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मेरठ रैली: क्या मायावती ने उठा दिया अपने वारिस से पर्दा!

मायावती क्या अपने भाई के सहारे पार्टी पर अपना कब्जा बनाए रखना चाहती हैं

FP Staff

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों में मिली करारी शिकस्त के बाद सोमवार को बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने मेरठ के वेदव्यासपुरी में पहली जनसभा को संबोधित किया. इस रैली में मायावती बीजेपी पर जमकर बरसीं.

बीजेपी और संघ पर हमले के अलावा भी यह रैली खास थी. मायावती की इस रैली में पहली बार उनके भाई आनंद कुमार और भतीजे आकाश भी सार्वजनिक मंच पर एक साथ नजर आए. पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स और विरोधी इसे राजनीति में वंशवाद का नया उदाहरण बता रहे हैं.


कौन बनेगा वारिस?

दरअसल यह पहला मौका था जब मायावती के भाई आनंद कुमार और उनके बेटे आकाश किसी जनसभा में मायावती के साथ मंच पर मौजूद थे. बाकायदा एनाउंसर ने दोनों का नाम लेकर उनका परिचय करवाया. इतना ही नहीं दोनों ने एक मझे हुए नेता की तरह हाथ हिलाकर जनता के अभिनंदन को स्वीकार किया.

विधानसभा चुनाव में मिली हार के बाद मायावती ने अप्रैल 2017 में आनंद कुमार को पार्टी का उपाध्यक्ष घोषित किया था. हालांकि उस वक्त कहा जा रहा था कि आनंद कुमार कभी भी पार्टी के सांसद और मुख्यमंत्री नहीं बनेंगे.

आनंद कुमार के अध्यक्ष बनने के बाद से ही राजनैतिक गलियारों में इस बात की चर्चा शुरू हो गई थी कि मायावती अपना वारिस चुन रही हैं.

क्या है मायावती का मकसद?

पॉलिटिकल पंडितों का भी कहना था कि पार्टी के दिग्गज नेताओं के एक-एक कर पार्टी छोड़ने के बाद मायावती पार्टी का कमान अपने ही परिवार के पास रखना चाह रही हैं. लिहाजा उन्होंने अपने छोटे भाई को उपाध्यक्ष बनाया.

इतना ही नहीं मायावती ने अपने पार्टी कार्यकर्ताओं से भतीजे आकाश को भी मिलवाया और कहा कि यह पार्टी को मजबूती देने में उनकी मदद करेगा. इसके बाद एक बार फिर चर्चा शुरू हुई कि मायावती लंदन से एमबीए ग्रेजुएट भतीजे आकाश को अपना उत्तराधिकारी बना सकती हैं.

इतना ही नहीं सहारनपुर में हुए जातीय संघर्ष के दौरान जब मायावती शब्बीरपुर के दौरे पर गईं थीं तो आकाश भी उनके साथ थे. आकाश वहां दंगा पीड़ितों से मुलाकात कर उनकी बात भी गंभीरता से सुन रहे थे.

विपक्ष के निशाने पर मायावती

मेरठ रैली में परिवार के सदस्‍यों को सामने लाने के बाद विपक्ष ने मायावती पर हमल बोला है. बीजेेपी का कहना है कि अपनी घटती ताकत से घबराकर वे राजनीति में जितनी भी कुरीतियां हैं उनका सहारा ले रही हैं.

बीजेपी प्रदेश प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा, 'कांशीराम ने वंशवाद का विरोध किया था और मायावती भी इस कदम पर चलीं थीं. लेकिन कालांतर में पार्टी की लगातार घटते जनाधार के बाद वे भी सभी कुरीतियों को अपना रहीं हैं. अब मायावती इन सभी अनावश्यक कुरीतियों को अपनाकर पार्टी को अंतिम दौर में लेकर जा रहीं हैं.'

कौन हैं मायावती के भाई आनंद

वैसे तो मायावती के भाई आनंद का नाम नया नहीं है, लेकिन सियासी मंच पर वह नहीं देखे गए थे. कार्यकर्ता उन्हें बखूबी जानते हैं. मायावती के भतीजे आकाश पहली बार मंच पर दिखे.

हालांकि माना जा रहा है कि सियासत की डोर आकाश भी संभाल सकते हैं. जबकि आनंद पार्टी की सेकंड लाइन की मॉनीटरिंग करेंगे. उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं नहीं हैं. लेकिन अपने बेटे आकाश को राजनीति का ककहरा सिखाने की मंशा सच हो गई.

इधर, परिवार से दूर रहने के दौरान मायावती का भरोसा पार्टी में कई लोगों ने खोया. स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू राम कुशवाहा और नसीमुद्दीन से मतभेद के बाद अब वह किसी पर यकीन नहीं जमा पाएंगी. पार्टी कार्यकर्ताओं की मानें तो इसी वजह से उन्होंने अपने भाई और भतीजे को साथ ले लिया है.

उनके भाई आनंद पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. उन्हें भले ही सियासी अनुभव न हो, लेकिन मायावती के कार्यकाल में रियल स्टेट व पार्टी का कोष संभालने के आरोपों में विवादों में आए.

(न्यूज 18 से साभार)