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इनसाइड स्टोरी: डोवाल की सलाह पर पीएम मोदी ने मांगा अकबर से इस्तीफा

14 अक्टूबर को दिल्ली वापस आने से पहले अकबर की फोन पर वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ विस्तार से बातचीत हुई. जेटली ने प्रधानमंत्री के कहने पर उनसे बात की

Praveen Swami

पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ मानहानि के केस की पहली सुनवाई 24 घंटे से भी कम समय दूर थी. एमजे अकबर के इस केस पर पटियाला हाउस कोर्ट में सुनवाई होनी है. फर्स्टपोस्ट को मिली जानकारी के मुताबिक इसी समय राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार की ब्रीफिंग के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अकबर पर लगा सुरक्षा चक्र हटा दिया और इस्तीफा मांग लिया.

सूत्रों के मुताबिक यह फैसला इसलिए किया गया, क्योंकि अकबर सही तरीके से अपनी सफाई पेश करने में नाकाम रहे. खासतौर पर इस मामले में कि अभी और कितनी महिलाएं उनके खिलाफ गवाह के तौर पर सामने आएंगी और उनकी गवाही में क्या कुछ होगा. इस गवाही का मतलब सरकार के लिए आलोचना झेलना ही था.


विपक्षी पार्टी के दबाव में लिया गया फैसला भविष्य के लिए नज़ीर तय करेगा

अकबर ने रमानी के खिलाफ मानहानि का केस दर्ज कराया है, जिन्होंने अकबर पर सेक्शुअल हैरेसमेंट का आरोप लगाया था. प्रिया रमानी के दावे के समर्थन में उस अखबार से, जहां अकबर एडिटर थे, 20 से भी ज्यादा कर्मचारी सामने आए.

सूत्रों का कहना है कि 14 अक्टूबर को दिल्ली वापस आने से पहले अकबर की फोन पर वित्तमंत्री अरुण जेटली के साथ विस्तार से बातचीत हुई. जेटली ने प्रधानमंत्री के कहने पर उनसे बात की. बीजेपी के सीनियर सदस्य ने कहा कि जेटली को उनकी कानूनी और पार्टी की राजनीतिक चिंताओं की समझ होने की वजह से इस काम के लिए चुना गया.

हालांकि प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह, दोनों ही अकबर के राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाने वालों में नहीं हैं. इसके बावजूद दोनों की चिंता यही थी कि मीडिया और विपक्षी पार्टी के दबाव में लिया गया फैसला भविष्य के लिए नज़ीर तय करेगा.

सोमवार को अकबर ने वित्तमंत्री के साथ लंबी बातचीत की. उसके बाद टॉप वकीलों को चुना. उन्होंने बयान भी दिया कि मीटू मूवमेंट राजनीति से प्रेरित वायरस है. लेकिन पत्रकार प्रिया रमानी के साथ तमाम महिलाएं आ गईं, जिसके बाद प्रधानमंत्री ने अपनी स्थिति की समीक्षा करने का फैसला किया.

सरकारी सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री मोदी का फैसला राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवाल के साथ एक घंटे लंबी चली बातचीत के बाद बदला. एक अधिकारी ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि वे समझ नहीं पा रहे थे कि और कितनी महिलाएं मंत्री के खिलाफ सामने आएंगी. उनके किस तरह के आरोप होंगे.’ सूत्रों के मुताबिक डोवाल को यह पता करने की जिम्मेदारी दी गई कि वे मंत्री से समझें कि और कितनी महिलाएं गवाही के लिए आएंगी और उनके आरोप किस तरह के होंगे. अकबर इस मामले में साफ-साफ बताने में नाकाम रहे.

निर्मला सीतारमण और स्मृति ईरानी मीटू मूवमेंट के पक्ष में बोल चुकी हैं

अकबर से मुलाकात के बाद डोवाल प्रधानमंत्री के पास गए और सरकार के सामने कैसी स्थिति आ सकती है, इससे उन्हें अवगत कराया. उन्होंने बताया कि बड़ी तादाद में महिलाएं सरकार के एक मंत्री के खिलाफ सामने आएंगी और सरकार उन्हें बचाती नजर आएगी. इससे शर्मनाक हालात बन सकते हैं.

इस मामले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस के शक्तिशाली लोगों का भी एक रुख था. उनके रुख से भी सरकार को अपना रुख तय करने में मदद मिली होगी. आरएसएस के नंबर तीन दत्तात्रेय होसबोले ने अकबर पर आरोप लगने के बाद मीटू मूवमेंट के पक्ष में ट्वीट किया था. आरएसएस से जुड़े बीजेपी नेता आर. बालशंकर का बयान बताया जाता है कि उन्होंने कहा था कि अकबर की व्यक्तिगत लड़ाई में पार्टी के शामिल होने का कोई मतलब नहीं है.

बीजेपी के भीतर भी सीनियर महिला नेताओं में असंतोष था. विदेश मंत्री सुषमा स्वराज इस मामले पर अकबर से रविवार को मिली थीं. उन्होंने तब कोई भी टिप्पणी करने से इनकार कर दिया था. निर्मला सीतारमण और स्मृति ईरानी मीटू मूवमेंट के पक्ष में बोल चुकी हैं.