले किसानों का मेला लगा है. आढ़ती किसानों से धान लेकर इसे बगल की राइस मिल में दे रहे हैं जिसके बाद तैयार चावल को नेपाल के लिए निर्यात किया जाता है.

व्यापारी राजीव कुमार साहू और कन्हैयालाल साहू का कहना है कि यहां से चावल रूपेडिहा  बॉर्डर से नेपाल भेजा जाता है. इसके अलावा मक्का की भी डिमांड नेपाल से होती है जिसे इस मंडी से सप्लाई किया जाता है.

नेपाल के लिए भारत से नमक भेजा जाता है. रूपेडिहा बॉर्डर के उस पार तीन किलोमीटर की दूरी पर ही नेपाल के चौलिका में साल्ट ट्रेडिंग कॉरपोरेशन लिमिटिड का गोदाम है. नेपाल के मिडिल वेस्ट जोन के इस ऑफिस और गोदाम में यूपी के गोंडा से रोजाना ट्रक से नमक का आयात होता है.

फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में चौलिका के इस ऑफिस में काम कर रहे असिस्टेंट मैनेजर धीरेंद्र सिंह ने बताया कि ‘नेपाल के करीब दस से बारह मिडिल वेस्ट जिलों में यहां से नमक की सप्लाई होती है. जिसकी खपत सालाना करीब तीन से चार लाख बोरे की होती है.’

नोटबंदी की मार से मंडी में भी कुछ वक्त के लिए मंदी छा गई थी. किसान से लेकर व्यापारी सब परेशान थे. नेपाल से होने वाले कारोबार पर भी नोटबंदी का थोड़ा असर पड़ा था. लेकिन, अब अब नोटबंदी कोई मुद्दा नहीं रह गया है.

फिलहाल, नेपाल के साथ व्यापार भी चल रहा है और चुनावी चकल्लस भी.