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पहले ठेस बाद में खेद– हे भगवान! नरेश अग्रवाल ने शराब में घोल दी आस्था?

नरेश अग्रवाल सिर्फ विरोध करने की राजनीति के बहाव में कुछ भी बोलने पर आमादा हैं.

Kinshuk Praval

राज्यसभा में सभापति के सामने सियापति को लेकर समाजवादी पार्टी के नेता नरेश अग्रवाल का बयान किसी पियक्कड़ को भी नागवार गुजरेगा. नरेश अग्रवाल के बोल फूटे और उन्हें व्हिस्की, रम, जिन और ठर्रे में ईश्वरीय तुकबंदी नजर आने लगी.

नरेश अग्रवाल समझ ही नहीं सके कि वो नेतागीरी के उफान में आस्था और धर्म पर क्या कुछ बोल बैठे. राज्यसभा के सदन की गरिमा को इतने साल बाद भी नहीं समझे. अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड़ में उन्होंने जाने-अनजाने कितने दूसरे विवादास्पद बयानों के लिये दरवाजे खोल दिए.


संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने बिना देर किए ही इस बयान को हिंदू धर्म का अपमान बता डाला. बयान से हुए हंगामे के बाद नरेश अग्रवाल के इस बयान को राज्यसभा की कार्यवाही के रिकॉर्ड से ही हटा दिया गया.

आस्था पर नरेश अग्रवाल का ये तंज पूरी तरह उसी तुष्टीकरणनीति का नमूना था जिसे देश की सियासत आजादी के बाद से सींचती आई है. उसी सोच के शिकार नरेश अग्रवाल सिर्फ विरोध करने की राजनीति के बहाव में कुछ भी बोलने पर आमादा हैं. वो करोड़ों की भावनाओं में शराब मिलाने का काम कर गए.

दरअसल राज्यसभा में बहस की शुरुआत मॉब लिंचिंग के मुद्दे पर हुई. विपक्ष के लिये फिलहाल ये मुद्दा सियासत का सबसे बड़ा हथियार है. कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद ने मॉब लिंचिंग के मामले में सरकार पर कार्रवाई के नाम पर नाकामी और मिलीभगत का आरोप लगाया. जाहिर तौर पर मॉब लिंचिंग को लेकर देशभर में प्रतिक्रियाएं बढ़ रही हैं. खुद राष्ट्रपति और पीएम मोदी ने भी गौरक्षा के नाम पर गुंडागर्दी को बर्दाश्त न करने की बात की है.

लेकिन नरेश अग्रवाल कुछ और ही सोच कर संसद पहुंचे थे. गौरक्षा से जुड़ी हिंसा की घटनाओं पर वो आपा खो बैठे और उन्होंने तंज किया कि ‘गाय हमारी माता है तो फिर बैल क्या हुआ? बछड़ा हमारा क्या हुआ?’

इसके बाद नरेश अग्रवाल बोलते-बोलते व्हिस्की से ठर्रे की बोतल तक पहुंच गए. उनकी बहकती सोच और फिसलती जुबान सत्ता पक्ष को बड़ा मौका दे गई.

इससे पहले भी नरेश अग्रवाल के विवादित बयान सुर्खियां बने हैं. ऐसा लगता है कि वो यूपी में सपा नेता आजम खान से किसी भी मामले में पीछे नहीं रहना चाहते हैं.

संसद में कश्मीर मुद्दे पर बोलते बोलते वो पाक अधिकृत कश्मीर यानी पीओके को आजाद कश्मीर बोल गए थे. राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों और खासतौर से संवेदनशील मामलों में नेताओं को भौगोलिक समझ के साथ इतिहास का भी ज्ञान होना जरूरी होता है. लेकिन नरेश अग्रवाल को पीओके आजाद कश्मीर दिखाई दे रहा था. पाकिस्तान के दावों को समाजवादी पार्टी का एक वरिष्ठ नेता संसद के भीतर मजबूत करता दिखाई दे रहा था. क्या सोच में यही बसा हुआ है?

