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बीएसपी प्रवक्ता ने कहा: सभी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक ताकतें मायावती को पीएम बनाना चाहेंगी

मायावती प्रधानमंत्री पद के लिए एक भरोसेमंद दलित दावेदार हैं, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इंतजार करना होगा क्योंकि उन्होंने अभी तक नेता के तौर पर अपना दम-खम साबित नहीं किया है.

Debobrat Ghose

मायावती प्रधानमंत्री पद के लिए एक भरोसेमंद दलित दावेदार हैं, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को इंतजार करना होगा क्योंकि उन्होंने अभी तक नेता के तौर पर अपना दम-खम साबित नहीं किया है. यह कहना है बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) के नेता सुधींद्र भदौरिया का. बृहस्पतिवार को फ़र्स्टपोस्ट से बात करते हुए पार्टी के एकमात्र अधिकृत प्रवक्ता भदौरिया ने भरोसा जताया कि महागठबंधन बीएसपी सुप्रीमो को 2019 के चुनाव से पहले अपने प्रधानमंत्री उम्मीदवार के रूप में पेश करेगा. पेश हैं बातचीत के अंशः

क्या आपको लगता है कि बीएसपी सुप्रीमो मायावती प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ प्रस्तावित महागठबंधन की तरफ से प्रधानमंत्री पद की दावेदार हो सकती हैं, जैसा कि छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने हाल ही में कहा था?


जवाब- जी हां, बहन मायावती जी के पास 2019 में पीएम का चेहरा बनने के सभी गुण हैं. वह देश के दलितों, पिछड़ों और गरीबों की सबसे प्रमुख नेता और सबसे भरोसमंद चेहरा हैं, क्योंकि वह इन वर्गों के सशक्तीकरण के लिए साढ़े तीन दशक से आंदोलन में सबसे आगे रही हैं. उनके पास एक कुशल प्रशासक के तौर पर एक शानदार ट्रैक रिकॉर्ड है, जिन्होंने उत्तर प्रदेश में कानून और व्यवस्था की स्थिति को सख्ती से संभाला था. वह चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं और राज्यसभा की सदस्य सदस्य रही हैं. उनके कार्यकाल में राज्य की विकास दर 3.5% से बढ़कर 9 % पहुंच गई थी. अजीत जोगी के अलावा, ओम प्रकाश चौटाला और कर्नाटक के मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी ने भी 2019 में उनका प्रधानमंत्री के तौर पर समर्थन किया है.

2019 के लिए पीएम पद के दावेदार रूप में मायावती के नाम का एकतरफा ऐलान अन्य उम्मीदवारों को नाखुश कर सकता है और महागठबंधन टूट सकता है. आपका क्या ख्याल है?

वैसे यह एकतरफा फैसला नहीं होगा, क्योंकि सभी विपक्षी दल उन्हें पीएम उम्मीदवार बनाने के लिए हाथ मिलाएंगे. भारत को हर समुदाय से प्रधानमंत्री मिल चुके हैं. वह उस दलित समुदाय से आती हैं, जिसने दशकों से उत्पीड़न और उपेक्षा झेली है. दिग्गज दलित नेता बाबा साहेब अंबेडकर हमारे संविधान के शिल्पकार थे, जबकि एक अन्य नेता बाबू जगजीवन राम को कांग्रेस में बड़ा नेता होने के बावजूद प्रधानमंत्री बनने का मौका नहीं दिया गया था. तो, इस समुदाय से प्रधानमंत्री क्यों नहीं? इस बार विपक्षी दलों को ‘दलित बेटी’ बहन मायावती जी को यह मौका देने में बड़ा दिल दिखाना चाहिए.

महागठबंधन बनने से पहले ही खत्म हो चुका है? विपक्षी दल भ्रमित दिखाई देते हैं ...

देखिए, 2019 का चुनाव पीएम मोदी और बीजेपी के लिए एक परीक्षण होगा कि क्या वो 2014 में मतदाताओं से किए वादों को पूरा कर सके या नहीं? लोगों को पता चलेगा कि उन्हें लगभग हर मोर्चे पर धोखा दिया गया है- पांच वर्षों में 10 करोड़ नौकरियां पैदा करने, सबके बैंक खाते में 15 लाख रुपए आने से लेकर घरेलू और विदेशी नीति मोर्चों पर नाकामी तक और बीजेपी का विभाजनकारी एजेंडा, जिसने हमारे सामाजिक ताने-बाने को चोट पहुंचाई है. नोटबंदी और तेल की बढ़ती कीमतों का हमारी अर्थव्यवस्था और रोजगार सृजन पर एक विनाशकारी असर पड़ा है. सीबीआई जैसे संस्थानों की विश्वसनीयता को कमजोर कर दिया गया है. हमारी संवैधानिक और लोकतांत्रिक व्यवस्था खतरे में है.

ये सभी मुद्दे क्षेत्रीय दलों सहित सभी गैर-बीजेपी विपक्षी दलों को एक साथ लाएंगे. लोग सबसे अच्छे विकल्प के लिए वोट देंगे. किसी किस्म के गठबंधन के गठन के बारे में घोषणा किए बिना भी, बहन जी ने राज्यों में पहले ही गठबंधन कर लिया है. वक्त बताएगा कि चीजें 2019 में क्या रूप देती हैं.

सोनिया गांधी को स्वीकार करने के बावजूद क्यों कई गैर-बीजेपी राजनीतिक दल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को 2019 के लिए गठबंधन का नेता या पीएम फेस के रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं?

