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इन तीन फैसलों के दम पर अगला लोकसभा चुनाव जीतेगी मोदी सरकार?  

बीजेपी अब महिला आरक्षण, बेनामी संपत्ति और यूनिवर्सल बेसिक इनकम के सहारे अगला लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है.

Surendra Kishore

भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन देने में विफल नरेंद्र मोदी सरकार अब महिला आरक्षण विधेयक, बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई और यूनिवर्सल बेसिक इनकम के सहारे अगला लोकसभा चुनाव जीतना चाहती है. ऐसे साफ संकेत मिल रहे हैं.

बेनामी संपत्ति के खिलाफ कार्रवाई तो छिटपुट शुरू भी हो चुकी है. यूनिवर्सल बेसिक इनकम योजना लागू करने की संभावना पर विचार चल रहा है.


बीजेपी विधायिकाओं में महिलाओं के लिए आरक्षण लागू करने का  काम 2018 के राज्यसभा के द्विवार्षिक चुनाव के बाद करने का मंसूबा बांध रही है.

उस चुनाव के बाद राज्यसभा में राजग को बहुमत मिल जाने की पूरी संभावना है. ये तीनों कार्यक्रम लोकलुभावन और वोटखींचू बताए जा रहे हैं.

महिला आरक्षण विधेयक पर क्या होगा

यदि मोदी सरकार ने अगले साल सचमुच महिला आरक्षण विधेयक पास करवा दिया तो इससे महिलाओं का वोट बैंक तैयार हो जा सकता है जो नरेंद्र मोदी के काम आएगा.

इंदिरा गांधी ने भी अपने इस मजबूत महिला वोट बैंक का पूरा राजनीतिक लाभ उठाया था.

15 अगस्त 2014 के अपने लाल किले के भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बड़े उत्साह से कहा था कि ‘मैं न खाऊंगा और न ही किसी को खाने दूंगा.’

उस भाषण की आम लोगों में सराहना हुई थी, लेकिन समय बीतने के साथ प्रधानमंत्री को भी लग गया कि प्रशासन से भ्रष्टाचार मिटाना टेढ़ी खीर है.

खबर है कि इस काम में अधिकतर बड़े अफसर प्रधानमंत्री के साथ असहयोग करते रहे हैं. हालांकि मनमोहन सरकार की अपेक्षा मोदी सरकार थोड़ी बेहतर स्थिति में जरूर है.

घोटालों की खबरें अब नहीं

घोटाले और महाघोटाले की खबरें अब नहीं आ रही हैं. अपवादों को छोड़ दें तो अफसरों की अपेक्षा मंत्रीगण मोदी के साथ इस मामले में अधिक सहयोग कर रहे हैं.

यदि मोदी इसी तरह की भ्रष्ट प्रशासनिक व्यवस्था के साथ लोकसभा के अगले चुनाव में जाएं तो एनडीए के लिए मुश्किलें आएंगीं.

संभवतः इसलिए एनडीए सरकार  कुछ नए लोक लुभावन और वोट खींचूं कार्यक्रमों को लागू कर 2019 के चुनाव में भी बाजी मार लेना चाहती है.

2016-17 की आर्थिक समीक्षा में यूनिर्वसल बेसिक इनकम योजना को लागू करने को लेकर कुछ विकल्प सुझाए गए हैं.

ऐसी योजना के तहत देश के हर वयस्क नागरिक को एक निश्चित रकम तय अंतराल पर देनी होगी.

एक अनुमान के अनुसार इस पर जीडीपी का करीब दस प्रतिशत खर्च आएगा. टैक्स का दायरा बढ़ाकर और कर चोरी को रोक कर इसके लिए धन जुटाया जा सकता है.

यदि केंद्र सरकार इस बीच रकम की व्यवस्था कर सकी तो उसे अगले लोक सभा चुनाव से पहले लागू किया जा सकता है.

