view all

यूपी चुनाव 2017: प्रदेश की सियासी सरगर्मी में 'जूतमपैजार'

मुलायम सिंह अपने घर के झगड़े सुलझाने में उलझे हैं.

Amitesh

ये लखनऊ की तहजीब नहीं है. लेकिन सियासत का तहजीब से पुराना बैर है. इसलिए न टोपी उछलते देर लगती है, न जूते चलते.

चुनावी माहौल में टोपी और जूते अपनी-अपनी जगह पर बने रहें, ये बड़ी बात है. यूपी की चुनावी सरगर्मी इसे करीब-करीब नामुमकिन बना दे रही है.


फिलहाल हुआ ये है, कि राहुल गांधी पर जूता चल गया. राजधानी लखनऊ से कुछ ही दूरी पर ये घटना घटित हुई है.

ये गंगा जमुनी तहजीब को कलंकित करने वाला मामला है. लेकिन यूपी ऐसी सियासी सनसनी से रोज दो-चार हो रहा है.

राजनीतिक मसलों के पेंच ऐसे हैं, कि घर परिवार तक एक नहीं रह पाए हैं. मुख्यमंत्री अखिलेश यादव 3 अक्टूबर से 'विकास से विजय की ओर यात्रा' करने वाले थे.

लेकिन आखिरी वक्त पर यात्रा स्थगित हो गई. मुलायम सिंह यादव आजमगढ़ से यूपी चुनाव का बिगुल फूंकने वाले थे. लेकिन बिगुल से पहले बाजा बज गया.

मुलायम ने रैली टाल दी. आजमगढ़ को मुस्लिम – यादव गठजोड़ का केन्द्र बिंदु माना जाता है. लेकिन, रैली स्थगित क्यों हुई, इसके बारे में न पिता बता रहे हैं ने बेटे कुछ कहने को तैयार हैं.

एक बात साफ है. समाजवादी पार्टी के भीतर मचा कोहराम अभी थमा नहीं है. भले ही कुछ दिनों के लिए युद्ध विराम की स्थिति दिख रही हो. लेकिन, आपसी फूट की चिंगारी कब शोला बन जाए, कहा नहीं जा सकता.

एक नया समीकरण भी बनता दिख रहा है. ओमप्रकाश चौटाला की इंडियन नेशनल लोक दल, समाजवादी पार्टी और नीतीश कुमार की जेडीयू राष्ट्रीय स्तर पर एक महागठबंधन बनाने की तैयारी कर रहे हैं.

नए मोर्चे की सुगबुगाहट

चौधरी अजित सिंह (राष्ट्रीय लोक दल), नीतीश कुमार की जेडीयू और दूसरे समान विचारधारा वाले दल भी एकसाथ आ सकते हैं. एक नए मोर्चे की सुगबुगाहट भी सुनी जा रही है.

पिछले महीने ही आईएनएलडी, जेडीयू और एसपी के नेताओं ने हरियाणा के करनाल में सद्भावना सम्मान रैली की थी.

एक मंच पर आकर इन्होंने बीजेपी और कांग्रेस दोनों से समान दूरी बनाए रखने की अपील की. हालांकि अजित सिंह ने इस रैली में शिरकत नहीं की.

लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू और कुछ दूसरे दलों के साथ जाने का वो मन बना चुके हैं. शायद जाट समुदाय का बीजेपी से मोह भंग हो रहा है.

तीसरी महत्वपूर्ण बात बीजेपी की राजनीति को लेकर है. कैराना मसले पर राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की रिपोर्ट से बीजेपी का खोया आत्मविश्वास लौट आया है.

एनएचआरसी की रिपोर्ट में ये बात सामने आई (फर्स्टपोस्ट 23 सितंबर की रिपोर्ट) कि कैराना में 250 हिंदू परिवारों का पलायन भय और उत्पीड़न के चलते हुआ.

रिपोर्ट के मुताबिक मुस्लिम इस शहर में बहुसंख्यक हैं. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद 25 हजार परिवारों का पुनर्वास हुआ है. जिसक चलते कैराना और आस पास के शहरों की डेमोग्राफी में बदलाव हुआ है.

आयोग ने यूपी के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक को इस बारे में नोटिस दिया है, और आठ हफ्ते के भीतर आयोग की रिपोर्ट और अनुशंसा पर कार्रवाई करने को कहा है.

गवर्नर राम नाईक चाहते हैं कि अखिलेश सरकार ना केवल आयोग की रिपोर्ट का संज्ञान ले, बल्कि इस मसले पर ठोस कार्रवाई करे.

बीजेपी इस मुद्दे को धार देगी

चौधरी अजित सिंह एनएचआरसी की रिपोर्ट को सिरे से खारिज करते हैं. उनका कहना है कि जांच टीम ने चंद लोगों से ही बात कर अपना निष्कर्ष दे दिया है.

सच्चाई जो भी हो, इस रिपोर्ट ने यूपी विधानसभा चुनाव में मुद्दे तलाशती बीजेपी को बड़ी ताकत दे दी है. निश्चित ही बीजेपी इस मुद्दे को धार देगी.

उधर, यूपी बीजेपी के पूर्व उपाध्यक्ष दयाशंकर सिंह की घर वापसी की कोशिशें भी हो रही हैं. बीएसपी सुप्रीमो मायावती के खिलाफ विवादित बयान देने पर उन्हें 6 साल के लिए पार्टी निकाला मिला था.

लेकिन, दयाशंकर की पत्नी और बेटी को सार्वजनिक रुप से गाली देने वालों पर बीएसपी ने अब तक कोई कदम नहीं उठाया.

इतना ही नहीं, दयाशंकर सिंह की पत्नी स्वाति सिंह भी भगवा ब्रिगेड के बैनर तले चुनावी समर में उतरने की तैयारी में हैं. बीजेपी ने इसका संकेत भी दे दिया है.

उन्हें बीजेपी महिला मोर्चा की अहम जिम्मेदारी मिली है. इसमें तनिक भी संदेह नहीं कि दयाशंकर सिंह का बयान और उस पर बीएसपी कार्यकर्ताओं की गाली ने बवाल बढ़ा दिया है.

लेकिन, पूरे मामले ने बीजेपी के सवर्ण वोट बैंक को साथ जोड़ने में मदद भी की है. हकीकत में यूपी में राजनीति तेजी से बदल रही है.

एसपी एक बार फिर से अपने-आप को रेस में आगे रखे हुए है. बीजेपी की सियासी जमीन भी मजबूत दिखने लगी है.लेकिन, मायावती को कमतर नहीं आंका जा सकता।

वो चुपचाप अपना समीकरण बनाने में लगी हैं. अगर मायावती का दलित-मुस्लिम गठजोड़ उन्हें जीत के करीब पहुंचा दे. तो ज्यादा हैरानी नहीं होगी.

फिलहाल उनके सबसे बड़े सियासी दुश्मन मुलायम सिंह यादव अभी पार्टी के भीतर के झगड़े में उलझे हैं वक्त तेजी से बदल रहा है और यूपी की सियासत भी.