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मोदी जी इमोशनल अत्याचार बंद करिए

बैंकों में पैसा नहीं है. एटीएम मशीनों में नोट नहीं हैं. हर कोई दरिद्र हो गया है.

Sandipan Sharma

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इमोशनल अत्याचार बंद करना चाहिए. बस बहुत हो गया. हर तरफ अफरातफरी है. लोग दुखी, परेशान हैं. वह इसे देखें और कुछ करें. और वादे न करें, खतरे न बताएं बल्कि लोगों पर तरस खाएं, उनकी मदद करें और कुछ कदम उठाएं.

जहां देखो अफरातफरी है. जिंदगी थम गई है, बाजार बंद हैं, मॉल्स में सन्नाटा है, सड़कें खाली हैं, जिन चौकों पर दिहाड़ी मजदूर काम की तलाश में बैठते थे, वह बेबीलोन जैसे नजर आ रहे  हैं.


रोजाना लोग सुबह को बदहवास से उठते हैं और बस एक चीज की तलाश में रहते है: कुछ बैंक नोट, उनकी मेहनत की कमाई, जिससे वह अपनी जिंदगी चला सकें, लेकिन हाथ कुछ नहीं लगता.

बैंकों में पैसा नहीं है. एटीएम मशीनों में नोट नहीं हैं. हर कोई दरिद्र हो गया है और अपना ही पैसा भिखारी की तरह मांग रहा है.

आम आदमी को मुश्किल उठानी पड़ रही है, कैश के लिए लगी कतारों में उसकी पिटाई हो रही है, छापेमारी हो रही है, डराया धमकाया जा रहा है. बताया जा रहा है कि अगला महीना भी मुश्किल ही रहेगा. 1947 तक के रिकॉर्ड देखने की धमकी. शुक्रिया.

रोएं लेकिन जनता की कुर्बानियों पर

देश के लिए उन्होंने जो त्याग किए हैं, उनके लिए उन्हें रोने की जरूरत नहीं है. हम उनका सम्मान करते हैं. उन्हें रोना चाहिए, भारत की जनता की कुर्बानियों के लिए, जो वह रोज कर रही है क्योंकि आनन-फानन में लोगों पर एक योजना थोप दी गई है.

उन्हें गलियों और सड़कों पर मचे संग्राम की चीखों को सुनना चाहिए. लोग सरकार को अपना दुश्मन बता रहे हैं. ये हालात प्रधानमंत्री के लिए वाटरलू बन सकते हैं.

दिसंबर में नई लड़ाई की उनकी धमकी टोक्यो की प्राचीर से एक और गरिमामयी युद्ध के वादे की तरह है जबकि घर में स्टालिनग्राड की लड़ाई छिड़ी है. पहले तो लोगों का इस जंग से जिंदा निकलना जरूरी है. दिसंबर अभी दूर है. यह विश्व युद्ध के आर्नहेम पुलों की तरह है, बहुत दूर.

हां, काले धन के खिलाफ जंग छेड़नी जरूरी थी. लेकिन इतनी जल्दबाजी की क्या जरूरत थी? पहले पर्याप्त नोट छाप लेते, उन्हें बैंकों तक पहुंचा देते और एटीएम मशीनें तैयार कर लेते. लोगों को होने वाली परेशानी के बारे में बिल्कुल नहीं सोचा?

जल्दबाजी में वह वहां पहुंच गए हैं जहां अर्थशास्त्री पांव रखने से घबराते हैं. बिना किसी योजना के. बिना किसी रणनीति के. ठीक वैसे ही जैसे कोई अतिउत्साही जनरल बस हमला बोल देता है. जबकि उसके पास न तो पर्याप्त गोला बारूद है, ना फौज, ना रसद और न ही भारत के पैदल सैनिकों और उनकी जिंदगी की कोई परवाह है. बस बड़ा धमाका करने के लिए इकोनॉमिक्स की जगह ड्रामाटिक्स से काम लिया जा रहा है.

वह लोगों से और तकलीफें उठाने को कहते हैं और बदले में सपनों के भारत का वादा करते हैं. स्वच्छ भारत की तरह? स्मार्ट सिटीज की तरह? सर्जिकल स्ट्राइक से पाकिस्तान को दबाने के वादे की तरह? हर भारतीय के खाते में 15 लाख रुपए आने के वादे की तरह? नमामि गंगे की तरह? कश्मीर में नए सवेरे की तरह?

