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क्या राहुल खुद टीआरपी पॉलिटिक्स नहीं कर रहे?

राहुल ने कहा मोदी टीआरपी की राजनीति कर रहे हैं

Amitesh

कांग्रेस संसदीय दल की बैठक में राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर फिर से हमला बोला है. उन्होंने कहा कि मोदी टीआरपी की राजनीति कर रहे हैं.

टीआरपी का मतलब होता है टेलीविजन रेटिंग प्वाइंट्स यानी टेलीविजन पर जो भी व्यक्ति जितना दिखेगा, उसकी टीआरपी उतनी ही ज्यादा होगी.


राहुल के बयान का मतलब साफ है मोदी चर्चा में बने रहने के लिए इस तरह के कदम उठाते हैं.

तो सवाल यही उठता है क्या मोदी का नोटबंदी पर उठाया गया कदम केवल टीआरपी के लिए है. क्या मोदी ने केवल टीआरपी बटोरने के लिए ऐसा कदम उठा दिया जो सवा सौ करोड़ जनता को सीधे तौर पर प्रभावित करे. इसका जवाब तो ना में ही मिलेगा.

Photo. INC.in

भ्रष्टाचार और कालेधन के खिलाफ अपनी लड़ाई को लेकर मोदी अपनी जिद्द पर अड़े हैं. उनके इस सख्त कदम को भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान के तौर पर आम जनता से सराहना मिल रही है, जिससे उनका हौसला और भी बढ़ जाता है.

सोनिया गांधी की गैर-मौजूदगी में पहली बार कांग्रेस संसदीय दल की बैठक की अध्यक्षता कर रहे राहुल ने कहा, 'देश में ऐसा प्रधानमंत्री अबतक नहीं मिला जिसने अपनी जिद के चलते जनता को मुश्किलों में डाल दिया हो.'

इन दिनों हर जगह चर्चा नोटबंदी पर ही है और चर्चा के केन्द्र में हैं प्रधानमंत्री मोदी. हो सकता है कि राहुल इसी चर्चा के केन्द्र में खुद आना चाह रहे हों. लेकिन, असफल होने पर उनकी झुंझलाहट अब इस कदर सामने आ रही है.

मोदी की टीआरपी से परेशान राहुल ने जनता की दुखती रग पकड़ने की हर संभव कोशिश की है. राहुल दिल्ली से लेकर भिवंडी तक पैसे निकालने के लिए लगी लंबी-लंबी कतारों में पहुंच गए. दिल्ली में कतार में लगकर राहुल ने पैसे निकाले. आम जनता को दिखाने की यह कोशिश भी की हम आपका दर्द बांटने आएं हैं.

राहुल को इस दौरान टीआरपी भी मिली. राहुल सुर्खियों में लगातार बने रहे. लेकिन सस्ती टीआरपी के चक्कर में राहुल को वो सब हासिल नहीं हो पाया जिसकी चाहत में वो सड़कों पर निकले थे. राहुल गांधी जिस टीआरपी पर सवाल खड़े कर रहे हैं, हकीकत तो यही है कि उसी टीआरपी को बटोरने में वो खुद लगे रहते हैं.

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अभी कुछ दिन पहले ही हरियाणा के पूर्व सैनिक रामकृष्ण ग्रेवाल की राजधानी दिल्ली में आत्महत्या के बाद जिस तरह से राहुल गांधी सड़कों पर उतरे और बार-बार उन्हें हिरासत में लिया गया. उससे भी राहुल लगातार टेलीविजन चैनलों की चर्चाओं में रहे.

जरा याद कीजिए उनके 2008 के उस दौरे को, जब राहुल ने महाराष्ट्र के विदर्भ की कलावती के घर पहुंचे थे. गरीब कलावती के जख्म पर मरहम लगाने की उनकी कोशिश पर खूब बहस हुई थी. उस वक्त उन्हें टीआरपी भी खूब मिली थी. लेकिन मिल रही सुर्खियों को राहुल संभाल नहीं पाए. शायद जनता की नब्ज टटोलने में वो फेल हो गए.

अब नोटबंदी की मार से जनता बेहाल है. उन्हें लगा कि यह वक्त है टीआरपी बटोरने का. मोदी यहां भी बाजी मारते दिख रहे हैं. शायद यही परेशानी राहुल को सता रही है. संसद से लेकर सड़क तक नोटबंदी पर रार जारी है. मतलब टीआरपी का यह खेल अभी और चलने वाला है.