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25 हजार की पेंशन के फेर में फंस गए केंद्रीय मंत्री गहलोत

मामला एमपी सरकार द्वारा इमरजेंसी के दौरान जेल में बंद रहने की अवधि से जुड़ा है

Dinesh Gupta

केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री थावरचंद गहलोत 25 हजार रुपए प्रतिमाह की पेंशन के फेर में आकर विवाद में फंस गए हैं. इससे जितना वे निकलने की कोशिश करते हैं, नौकरशाही मामले को उतना ही पेचीदा बनाती जा रही है.

मामला मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इमरजेंसी के दौरान जेल में बंद रहने की अवधि से जुड़ा हुआ है. मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान की सरकार इमरजेंसी के दौरान जेल में बंद रहे लोगों को 25 हजार रुपए प्रतिमाह की पेंशन देती है. 25 हजार रुपए की पेंशन की यह पात्रता सिर्फ उन लोगों को दी गई है, जो एक माह या इससे अधिक अवधि तक बंदी रहे हैं. आरोप है कि गहलोत जेल में सिर्फ तेरह दिन रहे हैं.


विवाद कैसे शुरू हुआ

मामला सुर्खियां में तब आया, जब उज्जैन के सामाजिक कार्यकर्त्ता भूपेंद्र दलाल ने उज्जैन के माधवनगर थाने में एक आवेदन देकर गहलोत के खिलाफ धोखाधड़ी का मामला दर्ज करने का आवेदन दिया. भूपेंद्र दलाल कहते हैं कि गहलोत सिर्फ 13 दिन जेल में रहे. प्रशासन ने मिलीभगत कर मंत्री के रसूख के दबाव में आकर 54 दिन जेल में रहना बता दिया.

दूसरी और उज्जैन के कलेक्टर संकेत भोड़वे ने पिछले साल नवबंर में जो पत्र सामान्य प्रशासन विभाग को लिखा था, उसमें जेल में रहने की अवधि 45 दिन लिखी थी. इसमें उन्होंने यह हवाला भी दिया है कि 45 दिन जेल में रहने की अवधि मंत्री ने ही अपने आवेदन में अंकित की है. जबकि गहलोत ने सार्वजनिक तौर कहा कि वे 13 दिन जेल में रहे. लेकिन राजनीतिक, सामाजिक व डीआईआर के तहत भी उन्हें उसी दौरान जेल में रहना पड़ा था और यह सब अवधि मिलाकर 54 दिन होती है.

45 दिन के स्थान पर 54 दिन की मीसाबंदी कैसे हो गई? इस सवाल पर कलेक्टर संकेत भोंडवे कहते हैं कि पूर्व के पत्र में टाईिपंग की गलती से 45 लिखा गया था. मामले में विवाद ज्यादा बढ़ने पर उज्जैन जेल अधीक्षक गोपाल ताम्रकार ने भी बयान जारी कर गहलोत के बंदी रहने की अवधि 54 दिन बताई.

जेल अधीक्षक ने बयान में कहा कि मीसाबंदी रजिस्टर के अनुसार मीसाबन्दी क्रमांक 252 श्री थावरचन्द पिता श्री रामलाल गहलोत निवासी बिरलाग्राम नागदा 14 नवंबर 1975 को जेल में विचाराधीन बंदी के रूप में दाखिल हुए थे, जिन्हें तत्कालीन जिला दण्डाधिकारी उज्जैन के आदेश अनुसार धारा 3(1)ए2आ.सु. अधिनियम 1971 के तहत 23 दिसम्बर 1975 को हवालाती से मीसाबंदी बनाया गया था.

जिला दंडाधिकारी के आदेश क्रमांक क्यू/स्टेनो/76/1111 दिनांक 06 जनवरी 1976 के पालन में 6 जनवरी 1976 को मीसा से रिहा किया गया था. रिकॉर्ड का परीक्षण और सत्यापन करने पर थावरचन्द गेहलोत के जेल में रहने की अवधि 14 नवंबर 1975 से 6 जनवरी 1976 तक कुल 54 दिन होते हैं.

बयान से यह साफ है कि 23 दिसंबर 1975 के पूर्व तक जिला दंडाधिकारी ने गहलोत को मीसबंदी घोषित नहीं किया था. नई रिपोर्ट पर जेल अधीक्षक गोपाल ताम्रकर सफाई देते हुए कहते हैं कि जेल में विचाराधीन व अन्य मामलों के कैदी के अलग रजिस्टर होते हैं. पूर्व में रजिस्टर को देखे बगैर मंत्री गहलोत के 13 दिन जेल में रहने की रिपोर्ट भेजी गई होगी. मीसाबंदी वे लोग कहे जाते हैं, जो आपातकाल में जेल में बंद कर दिए गए थे.

