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मुलायम ने दिया बेटे अखिलेश को आशीर्वाद, शिवपाल फिर रह गए अकेले

कुनबे की कलह से धुंधलाई वो तस्वीर साफ हो गई कि मुलायम सिंह और उनके बेटे अखिलेश यादव के बीच अब कोई दूरी नहीं बल्कि शिवपाल ही एक मजबूरी हैं

Kinshuk Praval

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव बेहद खुश हैं. उनका कहना है कि अब समाजवादी पार्टी की साइकिल बहुत तेज दौड़ेगी. इसकी वजह ये है कि नेताजी का आशीर्वाद मिल गया है. एक ही मंच पर नेताजी यानी पिता मुलायम सिंह यादव और चाचा रामगोपाल यादव के साथ अखिलेश नजर आए. अखिलेश ने पांव छूकर नेताजी से आशीर्वाद भी लिया. पिता का आशीर्वाद पाने के बाद अखिलेश जोश से भर गए. नेताजी के आशीर्वाद से अभिभूत अखिलेश यादव अब नए जोश के साथ साल 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जुट गए हैं.

लेकिन सियासत के इस नाटकीय मंचन से सवाल उस स्टेज शो पर उठे जो शिवपाल ने शुरू किया था. शिवपाल यादव ने हाल ही में अपने अलग समाजवादी सेक्युलर मोर्चे का गठन किया है. साथ ही ये भी कहा कि मुलायम सिंह यादव ही उनकी पार्टी के संरक्षक होंगे. यहां तक कि उन्होंने मुलायम सिंह यादव को मोर्चे का अध्यक्ष बनने का न्योता भी दिया था. सेक्युलर मोर्चे के जारी हुए झंडे में एक तरफ शिवपाल हैं तो दूसरी तरफ मुलायम. लेकिन सियासत की ताजा तस्वीर में एक तरफ अखिलेश, मुलायम और रामगोपाल यादव हैं तो दूसरी तरफ शिवपाल अकेले रह गए.


अखिलेश के मंच पर मुलायम सिंह यादव ने पहुंच कर उन तमाम अटकलों को खारिज कर दिया कि पिता ने बेटे का साथ छोड़ दिया. मुलायम सिंह ने ही कभी कहा था कि 'जो पिता का नहीं हुआ वो किसी और का क्या होगा.' लेकिन मुलायम सिंह अतीत की बातों को भुलाकर अपने बेटे, राजनीतिक वारिस और पार्टी के उत्तराधिकारी अखिलेश के ही साथ खड़े हैं. कुनबे की कलह से धुंधलाई वो तस्वीर साफ हो गई कि मुलायम सिंह और उनके बेटे के बीच अब कोई दूरी नहीं बल्कि शिवपाल ही एक मजबूरी हैं.

दरअसल, यादव परिवार में चल रही राजनीति में नेताजी ने वो दांव मारा जिसका शिवपाल को भी गुमान नहीं था. सवाल उठता है कि आखिर किस उम्मीद पर शिवपाल यादव नए-नवेले सेक्युलर मोर्चे का अध्यक्ष बनाने के लिए मुलायम सिंह की बात कर रहे थे. क्या मुलायम सिंह की चुप्पी में शिवपाल सिंह अपने मोर्चे के लिये भरोसा तलाश रहे थे?

मुलायम की अखिलेश से नाराजगी का शिवपाल सियासी फायदा उठाना चाहते थे. उन्होंने तभी समाजवादी सेक्युलर मोर्चे का गठन करते समय नेताजी की दुखती नस पर हाथ रखा था. शिवपाल ने कहा था कि सेक्युलर मोर्चा का गठन उन लोगों के लिए किया गया है जिनका समाजवादी पार्टी में सम्मान नहीं हुआ. दरअसल शिवपाल सिंह एक तीर से दो शिकार करना चाहते थे. यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त अखिलेश यादव ने चुन-चुन कर शिवपाल के करीबियों और नेताजी के नजदीकियों के टिकट काटकर उन्हें ठिकाने लगाया था. अब शिवपाल सिंह यादव उन्हीं असंतुष्टों को मुलायम सिंह का चेहरा दिखा कर अपना सेक्युलर मोर्चा सजाना और बढ़ाना चाहते थे.

अखिलेश अपने चाचा की चाल से वाकिफ थे. उन्होंने चाचा के रूठने को तवज्जो नहीं दी बल्कि पिता से भावनात्मक द्वन्द्व को तरजीह दी. अखिलेश ये जानते थे कि रूठे पिता को कैसे मनाया जा सकता है. अखिलेश ने नेताजी से माफी भी मांगी और आशीर्वाद भी. पिता का हृदय भी उस हिमालय की तरह होता है जो कड़ा भी होता है तो बर्फ की तरह पिघलता भी है. मुलायम भी पिघले और उन्होंने अखिलेश की पार्टी को जीत का आशीर्वाद दिया.

