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#MeToo: वकीलों की फौज, फिर बाकी महिलाओं के खिलाफ अकबर ने क्यों नहीं किए मुकदमे?

#MeToo का यह अभियान सोशल मीडिया की त्वरित अभिव्यक्ति के प्लेटफार्म और थके हुए न्यायिक सिस्टम के बीच जंग भी है

Virag Gupta

विदेश राज्य मंत्री एम.जे अकबर ने यौन शोषण का आरोप लगाने वाली महिला पत्रकार प्रिया रमानी के खिलाफ आपराधिक मानहानि का केस दायर कर दिया है. मोदी सरकार की ही महिला मंत्रियों स्मृति इरानी और मेनका गांधी ने #MeToo में पीड़ित महिलाओं के अभियान का समर्थन करते हुए विशेष जांच समिति की बात कही थी, अब उसका क्या अंजाम होगा? #MeToo का अभियान पीड़ित महिलाओं की भड़ास है या फिर अकबर जैसे लोगों की मानहानि.

97 वकीलों की फौज का कानूनी सच


अकबर द्वारा दायर मुकदमे के वकालतनामा में लॉ फर्म के 97 वकीलों का नाम दिया गया है, जिसमें 35 महिलाएं शामिल हैं. पार्टनर के दिए गए स्पष्टीकरण के अनुसार लॉ फर्म में रजिस्टर्ड सभी वकीलों का वकालतनामा में नाम देना जरूरी होता है परंतु हस्ताक्षर सिर्फ 6 वकीलों ने किए हैं. दिल्ली हाईकोर्ट ओरिजनल साइड के नियम और सुप्रीम कोर्ट द्वारा उदय शंकर मामले में वर्ष 2006 में दिए गए फैसले में वकालतनामा की प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जिक्र किया गया है. वकालतनामा में जिन 6 वकीलों के दस्तखत हैं, उनके अलावा 91 वकीलों के नाम देने की कोई कानूनी बाध्यता (मजबूरी) नहीं थी. लॉ फर्म द्वारा फॉर्मेट के कट कॉपी पेस्ट से सोशल मीडिया में यह विवाद खड़ा किया गया, जिसकी कोई कानूनी अहमियत नहीं है.

भारत में #MeToo कैंपेन के जोर पकड़ने के बाद से अलग-अलग क्षेत्रों की कई महिलाओं ने पूर्व में अपने साथ हुए उत्पीड़न की घटना बयां की है

अदालती मामले में अब क्या होगा

आपराधिक मानहानि के बारे में आईपीसी की धारा 499 में प्रावधान है, जिसकी संवैधानिकता को सुब्रमण्यन स्वामी और फिर राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. तत्कालीन चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया दीपक मिश्रा की बेंच ने वर्ष 2016 में दिए गए फैसले से इन याचिकाओं को खारिज करते हुए धारा 499 को बहाल रखा था, जिसके तहत अकबर ने वर्तमान मुकदमा दायर किया है. अकबर के मामले में अब 18 अक्टूबर को मजिस्ट्रेट के सामने सुनवाई होगी. सीआरपीसी की धारा 200 के तहत अब अकबर को पटियाला हाउस में मजिस्ट्रेट कोर्ट के सामने अपना बयान दर्ज कराना होगा.

अरुण जेटली द्वारा केजरीवाल के खिलाफ आपराधिक मानहानि का मामला

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के खिलाफ केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने भी आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया था. जेटली ने पटियाला हाउस में मजिस्ट्रेट के सामने अपना बयान दर्ज कराया, जिसके बाद केजरीवाल के खिलाफ अदालत ने सम्मन जारी किया था. केजरीवाल ने मजिस्ट्रेट के आदेश को दिल्ली हाईकोर्ट में चुनौती दी जिसके बाद आपसी रजामंदी से मामला खत्म हो गया. केजरीवाल के माफी मांग लेने के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी मानहानि के मुकदमे में सुलह कर ली थी.

आलोक नाथ द्वारा सिविल मामला और पत्नी द्वारा क्रिमिनल मामला

#MeToo की चपेट में फिल्म, फैशन, मीडिया जगत के अनेक दिग्गज आ रहे हैं. आलोक नाथ के खिलाफ छेड़खानी से लेकर रेप तक के संगीन आरोप लगे हैं. दूसरी ओर आलोक नाथ ने विन्ता नंदा के खिलाफ मानहानि का सिविल मुकदमा मुंबई की अदालत में दायर करते हुए 1 रुपए के सांकेतिक हर्जाने की मांग की है. आलोक नाथ की पत्नी ने अकबर की तरह आपराधिक मानहानि का मामला दायर किया है, जिसमें मजिस्ट्रेट के सामने उनके बयान भी दर्ज हो गए हैं. आपराधिक मामलों में क्या तीसरे पक्ष द्वारा पीड़ित होने की कानूनी वैधता पर सवाल आगे चल कर खड़े होंगे?

पत्रकार प्रिया रमानी ने सबसे पहले एमजे अकबर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था (फोटो: फेसबुक से साभार)

अकबर द्वारा बाकी महिलाओं के खिलाफ भी मुकदमे क्यों नहीं

मंगलवार तक एम.जे अकबर के खिलाफ 16 महिलाओं ने यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए हैं. अकबर ने सिर्फ प्रिया रमानी के खिलाफ ही मुकदमा दायर किया है. क्या बाकी 15 महिलाओं के आरोपों से अकबर की मानहानि नहीं हुई या फिर अकबर उनके आरोपों को स्वीकार कर रहे हैं? इसी तरह से आलोक नाथ के खिलाफ भी अनेक महिलाओं ने आरोप लगाए हैं पर उन्होंने सिर्फ विन्ता नन्दा के खिलाफ मुकदमा दायर किया है. क्या यह एक गोली से सभी को चुप कराने की रणनीति है?

अदालत में दायर मामलों से सोशल मीडिया में कैसे लगेगी लगाम

आरोपों की बौछार के बाद अकबर और आलोक नाथ समेत कई लोग गंभीर संकट से घिर गए हैं. ऑफेन्स इज द बेस्ट डिफेन्स यानी आक्रमण ही रक्षा का बेहतरीन कवच है के तहत यह मुकदमे दर्ज कराए गए हैं. भारत में लचर न्यायिक व्यवस्था के चलते मानहानि के मुकदमों का समय से फैसला नहीं हो पाता और अदालती प्रक्रिया की आड़ में अकबर जैसे लोग खुद का बचाव करने की रणनीति बना लेते हैं.

सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया

अकबर और आलोक नाथ के मुकदमों में सोशल मीडिया अभियान पर स्टे लगाने की मांग अभी नहीं की गई है, तो फिर #MeToo अभियान से उन्हें कैसे राहत मिलेगी? #MeToo का यह अभियान सोशल मीडिया की त्वरित अभिव्यक्ति के प्लेटफार्म और थके हुए न्यायिक सिस्टम के बीच जंग भी है?