एक राष्ट्र का प्रधानमंत्री पद एक बड़ी जिम्मेदारी है. जवाहरलाल नेहरू से लेकर मोदी तक- वो सभी जो पीएम बने हैं, या तो समृद्ध राजनीतिक अनुभव के साथ प्रशासनिक क्षमता रखते थे या क्षमता का प्रदर्शन किया. राहुल गांधी के पास ना तो कोई प्रशासनिक अनुभव है और न ही उन्होंने आज तक कुछ भी करके दिखाया है. यहां तक कि कांग्रेस पार्टी के भीतर भी पी. चिदंबरम और सलमान खुर्शीद जैसे वरिष्ठ नेताओं ने स्वीकार किया है कि राहुल पार्टी के पीएम फेस नहीं हैं. कांग्रेस के अकेले दम पर सरकार बनाने की ताकत हासिल करने तक उन्हें इंतजार करना होगा और दम-खम दिखाना होगा. 2019 के चुनाव सभी पार्टियों को बड़ी चुनौती देने जा रहे हैं और उन्हें प्रधानमंत्री पद के लिए एक भरोसेमंद चेहरे की जरूरत होगी. भारत का प्रधानमंत्री बनने के लिए, आपके खाते में खुद की उपलब्धियां दर्ज होने की जरूरत है, सिर्फ राजवंश का होने से मदद नहीं मिलेगी.

बीएसपी के हिसाब से, सीटों के बंटवारे का सबसे अच्छा तरीका क्या होगा?

वोट शेयर के मामले में बीएसपी तीसरी सबसे बड़ी पार्टी है और देश में 50% राज्यों में इसकी मौजूदगी है. कोई भी राजनीतिक दल जो गठबंधन में शामिल होना चाहता है, उसके लिए देश में बढ़ती दलित और ओबीसी चेतना को समझने की जरूरत है. बीएसपी को सम्मानजनक राजनीतिक जगह दी जानी चाहिए.

क्या आप उम्मीद करते हैं कि कांग्रेस सहयोगियों को संतुष्ट करने के लिए उन सीटों की कुर्बानी दे देगी जहां वह मजबूत है? क्या यह अपने हितों के खिलाफ नहीं है जैसा कि छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में हुआ?

देखिए, कांग्रेस को अन्य पार्टियों को भी जगह देनी होगी. गठबंधन में शामिल होते समय, उन्हें अपनी पुरानी सामंती मानसिकता से ऊपर उठना होगा. अगर वे अपने स्पेस के बारे में सोच रहे हैं, तो उन्हें दूसरों के लिए भी ऐसा करने की जरूरत है. यूपी चुनाव का मामला लें, जिसमें कांग्रेस ने अपनी ताकत को तौले बिना 100 सीटों पर चुनाव लड़ा और नतीजा क्या रहा? यहां तक कि गोरखपुर और फूलपुर उप-चुनावों में भी- जो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के निर्वाचन क्षेत्र हैं- बीएसपी-एसपी गठबंधन जीते हैं, सत्तारूढ़ बीजेपी या कांग्रेस नहीं. बीएसपी अपनी ताकत बढ़ाने और प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों पर काम कर रही है.

अच्छे वोट शेयर के साथ हमारे छत्तीसगढ़ में एक और मध्य प्रदेश में चार विधायक हैं. हम मध्य प्रदेश में तीसरे मोर्चे के झंडे तले गोंडवाना गणतंत्र पार्टी जैसे छोटे क्षेत्रीय दलों को लाने की कोशिश कर रहे हैं. हम जहां भी गठबंधन करेंगे कर्नाटक और हरियाणा के अपने मॉडल को दोहराएंगे. हमने छत्तीगढ़ में सफलतापूर्वक जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ गठबंधन किया है. जहां तक भविष्य में 2019 के गठबंधन का संबंध है, यह आसान होगा. जब समय आएगा, हम यह रास्ता भी तय कर लेंगे.

अजीत जोगी की पार्टी जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के साथ गठबंधन करने के बाद छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में आप कैसे प्रदर्शन करने की उम्मीद करते हैं?

छत्तीसगढ़ मुख्य रूप से एससी, एसटी और ओबीसी राज्य है. हमारे मूल मतदाता दलित और ओबीसी हैं, जबकि अजीत जोगी का आदिवासी लोगों के बीच मजबूत आधार है. इस सामाजिक घटक ने बसपा-जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ गठबंधन का रास्ता बनाया. मायावती जी ने पहले से ही जोगी को गठबंधन का सीएम फेस घोषित कर दिया है, क्योंकि जोगी का बड़ा जनाधार है. कांग्रेस के पास सीएम उम्मीदवार पेश करने के लिए कोई मजबूत दावेदार नहीं है. मौजूदा मुख्यमंत्री रमन सिंह को जबरदस्त सत्ता-विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है और छत्तीसगढ़ के लोगों के बीच उनकी सरकार के खिलाफ बहुत गुस्सा है. हमारे पास जीतने और सरकार बनाने का अच्छा मौका है.

आखिरी सवाल, क्या बीएसपी विपक्षी खेमे की अन्य पार्टियों के साथ मिलकर 2019 में भाजपा को हराने में कामयाब होगी?

बीएसपी की अपनी ताकत के अलावा सभी धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक और गैर-सांप्रदायिक ताकतें 2019 के लोकसभा चुनाव में बहन मायावती जी का समर्थन करेंगी.