view all

मेघालय चुनाव: स्वतंत्र उम्मीदवारों की भीड़ से नए वोटर्स चुनेंगे राज्य का भविष्य

राजनीति के पर्यवेक्षकों को मानना है कि स्वतंत्र उम्मीदवार तथा छोटी क्षेत्रीय पार्टियां मेघालय का राजनीतिक भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी

Pranjal Sarma

मेघालय की राजनीति में विचारधारा का जोर कम है, शख्सियतों, सुविधा और अपने बिरादरी के प्रति वफादारी की भावना का ज्यादा. जाहिर है, ऐसे में मेघालय में बीते सालों के दौरान स्वतंत्र विधायकों की तादाद बढ़ी है और ये विधायक हमेशा मौका का फायदा उठाने की ताक में रहते हैं.

मेघालय की मौजूदा मुकुल संगमा नीत कांग्रेस सरकार में स्वतंत्र विधायकों की खूब चलती है. पार्टी अंदरुनी कलह की शिकार है सो उनके दांव-पेंच से अक्सर आशंका आन खड़ी होती है कि सरकार कहीं पटरी से ना उतर जाए.


साल 1998 से 2008 के बीच सूबे की विधानसभा में मात्र 5 स्वतंत्र विधायक थे. लेकिन 2013 तक ऐसे विधायकों की संख्या बढ़कर 13 हो गई. साल 2013 तक पांच साल की अवधि के भीतर मेघालय में स्वतंत्र उम्मीदवारों का कुल वोट शेयर दोगुना से भी ज्यादा बढ़कर 13 फीसद से 27.7 प्रतिशत पर जा पहुंचा है.

इस साल 84 व्यक्तियों ने स्वतंत्र उम्मीदवार के रुप में नामांकन का पर्चा भरा है. इनमें से मात्र तीन मौजूदा विधानसभा में विधायक हैं. सदन के शेष 10 विधायकों ने कांग्रेस, बीजेपी, नेशनल पीपुल्स पार्टी या फिर एनसीपी का दामन थाम लिया है.

संयुक्त मुख्य चुनाव अधिकारी तेंगसेंग जी मोमिन के मुताबिक, 'इस साल 2013 की तुलना में स्वतंत्र उम्मीदवार के रुप में नामांकन का परचा दाखिल करने वालों व्यक्तियों की तादाद कहीं कम है. लेकिन, ऐसे कुछ उम्मीदवारों को सूबे के किन्ही इलाकों में जितना समर्थन हासिल है उतना प्रमुख राजनीतिक दल के उम्मीदवारों को भी नहीं. स्वतंत्र उम्मीदवारों में कुल 13 चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. इससे स्वतंत्र उम्मीदवारों को हासिल समर्थन का अंदाजा लगाया जा सकता है.'

2013 में कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा थे स्वतंत्र उम्मीदवार

साल 2013 में विधायकों की तादाद के मामले में कांग्रेस के बाद सबसे ज्यादा संख्या स्वतंत्र उम्मीदवारों की थी जिससे स्वतंत्र उम्मीदवारों के बढ़ते प्रभाव का पता चलता है. सत्ता के समीकरण में यह बदलाव धीरे-धीरे आया है लेकिन अपने आप में यह बदलाव बहुत अहम है. प्रमुख राजनीतिक दल ऐसे उम्मीदवारों को अपनी तरफ मिलाने के लिए मजबूर हुए हैं.

इस चुनाव में जीत के लिहाज से आगे माने जाने वाले प्रमुख स्वतंत्र उम्मीदवारों में बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष एडमंड संगमा और सैयदुल्लाह नोंग्रूम का नाम शामिल है. नोंग्रूम मुख्यमंत्री मुकुल संगमा के राजनीतिक सचिव रह चुके हैं.

नोंग्रूम अपनी स्वतंत्र उम्मीदवारी की बात को समझाते हुए कहते हैं, 'मेरे चुनाव क्षेत्र के लोग चाहते हैं कि मैं चुनाव लड़ूं. मुझे कांग्रेस का टिकट नहीं मिला और मैं पार्टी के आदेश के खिलाफ नहीं जा सकता, इसलिए मैंने स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने का फैसला किया है. मुझे गारो, हिंदू और राभा समुदाय के लोगों का समर्थन हासिल है साथ ही अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों का भी जो मेरे चुनाव-क्षेत्र में अच्छी-खासी तादाद में हैं. अगर मैं चुना जाता हूं तो अपने चुनाव-क्षेत्र के फायदे के लिए बतौर विधायक जो कुछ भी जरुरी होगा, करुंगा.'

