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गुजरात में गुस्सा तो है लेकिन कांग्रेस के पास नेता कहां हैं?

नरेंद्र मोदी फिर से गुजरात के केयरटेकर की भूमिका में आ गए हैं, लेकिन क्या उनके ‘मैं ही गुजरात हूं’ का कांग्रेस के पास कोई जवाब है?

Sandipan Sharma

इसी साल जुलाई में कांग्रेस नेता अशोक गहलोत सूरत में जीएसटी हटाने की मांग कर रहे टेक्सटाइल ट्रेडर्स की एक सभा को संबोधित करने गए थे. आश्चर्यजनक रूप से वहां उनका सामना 'मोदी-मोदी' के नारों से हुआ, और भीड़ के तेवर देखते हुए खिसियाए गहलोत फटाफट वहां से खिसक लिए.

इस घटना को गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनाव को देखते हुए थोड़ा गहराई से समझने की जरूरत है, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक बार फिर से वह भूमिका निभाने को तैयार हैं, जिससे बाहर वो निकल ही नहीं पा रहे हैं. वह है गुजरात के मुख्यमंत्री की भूमिका.


गुजरात कारोबारियों का गढ़ है, जो कि- लोगों की मुंहजुबानी और जमीनी स्तर पर बीजेपी के अंदर फैली घबराहट को देखते हुए, लगता है कि सरकार से नाराज हैं. सरकार के विनाशकारी नोटबंदी के दांव के बाद जीएसटी लागू करने के फैसले ने उनके कारोबार को तबाह कर दिया है.

राजनीतिक जोड़-घटाने, कॉमन सेंस और जीवित रहने के संघर्ष की प्रवृत्ति को देखते हुए कहा जा सकता है कि लोग उस सरकार को जरूर सबक सिखाना चाहेंगे जिसने उनका जीवन मुश्किल कर दिया है. लेकिन फिर भी, जब कांग्रेस की एक टीम ने उनसे बात करने की कोशिश की, तो लोगों ने प्रधानमंत्री पर भरोसा जताते हुए उसे खदेड़ दिया.

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यह घटना मोटे तौर पर गुजरात के मूड को रेखांकित करती है. जी हां, लोग नाराज हैं, ट्रेडर्स, दलितों और पाटीदारों में गुस्सा है.

लेकिन, वह लोग राहत और समाधान के लिए कांग्रेस का मुंह नहीं ताक रहे हैं. वे लोग अपनी तकलीफ दूर करने और समाधान के लिए सिर्फ मोदी की तरफ देख रहे हैं. उनकी नजर में मोदी अंतिम अदालत हैं, जिनका ध्यान वो खींचना चाहते हैं.

एक चतुर राजनेता होने के नाते, मोदी इस बात को समझते हैं. इसलिए उन्होंने समय का पहिया उलटा घुमा दिया है. फिर से गुजरात के मुख्यमंत्री का चोला पहन लिया है, और फिर उन लोगों के लिए काम करने को तैयार हैं, जिन्होंने एक दशक से ज्यादा समय तक उन पर भरोसा जताया है.

इंडियन एक्सप्रेस ने सोमवार को लिखा है- वह गुजरात में चौथे कार्यकाल के लिए संघर्ष कर रहे हैं. गुजरात गौरव यात्रा के अंतिम दिन सोमवार को गांधीनगर में मोदी ने गुजरातियों का गुस्सा ठंडा करने के लिए लुभावनी बातों के साथ उनके वास्ते तोहफों की झड़ी लगाने के बाद, 'मैं समस्या हूं, मैं ही समाधान हूं' कहते हुए अपनी रणनीति का खुलासा किया था.

अपने खास अंदाज में जीएसटी को बाजार की तकलीफ का कारण मानते हुए उन्होंने इसके लिए कांग्रेस को बराबर का जिम्मेदार ठहराया. 'जीएसटी पर कांग्रेस, इस देश की सभी राजनीतिक पार्टियों समेत केंद्र सरकार ने सामूहिक फैसला लिया था. जीएसटी पर संसद ने फैसला नहीं लिया था, सभी राजनीतिक दलों की सरकारों ने यह फैसला लिया था. इसमें पंजाब और मेघालय की कांग्रेस सरकारें भी शामिल थीं. केंद्र सरकार उस काउंसिल का सिर्फ तीसवां हिस्सा थी, जिसने जीएसटी पर फैसला लिया था. चूंकि कांग्रेस भी जीएसटी पर लिए गए फैसले में साझीदार थी, इसलिए कांग्रेस को जीएसटी के बारे में झूठ फैलाने का अधिकार नहीं है.'