सपनों का भारत कैसे बनेगा?

ठीक है, इतिहास की बात करते हैं, ठीक आजादी के समय की. 2016 से शुरू करते हैं. इस सरकार ने पनामा पेपर्स लीक को लेकर क्या किया है, जिसमें भारत से टैक्स की चोरी करने वालों के नाम हैं. उनमें से कितने पकड़े गए, कितनों को सजा हुई?

विदेशों में गैर कानूनी खातों में जमा 90 लाख करोड़ में से कितनी राशि की पहचान हुई और उसे भारत लाकर हर भारतीय को बांटा गया? 15 लाख प्रति व्यक्ति के हिसाब से? जो वादे 2013-14 में किए थे उनका क्या हुआ?

थोड़ा और पीछे जाते हैं. अब तो 1947 के बाद से जो एक एक पैसा खर्चा गया है, उसका हिसाब होगा. ऐसे में हमें ये भी जानना चाहिए कि 2014 में बीजेपी के पास अपनी चुनावी मुहिम के लिए इतना पैसा कहां से आया?

1947 से लेकर अब तक राजनीति पार्टियों के खाते सार्वजनिक होने चाहिए. पता लगना चाहिए कि थ्री-डी होलोग्राम, हवाई जहाज और रैली के लिए पैसा कहां से आया. देखते हैं कि अगले साल उत्तर प्रदेश और पंजाब  में कैसे जुमला पार्टियां होती हैं.

भारत कैसे सपनों का भारत बन सकता है, जब हर आम आदमी बैंकों में लाइन लगाकर ईमादारी का प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए मजबूर होगा? जब अपने ही पैसे को पाने के लिए उसे खाली एटीएम के सामने लाइन लगानी होगी?

जब पाई-पाई जमा कर की गई बचत गैरकानूनी हो जाए? जब सब जगह डर, दहशत और अफरातफरी हो? जब जेब में कैश रखने वाला व्यक्ति बैचेन हो जाए और उसे आपके इंस्पेक्टर का डर सताए? जब हर-हर का स्वर हाहाकार में बदल जाए?

इस बार हम भी देखेंगे

उन्होंने वादा किया है कि अब नकदी की जमाखोरी नहीं होगी क्योंकि बड़े नोट आ गए हैं. शायद दो हजार रुपए का नोट कुछ समय बाद अपने आप ही जलकर खाक हो जाएगा.

उन्होंने वादा किया है कि आतंकवादी गुटों को पैसा मिलना बंद हो जाएगा. शायद हवाला का चलन बंद हो जाएगा. उन्होंने वादा किया है कि जाली करेंसी बाजार से गायब हो जाएगी. शायद हमारा पड़ोसी दो हजार रुपए के नए नोट तैयार करना नहीं जानता.

जैसा कि फैज ने कहा है, हम देखेंगे.

हम देखेंगे कि महंगाई कितनी कम होती है, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं किफायदी दामों पर सब तक पहुंचती हैं या नहीं, नौकरी के अवसर कितने बढ़ते हैं, जीडीपी कितनी फैलती है और अफसरशाही अपने इस उसूल को छोड़ती है या नहीं, कि विकास के लिए भ्रष्टाचार जरूरी है.

अभी तो हमें बस ये दिख रहा है कि लोग कैश के लिए परेशान हैं. दिहाड़ी मजदूरों को काम नहीं मिल रहा है. छोटे कारोबारियों के पास माल खरीदने के लिए कैश नहीं है.

गृहणियों के पास सब्जी, दूध और दूसरी जरूरी चीजें खरीदने को पैसा नहीं है. उस बुढ़िया को चिंता है कि बुरे वक्त के लिए पाई-पाई जोड़ कर बचाए 15 हजार रुपए कहीं काला धन बन जाएं.

मशीनरी को कहिए तेजी से काम करे, और कैश का इंतजाम करे और अपने ही खातों से पैसा निकालने के लिए कतार में खड़े लोगों का शोषण बंद हो.

अबकी बार, नो इमोशनल अत्याचार