माना जा रहा है कि एडमंड संगमा और सैयदुल्लाह नोंग्रूम अपने-अपने चुनाव क्षेत्र से विजयी रहेंगे. सूबे की सियासत में एक और उम्मीदवार, मावहाती के विधायक जूलियस डोरफेंग की जीत हलचल मचा सकती है. पिछले साल सूबे की राजनीति में कुख्यात मारवलिन इन्न केस से उबाल आया था. इसमें एक 14 साल की किशोरी पर यौन-हमला करने के आरोप में जूलियस डोरफेंग की गिरफ्तारी हुई थी.

डोरफेंग हेन्निवट्रेप नेशनल लिबरेशन काउंसिल(एचएनएलसी) के उग्रवादी रह चुके हैं. बाद में उन्होंने सियासत का रास्ता चुना. फिलहाल वे सुनवाई के इंतजार में जेल में बंद हैं और मावहाती चुनाव-क्षेत्र में उनकी दावेदारी काफी मजबूत मानी जा रही है. डोरफेंग अगर चुनाव जीत जाते हैं तो वे जेल में रहकर चुनाव जीतने वाले पूर्वोत्तर के पहले व्यक्ति होंगे.

मुकदमे में डोरफेंग की पैरवी कर रहे वकील ने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर टेलीफोन से हुई बातचीत में बताया कि 'लोक प्रतिनिधित्व कानून के तहत नामांकन का पर्चा दाखिल करने के लिए विधायक का मौजूद होना जरुरी नहीं है. जबतक उन्हें कोर्ट से दोषी नहीं करार दे दिया जाता तबतक डोरफेंग जूलियस  चुनाव लड़ने के लिए आजाद हैं.'

लोगों का बढ़ रहा टीम में भरोसा

मेघालय के पूर्व गृहमंत्री रोबर्ट जी लिंगदोह का मानना है कि 'लोग इस लकीर पर सोच रहे हैं कि चुनावों में कौन सी टीम जीत कर आने वाली है. वे अब इस बात को समझ रहे हैं कि व्यवस्था का कारगर होना व्यक्ति पर नहीं बल्कि टीम पर निर्भर करता है. फिलहाल की स्थिति को देखकर यही लगता है कि स्थायी राजनीतिक दलों के उभार के कारण जीत हासिल करने वाले स्वतंत्र उम्मीदवारों की संख्या कम होगी.'

इस साल मतदाता सूची में जिनका नाम पहली दफे आया है बहुत कुछ उन्ही पर निर्भर करता है कि इस बार मेघालय में सत्ता की बागडोर किसके हाथ में होगी. मौजूदा मतदाताओं में तकरीबन 45 फीसद ऐसे हैं जो इस बार पहली दफे वोट करेंगे सो चुनावी नतीजों को तय करने में इन नए मतदाताओं की भूमिका अहम होगी.

नार्थ-ईस्टर्न हिल्स यूनिवर्सिटी (नेहू) में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर आर के सत्पथी का कहना है कि 'क्षेत्रीय पार्टियों में आत्मविश्वास की कमी के कारण विधानसभा में ज्यादा संख्या में स्वतंत्र उम्मीदवार चुनकर आ रहे हैं. बीते कई सालों से मेघालय के मतदाताओं के सामने कोई बेहतर विकल्प मौजूद नहीं था. इसी कारण मतदाता क्षेत्रीय दलों या फिर कांग्रेस के ऊपर स्वतंत्र उम्मीदवारों को तरजीह देते आए हैं. इस बार स्थिति बदली है क्योंकि एनपीपी कांग्रेस का मजबूत विकल्प बनकर उभरी है.'

अगर 2013 को आधार वर्ष मानकर बीते तीन दशक में हुए मतदान के रुझान को देखें तो नजर आता है कि चुनावी मुकाबले की बाकी पार्टियों के हाथों स्वतंत्र उम्मीदवारों ने अपने जनाधार की जमीन धीरे-धीरे गंवाई है. साल 1983 में स्वतंत्र उम्मीदवारों का वोट शेयर 22.5 प्रतिशत था जो साल 2003 में घटकर 12 प्रतिशत यानी सबसे निचले स्तर पर जा पहुंचा. लेकिन 2013 में स्वतंत्र उम्मीदवारों के वोटशेयर में फिर उछाल आई और आंकड़ा 27.7 फीसद की ऊंचाई पर चला आया.

दरअसल राष्ट्रीय पार्टियों के बीच वोट के बंटने के कारण स्वतंत्र उम्मीदवार ज्यादा प्रभावशाली नजर आ रहे हैं. कांग्रेस सत्ता में है सो उसे एंटी-इन्कम्बेंसी से जूझना है. एनपीपी, बीजेपी तथा यूनाइटेड डेमोक्रेटिक पार्टी कांग्रेस को सत्ता से बाहर करने के लिए जीन-जान से जुटी हुई हैं. ऐसे में राजनीति के पर्यवेक्षकों को मानना है कि स्वतंत्र उम्मीदवार तथा छोटी क्षेत्रीय पार्टियां मेघालय का राजनीतिक भविष्य तय करने में अहम भूमिका निभाएंगी.