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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने क्यों दिया ‘सेना’ वाला बयान?

कांग्रेस भले ही भागवत के बयान का गलत मतलब निकालकर उसे सेना के मनोबल को गिराने वाला बता रही हो, लेकिन, हकीकत यही है कि कांग्रेस उस बयान का मतलब समझ चुकी है

Amitesh

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बिहार के मुजफ्फरपुर में स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा था कि सेना को सैन्यकर्मियों को तैयार करने में छह से सात महीने लग जाएंगे. लेकिन संघ के स्वयं सेवकों को लेकर यह तीन दिन में तैयार हो जाएगी. यह हमारी क्षमता है पर हम सैन्य संगठन नहीं, पारिवारिक संगठन हैं. संघ में मिलिट्री जैसा अनुशासन है. अगर कभी देश को जरूरत हो और संविधान इजाजत दे तो स्वयं सेवक मोर्चा संभाल लेंगे.

संघ प्रमुख के इस बयान के बाद बवाल मचा है. सियासत तेज है. आरोप-प्रत्यारोप लग रहे हैं. लेकिन, सवाल है कि आखिरकार संघ प्रमुख मोहन भागवत ने ऐसा बयान क्यों दिया ? उनके बयान का मतलब क्या है ? आखिर संघ प्रमुख क्या संदेश देना चाहते हैं और किसे?


ये वो चंद सवाल हैं जिनको लेकर अभी चर्चा और बहस तेज हो गई है. यह चर्चा आम लोगों के बीच भी है और सत्ता के गलियारों में भी. सत्ता के गलियारों की चर्चा तो सियासी मकड़जाल में उलझ कर रह गई है. लेकिन, आईए संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान को समझने की कोशिश करते हैं.

संघ प्रमुख ने क्यों दिया ऐसा बयान ?

दरअसल, कश्मीर और पाकिस्तान की लगी सीमा और एलओसी पर हालात से भारतीय सेना लगातार लोहा ले रही है. ऑपरेशन ऑल आउट चलाकर कश्मीर में छिपे पाकिस्तान-पोषित आतंकवादियों का सफाया किया जा रहा है तो दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ सीमा पर और एलओसी पर भी लगातार मुंहतोड़ जवाब दिया जा रहा है.

लेकिन, इस कार्रवाई में भारतीय सैनिक भी शहीद हो रहे हैं. देश के भीतर राष्ट्रवाद की भावना का अलख जगाने की कोशिश में लगे संघ को लगता है कि इस वक्त सेना के मनोबल को बढ़ाने की जरूरत है. ऐसे में मोहन भागवत का बयान तो इसी संदर्भ में दिया गया बयान लगता है.

राजनीतिक विश्लेषक और संघ की तरफ झुकाव रखने वाले संगीत रागी का कहना है कि संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान को तोड़ -मरोड़ कर पेश किया गया है. फर्स्टपोस्ट से बातचीत में संगीत रागी ने कहा कि ‘1962 की लड़ाई के दौरान भी तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने संघ की मदद ली थी. ऐसे में संघ प्रमुख का बयान यह दिखाता है कि संघ के स्वयंसेवक देश के लिए मर-मिटने को तैयार रहते हैं.’

रागी मानते हैं कि 'स्वयंसेवक राष्ट्र देवो भव:'  की भावना के साथ काम करते हैं जो हमेशा राष्ट्र-यज्ञ में आहुति देने के लिए तैयार रहते हैं. ऐसे में संघ प्रमुख के बयान को उसी संदर्भ में देखना चाहिए.’

मोहन भागवत किसे देना चाहते थे संदेश

कश्मीर के मौजूदा हालात और सीमा पर जारी तनाव के बीच मोहन भागवत का बयान काफी महत्वपूर्ण हो गया है. संगीत रागी भी इस बात को मानते हैं. उनका कहना है कि ‘संघ प्रमुख का बयान पाकिस्तान और कश्मीर के मौजूदा माहौल को लेकर एक बडा संदेश है और यह बयान इसी संदर्भ में दिया गया है.’

लेकिन, लगता है संघ प्रमुख के इस बयान का दायरा और बडा है. संघ प्रमुख देश के भीतर उन विरोधी लोगों को भी यह संदेश देना चाहते हैं जो अबतक संघ की कार्यशैली को लेकर सवाल खड़े करते रहे हैं. संघ पर हिंदुत्व के एजेंडे को लेकर आलोचना करने वाले लोगों को जवाब देने की कोशिश में ही मोहन भागवत ने हिंदुत्व को राष्ट्रवाद का प्रतीक बताने की कोशिश की है.

राष्ट्रवाद की परछाई के नीचे हिंदुत्व की भावना को ढ़ककर संघ प्रमुख राष्ट्र सेवा को सर्वोपरि रखना चाहते हैं. इससे जवाब उन सभी दलों और संगठनों को मिलेगा जो संघ के राष्ट्र प्रेम पर सवाल खड़े करते रहे हैं.

खासतौर से कांग्रेस, जो कि लगातार आजादी की लड़ाई में आरएसएस की भूमिका को लेकर सवाल खड़े करती आई है. उस पर 1962 की लड़ाई में संघ की भूमिका की याद दिलाकर एक साथ दो प्रहार करने की कोशिश की जा रही है.

पहला 1962 में पंडित नेहरू की गलत नीतियों को फिर से याद दिलाना और दूसरा संघ का इस लड़ाई के वक्त राष्ट्र के लिए समर्पित और सबकुछ न्योछावर करने वाला अपना चेहरा देश की जनता के समक्ष पेश करना.

इस बात का आभास कांग्रेस को हो गया. कांग्रेस भले ही भागवत के बयान का गलत मतलब निकालकर उसे सेना के मनोबल को  गिराने वाला बता रही हो, लेकिन, हकीकत यही है कि कांग्रेस उस बयान का मतलब समझ चुकी है. भागवत का बयान सही निशाने पर लगा है. वरना कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इतनी आतुरता से उनके बयान पर प्रहार न कर रहे होते.