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नॉर्थ-ईस्ट राज्यों को अब हल्के में नहीं, गंभीरता से ले रहे हैं नेता और मीडिया

पूर्वोत्तर के राज्यों की दशा में सुधार साल 2014 के बाद देखा जाने लगा जब मौजूदा मोदी सरकार ने लुक ईस्ट पॉलिसी को एक्ट ईस्ट पॉलिसी में तब्दील किया

FP Staff

पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में असेंबली चुनावों के नतीजे आ गए हैं. चुनाव प्रचार से लेकर नतीजों के मीडिया कवरेज की बात करें तो आजादी के बाद के ट्रेंड इस ओर इशारा करते हैं कि राष्ट्रीय मीडिया का ध्यान पूर्वोत्तर के चुनावों पर कम ही रहता है.

राष्ट्रीय मीडिया का बढ़ा फोकस


शनिवार को इससे हटकर वाकया हुआ जब होली के अगले दिन लोगों ने जैसे ही टीवी खोला, उनके सामने लगभग हर चैनलों पर पूर्वोत्तर के राज्यों के चुनावी रुझान प्रसारित होते दिखे. टि्वटर पर भी कुछ ऐसा ही दिखा जब दिल्ली के लोगों ने मेघालय, त्रिपुरा और नगालैंड के नतीजों को चाव से लिया और अपनी राय जाहिर की.

पंडित जवाहर लाल नेहरू जब देश के पहले प्रधानमंत्री बने, तब से हालात कुछ ऐसे बने कि पूर्वोत्तर के राज्य अलग-थलग पड़ते चले गए. आजादी के 60 साल गुजर जाने के बाद भी दशा कुछ बेहतर नहीं हुई और इन राज्यों के प्रति लोगों की दिलचस्पी कम ही रही.

एक्ट ईस्ट पॉलिसी से सुधरी दशा

पूर्वोत्तर के राज्यों की दशा में सुधार साल 2014 के बाद देखा जाने लगा जब मौजूदा मोदी सरकार ने लुक ईस्ट पॉलिसी को एक्ट ईस्ट पॉलिसी में तब्दील किया. इसके बाद पूर्वोत्तर के 8 राज्यों में केंद्र सरकार के कई मंत्रियों ने बराबर चक्कर लगाना शुरू किया. जबकि विपक्ष की राजनीति में ऐसा कोई बदलाव नहीं देखा गया. केंद्रीय मंत्रियों की चहलकदमी को कई विपक्षी पार्टियों ने दबी जुबान स्वीकार किया. त्रिपुरा में वाम मोर्चे से जब इस बाबत पूछा गया तो उसका जवाब था कि कांग्रेस और बीजेपी की सरकार में अहम अंतर यह है कि बीजेपी सरकार के मंत्रियों ने पूर्वोत्तर राज्यों को फोकस में लिया.

केंद्रीय मंत्रियों ने भी बढ़ाई दिलचस्पी

न्यूज18 से बातचीत में सीपीएम प्रवक्ता और सेंट्रल कमेटी के सदस्य गौतम दास ने चुनाव से ठीक पहले बताया कि बीजेपी केंद्रीय मशीनरी की मदद से चुनाव लड़ रही है. दास ने कहा, बीजेपी न सिर्फ केंद्रीय मंत्रियों का उपयोग कर रही है, उसने अपने सियासी हित साधने के लिए सरकारी कंपनियों का भी उपयोग किया है. हर महीने एक या कुछ और भी मंत्री अगरतला आते हैं. एक छोटी बैठक करने के बाद वे पार्टी के कार्यों में लग जाते हैं. इतना ही नहीं, सरकारी कंपनियों के प्रोग्राम में बीजेपी नेताओं को गेस्ट के तौर पर आमंत्रित किया जाता है.

चूंकि दिल्ली का ध्यान अब पूर्वोत्तर पर गंभीरता से पड़ा है, इसलिए राष्ट्रीय मीडिया भी यहां की हरेक घटना को प्रमुखता से लेता है.

शांत माहौल से भी बना काम

केंद्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद पूर्वोत्तर के राज्यों में शांति का माहौल कायम रहा है. तरुण गोगोई के 15 साल के राज में असम में उग्रवाद में खास कमी देखी गई. ठीक ऐसे ही त्रिपुरा में मानिक सरकार ने विवादित कानून अफस्पा हटवाया तो मणिपुर में इबोबी सिंह ने मैतेई राष्ट्रवाद पर अंकुश लगवाया.

(न्यूज18 के लिए सुभजीत सेनगुप्ता की रिपोर्ट)