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दुनियाभर में ज्यादातर चुनाव न तो स्वतंत्र होते हैं और न ही निष्पक्ष : अध्ययन

शोध के मुताबिक इन चुनावों से निरंकुश नेता सत्ता से हट नहीं पाते, साथ ही कई मामलों में ढीले निरंकुश शासन के बाद भी वह वैध दिखने लगते हैं

Bhasha

दुनियाभर में आज की तारीख में चुनाव की संख्या भले ही अधिक हो गई हो लेकिन उसने लोकतंत्र की गुणवत्ता बढ़ाने में शायद ही कुछ किया है. एक नए अध्ययन में यह बात कही गई है. बर्मिंघम विश्वविद्यालय और लंदन स्कूल ऑफ इकॉनोमिक्स के इस अध्ययन में कहा गया है कि ज्यादातर राष्ट्रीय चुनाव स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं हुए. जिससे निरंकुश नेता सत्ता में बने रहे और नई टैकनोलॉजी के उभार ने अपने ढंग से चीजों को पेश करने में उन्हें मदद पहुंचाई.

शोधकर्ताओं ने याले बुक्स द्वारा प्रकाशित ‘चुनाव में गड़बड़ी कैसे करें’ में यह खुलासा किया है. बर्मिंघम विश्वविद्यालय ने शुक्रवार को जारी एक विज्ञप्ति में बताया कि बेलारुस, केन्या, मेडागास्कर, नाईजीरिया, थाईलैंड, ट्यूनीशिया, समेत विभिन्न देशों में 500 से अधिक लोगों के साक्षात्कार एवं जमीनी स्तर पर वहां के चुनाव का अनुभव कर चुके प्रोफेसर निक चीसेमैन और ब्रिया क्लास लोकतांत्रिक अवमूल्यन का खुलासा करते हैं, जिससे दुनियाभर में तानाशाहों को लाभ पहुंचा.


सबसे चिंता की बात, जो शोध में सामने आई, वह यह है कि इन चुनावों से निरंकुश नेता सत्ता से हट नहीं पाते, साथ ही कई मामलों में ढीले निरंकुश शासन के बाद भी वह वैध दिखने लगते हैं. जिसके नतीजतन निरंकुश प्रणाली, जो चुनाव कराती है, अन्य के तुलना में अधिक स्थिर बन गई है.