नेताओं की जिम्मेदारी संयमित और जिम्मेदार बयानों की होती है ताकि अगर समाज में धर्म के ठेकेदार दरार डालने का काम कर रहे हों तो ये प्रतिनिधि उन खाइयों को पाटने का काम करें. लेकिन नरेश अग्रवाल हिंदू देवी-देवताओं पर विवादित बयान देकर कौन से सेक्यूलरिज्म की नुमाइंदगी करना चाहते हैं ये सोचने की बात है.

गौ रक्षा के नाम पर गुंडागर्दी कतई बर्दाश्त नहीं की जा सकती है. लेकिन इसे सांप्रदायिक रंग देने से फिजा खराब ही होगी. इससे पहले भी नरेश अग्रवाल फिल्म अभिनेता सलमान खान को सजा मिलने को सांप्रदायिक रंग दे चुके हैं. हिट एंड रन केस में सलमान को पांच साल की सजा मिलने पर उन्होंने कहा था कि सलमान को मुसलमान होने की सजा मिली है.

उन्होंने परिवारवाद के मुद्दे पर पीएम मोदी को निशाना बनाया था. उन्होंने कहा था कि 'पीएम मोदी ने शादी नहीं की है इसलिये वो क्या जानें कि परिवार का आनंद क्या होता है.'

नरेश अग्रवाल ने रेप के मामले में भी विवादास्पद बयान दिया था. सबसे पहले तत्कालीन एसपी सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने यह कहकर बवाल खड़ा कर दिया था कि रेप के मामलों में लड़कों से गलती हो जाती है, इसके लिए उन्हें फांसी पर नहीं लटकाया जाना चाहिए. उसके बाद गैंगरेप के मामले में नरेश अग्रवाल ने बेहद विवादित बयान दिया था. नरेश अग्रवाल ने एक मामले में रेप पीड़िता के अपहरण होने के दावे को यह कहकर खारिज कर दिया कि एक गाय के बछड़े को भी जबरदस्ती नहीं ले जाया जा सकता.

नरेश अग्रवाल की बीजेपी से नाराजगी की एक सोलह साल पुरानी वजह भी है. साल 2001 में यूपी में वो राजनाथ सिंह की सरकार में ऊर्जा मंत्री थे. लेकिन उन्हें तत्कालीन सीएम राजनाथ सिंह ने कैबिनेट से बर्खास्त कर दिया था. उसके बाद नरेश अग्रवाल पार्टी दर पार्टी अपने ठिकाने बदलते रहे. उनके बारे में कहा जाता है कि 'जहां नरेश वहां सरकार.

यूपी की सियासत के माहिर खिलाड़ी हैं नरेश अग्रवाल और पाला बदलने के बड़े खिलाड़ी भी. वो हवा का रुख भांपने के लिये जाने जाते हैं. बीएसपी में उनका भी खूब मान सम्मान हुआ तो एसपी में तो वो पूरे कुनबे के साथ शामिल हो गए थे. अवसरवादिता की राजनीति में वो अपने बयानों के लिये भी अवसर तलाशते हैं. ऐसा ही मौका उन्हें संसद में मिल गया जहां बाद में उन्हें माफी भी मांगनी पड़ गई.

संसद में बैठे जनता के प्रतिनिधियों की असंवेदनशीलता को नरेश अग्रवाल जैसे नेता नुमाया करते हैं. पहले बयान दे कर विवाद खड़ा करना और फिर जब देखना कि हालात गंभीर होने पर नुकसान भारी हो सकता है तो तुरंत खेद भी जता देना. नरेश अग्रवाल ने संसद में अपने बयान पर खेद भी जता दिया. उनका कहना था कि उनके बयान से अगर किसी को ठेस पहुंची है तो वो खेद व्यक्त करते हैं. बहरहाल ठेस पहुंचाने वाले बयानों की माफी से ठेस कम नहीं होती है. नरेश अपने बयानों से सियासत में जो घोलना चाहते थे वो काम कर चुके हैं.