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कभी ये शेर जुल्फीकार अली भुट्टो ने इंदिरा गांधी को सुनाया था

जो शेर बुधवार को लोकसभा की कार्रवाई के दौरान पीएम मोदी ने मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए सुनाया वही शेर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री जुल्फीकार अली भुट्टो ने शिमला समझौते के समय इंदिरा गांधी को सुनाया था

FP Staff

दुश्मनी जमके करो लेकिन ये गुंजाइश रहे

जब कभी हम दोस्त बन जाएं तो शर्मिन्दा ना हों.


हिंदी और उर्दू के मशहूर शायर बशीर बद्र का यह शेर इस वक्त राजनीतिक गलियारों में सुर्खियों में छाया हुआ है. लोकसभा में चर्चा के दौरान विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस शेर को सुनाया था, जिसके बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बशीर बद्र के इस कालजयी रचना का अपने भाषण में जिक्र किया था.

बशीर बद्र ने देश के बंटवारे के बाद इन पंक्तियों को लिखा था. शिमला समझौते के समय जुल्फिकार अली भुट्टो ने इंदिरा गांधी को भी यह शेर सुनाया था.

क्या कहा प्रधानमंत्री मोदी ने...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में मल्लिकार्जुन खड़गे पर तीखे हमले किए. उन्होंने कहा, "खड़गे जी ने बशीर बद्र की शायरी सुनाई है वो कर्नाटक के मुख्यमंत्री ने जरूर सुनी होगी. उन्होंने कहा, ‘दुश्मनी जमकर करो, लेकिन गुंजाइश रहे कि जब कभी हम दोस्त हो जाएं तो शर्मिंदा ना हों.’ कर्नाटक के सीएम ने आपकी ये गुहार जरूर सुनी होगी."

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी यहां ही नहीं रुके. उन्होंने खड़गे को टारगेट करते हुए कहा कि बशीर बद्र की शायरी की आगे की दो लाइन भी आपने याद कर ली होती तो देश को पता चलता आप कहां खड़े हैं उसी शायरी में बशीर बद्र ने कहा है "जी चाहता है सच बोलें, क्या करें, हौसला नहीं होता."

कौन हैं बशीर बद्र..!

बशीर बद्र को उर्दू का वह शायर माना जाता है जिसने कामयाबी की बुलन्दियों को फतह कर बहुत लम्बी दूरी तक लोगों की दिलों की धड़कनों को अपनी शायरी में उतारा है. साहित्य और नाटक अकादमी में किए गए योगदान के लिए उन्हें 1999 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया है.

-उनका पूरा नाम सैयद मोहम्मद बशीर हैं.

-भोपाल से ताल्लुकात रखने वाले बशीर बद्र का जन्म कानपुर में हुआ था.

-बशीर बद्र 56 साल से हिन्दी और उर्दू में देश के सबसे मशहूर शायर हैं.

-दुनिया के दो दर्जन से ज्यादा मुल्कों में मुशायरे में शिरकत कर चुके हैं.

बशीर बद्र आम आदमी के शायर हैं. ज़िंदगी की आम बातों को बेहद ख़ूबसूरती और सलीके से अपनी ग़ज़लों में कह जाना बशीर बद्र साहब की ख़ासियत हैं. उन्होंने उर्दू ग़ज़ल को एक नया लहजा दिया. यही वजह है कि उन्होंने श्रोता और पाठकों के दिलों में अपनी ख़ास जगह बनाई है.

(न्यूज़ 18 से साभार)