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नरेंद्र मोदी के इरादे हैं पहले से अलग, पर कब मिलेगा रिजल्ट?

नरेंद्र मोदी के लिए व्यापक जनसमर्थन लोगों को हुई असुविधा के बावजूद बरकरार है.

Aakar Patel

फ्रांसीसी नेता वैलेरी जिस्कां दीस्तां के बारे में कहा जाता है कि यूरोपीय संघ बनाने के विचार से तो वे काफी उत्साहित हुए लेकिन उसकी विस्तृत रूपरेखा ने उन्हें उबा दिया. मुझे अक्सर लगा है कि हमारी वर्तमान सरकार ज्यादातर चीजों में ऐसा ही रवैया अपनाती है.

काले धन के खिलाफ नरेंद्र मोदी द्वारा शुरू किए गए हमले के दो सप्ताह बीत चुके हैं और यह कहना अब जायज होगा कि दो चीजों को स्वीकार किए जाने की जरूरत है. पहला- नरेंद्र मोदी के लिए व्यापक जनसमर्थन लोगों को हुई असुविधा के बावजूद बरकरार है. दूसरा- नकद की कमी से आर्थिक समस्या के पैदा होने की सच्चाई कई रिपोर्टों के जरिए खुलकर सामने आ रही है.


सौजन्य: पीटीआई

विस्थापित मजदूरों को छोड़नी पड़ रही है नौकरी

चाहे सूरत हो लुधियाना या मुरादाबाद, सारी जगहों से एक ही जैसी खबरें मिल रही हैं और ये सभी उत्पादन में लगे इलाके हैं. इन खबरों में कहा जा रहा है कि फैक्ट्रियां या तो अपनी क्षमता से कम उत्पादन कर रही हैं या फिर बंद हो रही हैं. मांग की कमी और नकद के अभाव में कच्चे माल का न मिल पाना इसकी बड़ी वजह है. मजदूरों को काम में लगाए रखने को लेकर फैक्ट्रियां उदासीन हैं और यह एक आम हालत है. इसलिए विस्थापित मजदूरों को नौकरी छोड़नी पड़ रही है या उन्हें फिलहाल अपने घर लौटने को कहा जा रहा है. हालांकि हमें अभी भी मुकम्मल आंकड़ों के आने का इंतजार करना होगा लेकिन अभी आ रही किस्साई खबरें अगर किसी बड़ी घटना की तरफ इशारा करती हैं तो दिसंबर और नए साल में मुश्किल हो सकती है.

बड़ी घोषणाएं मोदी शासन की खास बात

फिर जानबूझकर इस अनिश्चितता को न्यौता देने के बावजूद मोदी को मिल रहे व्यापक समर्थन (जिससे इनकार नहीं किया जा सकता) की वजह क्या है? इसे ध्यान से देखने की जरूरत है क्योंकि मोदी सरकार ने अपना आधा कार्यकाल पूरा कर लिया है. शानदार योजनाओं के लोकार्पण और बड़ी घोषणाएं अब तक चले मोदी शासन की खास बात है. इन लोकार्पणों और घोषणाओं ने देश की कल्पनाशक्ति को तो अपनी गिरफ्त में लिया ही है, साथ-साथ निश्चित तौर पर मीडिया के ध्यान को अपनी तरफ खींच लिया है.

मेक इन इंडिया, बुलेट ट्रेन, स्मार्ट सिटी, स्वच्छ भारत, सर्जिकल स्ट्राइक, नोटबंदी. ये सारी और मोदी सरकार की कई और पहलकदमी एक खास तरीके की तरफ इशारा करती हैं. वे अतीत की सरकारों के तौर-तरीकों से पूरी तरह से छुटकारा पाने की कोशिशों का प्रतिनिधित्व करती हैं. वे पुराने और बेकार के तरीकों को खत्म करने और उसकी जगह कुछ नया और बेहतर लाने का भरोसा देती हैं.

क्या उन्हें कोई सफलता मिली? इनका वास्तविक असर क्या हुआ? यह सब हम समय के साथ जान पाएंगे. एक पहलू पर गौर करते हैं. उड़ी की घटना के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राइक का उद्देश्य नियंत्रण रेखा के पार से जारी हिंसा का जवाब देना था. खबरों में यह कहा गया है कि सर्जिकल स्ट्राइक के बाद से भारतीय सेना 20 जवानों को गंवा चुकी है. यह मुख्य रूप से इसलिए हुआ क्योंकि नियंत्रण रेखा, जो सीजफायर के दौरान मोटे तौर पर शांतिपूर्ण थी, सर्जिकल स्ट्राइक के बाद आग की लपटों में चली गई.

रक्षा मंत्री अब कहते हैं कि सीजफायर फिर से लागू है, लेकिन इस बीच 20 भारतीयों की मौत हो गई. तो क्या सर्जिकल स्ट्राइक एक सही फैसला था? इस सवाल का ‘ना’ में या किसी दूसरे तरीके से जवाब देना राष्ट्रविरोधी है, इसलिए हम इसे यहीं छोड़ देते हैं. मुझे फिर भी यह कहना है कि भारतीय जवानों को पूजा तो जाता है और उनसे शहीद होने की अपेक्षा भी की जाती है. उनके योगदान के लिए एक किस्म की श्रद्धा तो है, पर उनके जीवन के लिए वास्तविक सम्मान नहीं.

वास्तविक प्रभावों को दिखने में अभी लगेगा वक्त

बड़ी घोषणाओं के फायदे और नुकसान को लेकर हम निश्चित नहीं हैं और ऐसा कई घोषणाओं के बारे में कहा जा सकता है. निश्चित तौर पर काले धन के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक के वास्तविक प्रभावों को दिखने में अभी वक्त लगेगा. लेकिन बुलेन ट्रेन का क्या हुआ, जिस पर हम एक लाख करोड़ रूपये खर्च कर रहे हैं? उस कूटनीतिक ताकत और प्रधानमंत्री के निजी संबंधों का क्या हुआ, जिसका इस्तेमाल हम न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप में जगह पाने के लिए करने वाले थे?

इनके नतीजों का सावधानी से विश्लेषण हुआ है, जैसी उम्मीद की जाती है? मैं यहां इरादे पर सवाल नहीं उठा रहा हूं, और मुझे कोई शक भी नहीं कि सरकार अच्छी सोच नहीं रखती है. मैं तो यह जानने को उत्सुक हूं कि सरकार के उत्साही होने को लेकर मेरा शक सही है या नहीं, जो पहले गोली चलाती है और बाद में निशाना साधती है.

मोदी हमारे सबसे विश्वसनीय नेता हैं. कोई दूसरा नेता राष्ट्र को पूरे आत्मविश्वास के साथ ऐसी हलचल में नहीं झोंक सकता, जैसा वे किसी भी दिन कर सकते हैं. वे अपने कार्यकाल के बचे हुए ढाई वर्षों तक लोकप्रिय बने रहेंगे और 2019 में भी उन्हें हराना मुश्किल होगा. उनके कामों का असर उसके पहले दिखने लगेगा और हम अपने और उनके लिए उम्मीद करते हैं कि जितना वे बड़े विचारों को लेकर उत्साहित थे, उतने ही दिलचस्प वे उनके विस्तार में भी होंगे.