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मुसलमान सियासी बिरयानी के तेजपत्ते ही तो हैं!

बिरयानी के तेजपत्ते जैसा ही सुलूक सपा मुसलमानों के साथ कर रहे हैं

Krishna Kant

हाल ही में बसपा नेता नसीमुद्दीन सिद्दीकी ने कहा है कि 'मुसलमानों का हित बसपा में ही सुरक्षित है. उन्होंने आरोप लगाया कि सपा मतलब-परस्त है, काम निकलने पर किनारे कर देती है और मुसलमानों को सपा के इस दोहरे चरित्र को समझना होगा.'

हरदोई के गांधी मैदान में नसीमुद्दीन ने कहा,'बिरयानी में खुशबू के लिए मसालों के साथ ही तेजपत्ते का इस्तेमाल किया जाता है. बिरयानी बन जाने पर तेजपत्ते को फेंक दिया जाता है, वैसा ही सुलूक सपा की ओर से मुसलमानों के साथ किया जाता है.'


यह तुलना भी काफी मजेदार है और प्रासंगिक भी. चुनाव जीतकर कुर्सी पा लेने वाली पार्टियां और नेता सत्ता की बिरयानी उड़ाते हैं और मुसलमान तेजपत्ते की तरह फेंक दिया जाता है. उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव के पहले जिस तरह से मुसलमानों को अपनी तरफ लाने के लिए होड़ मची हुई है, यह होड़ खुद में सारी कहानी कहती है.

सभी पार्टियां खुलकर मुसलमानों को रिझाने में लगी हैं. सपा को यह भ्रम है कि मुसलमान उसकी धर्मनिरपेक्षता पर भरोसा करते हैं और अभी तक उसी के पाले में हैं. बसपा प्रमुख मायावती खुलकर हर मंच से अपील करने लगी हैं कि मुसलमानों को बसपा के साथ आना चाहिए. वे दलित-मुस्लिम गठजोड़ के सहारे सत्ता में आना चाहती हैं. कांग्रेस और भाजपा भी मुसलमान वोटों को अपनी तरफ खींचने के तमाम प्रयास करने में लगी हैं.

सपा के सत्ता में रहने के दौरान यूपी में दंगों का कीर्तिमान कायम हुआ. सपा का शासन होते हुए वह इन दंगों को रोकने में नाकाम रही. मुजफ्फरनगर दंगों में जन-धन का तो भारी नुकसान हुआ ही, 50 हजार से ज्यादा लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा. सपा ने उनके लिए कुछ नहीं किया. वह इलाका आज भी संवेदनशील बना हुआ है.

मुजफ्फरनगर दंगों पर गठित आयोग की रिपोर्ट में स्पष्ट तौर पर भाजपा और सपा के लोगों को दोषी ठहराया गया लेकिन आरोपी आज भी सत्ता का मजा लूट रहे हैं.

नसीमुद्दीन सिद्दीकी आशंका जता रहे हैं कि 'जैसे-जैसे प्रदेश में चुनाव नजदीक आ रहा है, पार्टियां यहां का माहौल खराब करने में लगी हैं. आने वाले समय में बड़े दंगे की साजिश है. आप सभी को होशियार रहना होगा.'

नसीमुद्दीन सिद्दीकी को यह भी बताना चाहिए था कि जब दूसरी पार्टियां दंगे करवाएंगी, उस स्थिति के लिए उनकी पार्टी के पास क्या प्लान है? मुजफ्फरनगर दंगों के बाद उनकी पार्टी ने जनता को राहत देने के लिए क्या किया?

उनका यह दावा सही हो सकता है कि बसपा के शासन के दौरान प्रदेश में शांति-व्यवस्था अपेक्षाकृत बेहतर होती है, लेकिन जब बसपा विपक्ष में है क्या तब उसकी भूमिका यही है कि दंगे होने दिए जाएं?

यूपी के मुसलमानों को सभी पार्टियों के सामने सवाल रखना चाहिए कि जो पार्टी चुनाव जीतकर सत्ता में आएगी, वह मुसलमानों के लिए क्या करने जा रही है?

सच्चर कमेटी की रिपोर्ट कहती है कि देश भर में मुसलमानों की हालत दलितों से भी बदतर है. शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार आदि के मामले में मुसलमान सबसे पीछे हैं.

इन सब दुश्वारियों के लिए कौन सी पार्टी के पास क्या प्लान हैं? क्या मुसलमानों की जरूरत सिर्फ चुनाव के पहले होती है कि वे वोटबैंक के रूप में कैसे इस्तेमाल किए जाएंगे?

भारतीय राजनीति में विकास का मुद्दा एक मिथ के रूप में प्रचारित होता है. विकास की बात इंदिरा गांधी भी करती थीं, मोदी भी करते हैं. कांग्रेस भी करती रही है, भाजपा, बसपा और सपा भी करती है. लेकिन वह विकास किसके लिए और कहां होता है जो धरातल पर नहीं दिखता?

मुसलमानों की आर्थिक-सामाजिक हालत में परिवर्तन लाने की योजना किसी के पास है तो उसके दावे पर गौर किया जा सकता है, वरना तो हर पार्टी के लिए मुसलमान सियासी बिरयानी के तेजपत्ते ही हैं.