इसे लागू करने का जन मानस पर भारी सकारात्मक असर होगा. बेनामी संपत्ति के खिलाफ समझौताविहीन कार्रवाई का हौसला केंद्र सरकार द्वारा बांधा जा रहा है.

यदि सचमुच ऐसा हुआ तो उससे कम आय वाले लोगों को मनोवैज्ञानिक संतोष होगा.

महिला आरक्षण पर विरोध जारी

 

इस देश के गरीब लोगों को साल 1969 में इसी तरह का संतोष मिला था जब इंदिरा गांधी ने गरीबी हटाओ के नारे के तहत 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया था. बेनामी संपत्ति पर कार्रवाई का अच्छा खासा चुनावी लाभ भी मिल सकता है.

महिला आरक्षण विधेयक कुछ तथाकथित समाजवादी-लोहियावादी नेताओं के विरोध के कारण वर्षों से रुका हुआ है. यह एक संविधान संशोधक विधेयक होगा.

केंद्रीय सूचना व प्रसारण मंत्री एम.वेंकैया नायडु ने शुक्रवार को कहा कि राज्य सभा में बहुमत मिल जाने के बाद अन्य दलों से राय विचार करके एनडीए सरकार महिला आरक्षण विधेयक संसद से पास करवा देगी.

याद रहे कि संसद और विधान सभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का प्रावधान किया जाना है. याद रहे कि 2009 में शरद यादव ने कहा था कि ‘महिला विधेयक यदि पास होगा तो मैं जहर खा लूंगा.’

एनडीए जब 2018 में इस विधेयक को पास करने की कोशिश करेगी तो शरद यादव क्या करेंगे,यह देखना दिलचस्प होगा.

ऐसे बढ़ाएं वोट बैंक

वोट बैंक बनाने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार को यह सलाह दी जाती रही है कि वह पिछड़ों के लिए सरकारी नौकरियों में निधारित 27 प्रतिशत आरक्षण को तीन भागों में बांट दें.

पिछड़ा, संपन्न पिछड़ा और अति पिछड़ों के लिए अलग-अलग नौ नौ प्रतिशत नौकरियां निर्धारित कर दी जाएं. ऐसा प्रावधान कई राज्यों की नौकरियां के लिए पहले से मौजूद है.

संभवतः बीजेपी हिंदू समाज में जाति के आधार पर फूट डालना नहीं चाहती. इसीलिए उसने इस संबंध में पिछड़ा वर्ग आयोग की सिफारिश को भी नजरअंदाज कर दिया.

पर लगता है कि बीजेपी मानती है कि महिला आरक्षण के कारण जातियों के आधार पर समाज में फूट नहीं पड़ेगी. बल्कि उल्टे महिला आरक्षण का विरोध करने वाले दलों को नुकसान हो सकता है. एनडीए के पक्ष में महिला वोट बैंक तैयार हो सकता है.

सांप्रदायिक बहस से निकालेगी यूनिर्वसल इनकम स्कीम

जानकार सूत्रों के अनुसार बेनामी संपत्ति और यूनिर्वसल इनकम स्कीम के जरिए भी एनडीए सरकार देश को सांप्रदायिक बहस से निकाल कर आर्थिक व गरीबी हटाओ की बहस की ओर ले जाने में सफल हो सकती है.

यह संयोग नहीं है कि बीजेपी ने हाल में अपने सांसदों से कहा है कि वे जनता के बीच नरेंद्र मोदी की छवि गरीबों के मसीहा के रूप में पेश करें.

इन उपायों से संभवतः बीजेपी यह उम्मीद कर रही होगी कि उससे देश सांप्रदायिक ध्रुवीकरण से बचेगा.

अब देखना है कि बीजेपी की ये कार्य योजनाएं कितनी सफल हो पाएंगी. केंद्र सरकार के दफ्तरों से भ्रष्टाचार हटाने की उसकी योजना तो अब तक लगभग विफल ही रही है.