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बीजेपी नेताओं का मुंह बंद रखने की चुनौती पीएम के लिए सिरदर्द बन चुकी है

जब बुधवार को बिप्लब देब मोदी से मिलेंगे तो उन्हें अपना सिर झुका कर शर्मसार होने के लिए तैयार रहना चाहिए

Bikram Vohra

कल्पना कीजिए, आने वाले दिनों में खबर आती है कि प्रधामंत्री नरेंद्र मोदी बीजेपी कार्यकर्ताओं और नेताओं की एक नियमित क्लास लेंगे. इस क्लास में वे अपने कार्यकर्ताओं और नेताओं को बताएंगे कि कैसे अपना मुंह बंद रखे. यकीनन, आप इस खबर से हैरान नहीं होंगे.

बुधवार को मोदी त्रिपुरा के मुख्यमंत्री बिप्लब कुमार देब से मिलने वाले हैं. इन दोनों नेताओं के बीच एक गंभीर वार्ता होने की बात कही जा रही है. देब इन दिनों अपने अजीबोगरीब और बहुत हद तक बकवास बयानों की वजह से चर्चा के केंद्र में हैं. मसलन, देब ने बयान दिए कि महाभारत काल में इंटरनेट मौजूद था और युवाओं को सरकारी नौकरियों के पीछे भागने की जगह पान की दुकान खोलना चाहिए. ज्ञान का ये प्रदर्शन मानो काफी नहीं था कि फिर उन्होंने खुशहाल घर के राज बताकर अपने लिए उलझनें और बढ़ा ली.


बिप्लब ने बताया अच्छा प्रधानमंत्री बनने का राज

अपनी प्रतिभा के आवेग में बहते हुए अगरतला में देब ने कहा, 'एक व्यक्ति, जो अच्छा गृहस्थ नहीं है, अपने परिवार को खुश नहीं रख सकता, कभी भी देश को खुश नहीं रख सकता, अच्छा मुख्यमंत्री नहीं हो सकता और न ही एक अच्छा प्रधानमंत्री बन सकता है.'

जब देश का प्रधानमंत्री खुद एक 'बैचलर' हो, तब देब के इस बयान का क्या हश्र हो सकता है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. जाहिर है, यदि ऐसे बयान प्रधानमंत्री के लिए झुंझलाहट पैदा कर दे, तो फिर देब के लिए ये अच्छी खबर तो नहीं ही है. अब भला देब जैसे दोस्तों के होते हुए दुश्मनों की क्या जरूरत है? अब ऐसे बयानवीरों पर निगरानी रखना और उन्हें मौन का महत्व बताना, पीएम की फुलटाइम जॉब बनती जा रही है.

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हर सुबह जब प्रधानमंत्री जागते होंगे तब शायद यही सोचते होंगे कि आज कौन सा बीजेपी नेता अपने बेवकूफाना बयानों से उनका दिन खराब करने जा रहा है? उदाहरण के लिए, गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपानी की सर्च इंजन गूगल की तुलना नारद से करना.

पिछले सप्ताह के बयानवीर नेता का अवार्ड जहां देब ले गए, वहीं इस सप्ताह जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता को इस रेस में हराना मुश्किल लग रहा है. गुप्ता ने कठुआ बलात्कार की घटना को एक 'छोटी घटना' बताया और कहा कि इस पर इतना अधिक शोरशराबे की जरूरत नहीं थी. जाहिर है, मीडिया एक छोटी लड़की का बलात्कार, उसे दी गई यातना और हत्या पर काफी मुखरता से खबर दिखा रहा है. गुप्ता के शपथ लेने के चंद घंटों के भीतर ही उनका ये दिव्य ज्ञान हमारे पास आ टपका.

पीएम ने चेतावनी दी थी

आखिर इन नेताओं की विचार प्रक्रिया क्या है? क्या ये राजनीतिज्ञ बिना सोचे-समझे बात करते हैं? क्या उन्हें गलत सलाह मिलती है? या फिर कमअक्ल है कि उन्हें अपने शब्द इतने महत्वपूर्ण और संजीदा लगते है, जो जनता की बौद्धिक प्यास को बुझा सकते है. ऐसी प्रजाति के नेताओं का एक संगठित समूह है. इनके छुटभैये साथी इनके उटपटांग बयानों के लिए जमीन और समर्थन तैयार करते है. ऐसे बयानों से तंग आकर ही नरेंद्र मोदी ने पिछले हफ्ते बीजेपी नेताओं को अपना मुंह बंद रखने और मीडिया को मसाला न देने की चेतावनी दी थी. इस चेतावनी से ये संदेश भी निकलता है कि उनके बयान ठीक थे, यदि ये समस्या पैदा करने वाले मीडिया के लिए नहीं थे.

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सवाल है कि मोदी को क्या करना चाहिए था? उन्हें इन मूर्खतापूर्ण बयानों की निंदा करनी चाहिए थी, जिसका मीडिया से कोई लेना-देना नहीं है. कुछ दिनों बाद मोदी ने मुलाकात के लिए बेलगाम बिप्लब देब को नई दिल्ली बुला लिया.

जाहिर है, इस बैठक को आधिकारिक तौर पर सामान्य बातचीत के रूप में पेश किया जाएगा. लेकिन हर कोई ये चाहेगा कि प्रधानमंत्री बिप्लब देब से ये पूछे कि अयोग्य प्रधानमंत्रियों से आपका क्या मतलब है? आप कैसे किसी प्रधानमंत्री के खुशहाल घर से उसके महत्व और मूल्य को आंकते हैं?

यहां तक कि कांग्रेस भी मोदी पर इस तरह का जोरदार हमला नहीं कर सकती थी. सवाल बयान का नहीं है, जो मीडिया को मसाला देता है. सवाल ऐसे बयानों के बाद आने वाले फूहड़ और भद्दे स्पष्टीकरण का है, जो माफी के रूप में या रक्षात्मक रूप से दिए जाते हैं. जब बुधवार को बिप्लब देब मोदी से मिलेंगे तो उन्हें अपना सिर झुका कर शर्मसार होने के लिए तैयार रहना चाहिए.