विवाद बढ़ा तो अध्यक्ष को देना पड़ी सफाई

शाजापुर के सांसद मनोहर ऊंटवाला द्वारा वाट्सऐप पर गहलोत के कथित मीसाबंदी होने से जुड़ी खबर डाले जाने से विवाद इतना बढ़ा गया कि मध्यप्रदेश भारतीय जनता पार्टी अध्यक्ष नंदकुमार चौहान को सफाई देते हुए बयान जारी करना पड़ा. चौहान ने कहा कि ऊंटवाल ने स्पष्टीकरण दिया है कि उनके कर्मचारी की गलती की वजह से यह पोस्ट हुई थी. ऊंटवाल ने इस बात के लिए खेद भी व्यक्त किया है.

चौहान ने कहा है कि गहलोत के मीसाबंदी होने पर जो सवाल उठाया जा रहा है वह अनुचित और असत्य है. गहलोत को विधिवत पेंशन का पात्र बनाया गया था. उन्हें नियमानुसार पेंशन दी जा रही है. दरअसल विवाद एक अन्य कारण से भी बढ़ा. सरकार ने मीसाबंदियों को स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह सम्मान निधि देने के नियम 2008 में बनाए थे. गहलोत ने लगभग आठ साल तक मीसाबंदी की सम्मान निधि लेने के लिए कोई पहल नहीं की. उनकी ओर से आवेदन केंद्रीय मंत्री बनने के बाद दिया गया. आवेदन देने की तारीख चार साल पूर्व ही निकल चुकी थी. सरकार ने गहलोत को सूची में शामिल करने के लिए आवेदन देने की तारीख 31 मार्च 2017 तक बढ़ा दी. अप्रैल में जिला योजना समिति ने गहलोत की सम्मान निधि स्वीकृत कर दी.

बीजेपी अध्यक्ष नंदकुमार चौहान के मुताबिक ऐसे 28 लोग थे जो आपातकाल के दौरान लगभग एक माह जेल में रहे थे. ऐसे लोगों को पेंशन देने के लिये मंत्रिमंडल ने निर्णय लिया था. चौहान के मुताबिक इसी निर्णय के तहत ही थावरचंद गहलोत को विधिवत पेंशन का पात्र बनाया गया था. उन्होंने थावरचंद गहलोत को लेकर आ रही खबरों को अनुचित बताया है. इससे पहले खुद थावरचंद गहलोत सफाई दे चुके हैं कि उनकी ओर से कोई हेराफेरी नही की गयी है. गहलोत राज्यसभा सदस्य हैं. उनका कार्यकाल अप्रैल 2018 में समाप्त हो रहा है.

सीएम विकल्प के तौर चर्चा में रहता है गहलोत का नाम

मध्यप्रदेश में जब भी नेतृत्व परिवर्तन की खबरें चलती हैं, उस वक्त थावरचंद्र गहलोत का नाम शिवराज सिंह चौहान के विकल्प के तौर पर सामने आता है. अनुसूचित जाति वर्ग के गहलोत चार बार शाजापुर सुरक्षित सीट से सांसद रह चुके हैं. तीन बार मध्यप्रदेश विधानसभा के सदस्य और भाजपा सरकार में मंत्री रह चुके हैं. गहलोत को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के करीबी मंत्रियों में माना जाता है. संभवत: यही वजह है कि जब विवाद बढ़ा तो प्रदेशाध्यक्ष चौहान को खुद सामने आकर सफाई देना पड़ी.

मीसाबंदी सम्मान निधि की जिला स्तरीय अनुशंसा समिति में सदस्य प्रभारी मंत्री भूपेंद्रसिंह, कलेक्टर संकेत भोंडवे, एसपी मनोहरसिंह वर्मा और केंद्रीय जेल भैरवगढ़ अधीक्षक गोपाल ताम्रकर हैं. पुलिस शिकायत में चारों पर भी केंंद्रीय मंत्री को उपकृत करने या दबाव में रिकॉर्ड में हेराफेरी कर जाली दस्तावेज बनाकर धोखाधड़ीपूर्वक धन हड़पने की साजिश का आरोप लगाया है.