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शायद यही वह सटीक बिंदु है, जिससे आप समझ सकते हैं कि मोदी ने अपनी गलती स्वीकार कर ली है. मोदी ने इसके बाद कहा कि उनकी सरकार जीएसटी लागू करने से पैदा हुई समस्याओं को दूर करने के लिए कोशिश करेगी. यहां ध्यान देने की बात है कि पहले कारोबारियों की बात नहीं सुनकर उनकी सरकार ने जो रायता फैला दिया है, अब वो उसे ठीक करने के लिए तैयार हैं. खुद को मुक्तिदाता और हर बीमारी के इलाज के तौर पर स्थापित करने के बाद मोदी अपने पसंदीदा विषय पर लौट आते हैं- गुजरात का सम्मान.

अहमदाबाद में पीएम नरेंद्र मोदी की रैली के दौरान की तस्वीर

यह भावना ना जाने किस कारण से ऐतिहासिक भूलों- काल्पनिक और वास्तविक- को सुधारने की ख्वाहिश से आवेशित मतदाताओं के एक बड़े वर्ग के मन में बसी हुई है. बदले की यह भावना मतदाताओं को अपना वर्तमान और भविष्य भूलने पर मजबूर कर देती है और जिसका फायदा अधिकांशतः बीजेपी को मिलता है. इसलिए मोदी मतदाताओं की इस भावना को उभारने का कोई मौका नहीं चूकते, जिससे स्थापित होता हो कि उनके मौजूदा हाल और परेशानियों के लिए कोई और जिम्मेदार है.

उन्होंने यह साबित करने के लिए कि कांग्रेस गुजरात और यहां के लोगों से नफरत करती है, (यह हर राज्य में चुनाव से पहले छोड़ा जाने वाला जाना-माना जुमला है) सारे तीर-तलवार चलाए. मोदी ने कांग्रेस पर राज्य के विकास की अनदेखी करने इसके नेताओं का अपमान करने का आरोप लगाया. मोदी ने कांग्रेस पर गुजरात के हर कद्दावर नेता के खिलाफ साजिश करने का आरोप लगाया, जिनमें जाहिर है कि वो खुद भी शामिल हैं.

उनके भाषण का सबसे रोमांचक बिंदु मोरारजी देसाई के फेवरेट ड्रिंक को लेकर 'अफवाह' फैलाने का आरोप था. (यहां बताते चलें कि, मोरारजी खुद भी अपने सुबह के पेय को लेकर बहुत निरपेक्ष थे. इसके बारे में अमरीकियों के सामने भी बात करने में उन्हें कोई हिचक नहीं थी.)

तो क्या कांग्रेस के पास 'मैं गुजरात हूं' और 'इसकी अस्मिता के लिए लड़ूंगा' के साथ मैदान में उतरने वाले मोदी से मुकाबला करने के लिए भरपूर असलहा-बारूद है? फिलहाल तो कांग्रेस के पास कोई जवाब नहीं है. कांग्रेस के साथ समस्या यह है कि मोदी अपने ठिकाने पर खड़े होकर दहाड़ रहे हैं और मुठ्ठियां भींच रहे हैं, जबकि कांग्रेस के पास गुजरात के रिंग में उनके सामने उतारने के लिए कोई नेता नहीं है.

हालांकि राहुल गांधी हवा में मुक्के भांज रहे हैं, लेकिन किसी दमदार स्थानीय नेता के अभाव में लड़ाई एकतरफा रहने वाली है. यह कुछ-कुछ फ्लॉयड मेवेदर और किसी गैरपेशेवर अनजान बॉक्सर के बीच फाइट जैसा है. कुछ-कुछ गहलोत बनाम मोदी जैसी हास्यास्पद स्थिति है.

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यह जानने के लिए कि गुजराती किस पर पैसा लगाएंगे, आपको किसी सट्टेबाज की सलाह की जरूरत नहीं है, हां ये जरूर हो सकता है कि नोटबंदी और जीएसटी के कारण उनके पास पैसा कुछ कम हो.