लेकिन अब शिवपाल क्या करेंगे? शिवपाल की समाजवादी पार्टी में मुलायम की प्राण-प्रतिष्ठा की हर कोशिश पर अखिलेश ने पानी फेरने का काम किया. यूपी चुनाव में हार के बाद से ही शिवपाल के तेवर तल्ख हो चुके थे. उन्होंने अखिलेश को 3 महीने का अल्टीमेटम दिया था. शिवपाल ने कहा था कि अखिलेश विधानसभा चुनाव में हार की जिम्मेदारी लेते हुए पार्टी का अध्यक्ष पद वापस मुलायम सिंह यादव को सौंप दें. यहां तक कि उन्होंने अलग सेक्युलर पार्टी बनाने की धमकी तक दे डाली थी. लेकिन अखिलेश के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी.

चाचा-भतीजे की रार के बावजूद न तो भतीजे ने अपने चाचा को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखाया और न ही चाचा ने पार्टी छोड़ी. चाचा इस ताक में रहे कि अखिलेश ही उन्हें पार्टी से निकालें ताकि नेताजी से सहानुभूति मिले और समाजवादी पार्टी में दो फाड़ हो जाए. लेकिन अखिलेश ने शिवपाल को विक्टिम कार्ड खेलने का मौका ही नहीं दिया. अखिलेश ने शिवपाल को पार्टी से निकाला नहीं ताकि वो नेताजी से सहानुभूति न ले सकें.

मुलायम सिंह को भी ये दिव्य-ज्ञान हो चुका था कि आखिर वो अखिलेश से क्यों नाराज हैं? शिवपाल सिंह यादव से पार्टी का नेतृत्व छीन कर पार्टी पर कब्जा करने वाले अखिलेश के प्रति नेताजी अपनी नाराजगी ज्यादा दिन तक बरकरार नहीं रख सके क्योंकि ये पिता-पुत्र का मामला नहीं था बल्कि चाचा-भतीजे के बीच सत्ता का संघर्ष था.

मुलायम भी भीतर मन से अखिलेश के ही भविष्य में अपनी राजनीति का अतीत और वर्तमान देखना चाहते हैं. तभी शिवपाल के समर्थकों की अखिलेश के खिलाफ शिकायतों के बावजूद उन्होंने अखिलेश के मंच पर ही पहुंचना ज्यादा जरूरी समझा. जाहिर सी बात है कि मुलायम सिंह अगर शिवपाल सिंह से उनकी नाराजगी की असली वजह पूछते तो शिवपाल क्या बताते? क्या सिर्फ इतना ही कहते कि उनसे अध्यक्ष पद छीन लिया गया जिस वजह से उनका अनादर हुआ? जाहिर तौर पर निजी महत्वाकांक्षा को आधार बना कर शिवपाल के लिए ये लड़ाई जीतना संभव नहीं था जबकि दूसरे छोर पर अखिलेश पार्टी में वर्चस्व को लेकर निजी महत्वाकांक्षा की लड़ाई छेड़ चुके थे और उनके पास आधार मुलायम-पुत्र होने का था.

बहरहाल, जो बीत गया सो बीत गया. अब शिवपाल ने बिना पार्टी छोड़े ही नए सेक्युलर मोर्चे का गठन किया और उसकी मार्केटिंग के लिए मुलायम सिंह यादव के नाम का अध्यक्ष और संरक्षक के तौर पर इस्तेमाल किया. इससे दो संदेश गए. पहला ये कि यूपी में अखिलेश से नाराज समाजवादी पार्टी के सीनियर नेता शिवपाल की पार्टी में सम्मानित पद पर सम्मान के साथ एन्ट्री पा सकते हैं. साथ ही दूसरा संदेश ये गया कि यूपी में दलितों, यादवों और मुसलमानों के लिए एक नया सियासी ठिकाना खुल गया जिसे कि मुलायम सिंह का संरक्षण प्राप्त है.

अखिलेश को लेकर शिवपाल के तेवर में जरा भी नरमी नहीं आयी है

लेकिन मुलायम सिंह यादव तकरीबन तीन दशकों की मेहनत और पसीने से सींची गई उस पार्टी के खिलाफ नई पार्टी को कैसे खड़ा होते देख सकते हैं जिसके कि वो खुद संस्थापक रहे हों? मुलायम सिंह यादव दोनों ही पार्टियों के लिये मार्गदर्शक और संरक्षक हैं. लेकिन जब सवाल समाजवादी पार्टी के साथ अखिलेश का होगा तो मुलायम की प्राथमिकता उस पार्टी के लिए होगी जिसके वो संस्थापक हैं और उनके लिए शिवपाल से पहले अखिलेश ही होंगे क्योंकि वो उनके पिता हैं. शायद शिवपाल चाह कर भी ये सीधा सा गणित समझना ही नहीं चाहते हैं.