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नोटबंदी का विरोध छोड़ राहुल छुट्टी मनाने फिर चले विदेश

आंदोलन की कमान पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को सौंप राहुल के इस तरह बाहर जाने को लेकर पार्टी में असंतोष है.

Sitesh Dwivedi

नोटबंदी के खिलाफ कांग्रेस पार्टी के देशव्यापी अभियान को शुरुआत में ही झटका लगता दिख रहा है. नोटबंदी के खिलाफ विपक्ष को साधने में हुई चूक से कांग्रेस अभी उबर ही नहीं पाई है.

इस बीच पार्टी के बहुप्रचारित 6 और 9 जनवरी के विरोध प्रदर्शन में पार्टी उपाध्यक्ष राहुल गांधी की मौजूदगी को लेकर संशय पैदा हो गया है. नोटबंदी के खिलाफ देश भर में लड़ाई के एलान के बाद कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी एक बार फिर विदेश यात्रा पर जाने वाले हैं.


क्या राजनीतिक है राहुल की यात्रा 

नए साल की पूर्वसंध्या पर कांग्रेस उपाध्यक्ष पहले भी विदेश जाते रहे हैं. इसको लेकर पार्टी के भीतर नाराजगी और विरोधियों द्वारा उनकी आलोचना भी होती रही है.

पार्टी के भीतर राजनीति को लेकर राहुल के 'कैजुअल' रवैये को लेकर चिंता होती थी. जबकि विरोधी दल उन्हें 'पार्ट टाइम पॉलिटिशियन' बताता रहा है. हालांकि इस बार नोटबंदी के विरोध से उभरी संभावनाओं के मद्देनजर राहुल गांधी नए साल का पहला दिन तो देश में ही मनाएंगे, लेकिन जनवरी के पहले सप्ताह राहुल चीन की यात्रा पर होंगे.

सौजन्य : पीटीआई

आधिकारिक रूप से इस यात्रा को राजनीतिक कार्यक्रमों से जोड़ा गया है. लेकिन माना जा रहा है की यह यात्रा का कार्यक्रम राहुल को एक छोटा अवकाश देने के लिए बनाया गया है.

गौरतलब है की राजनीतिक बताई जा रही इस यात्रा में पूर्व वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा के अलावा कनिष्क सिंह, सचिन राव,सुष्मिता देव जैसे नाम हैं.

कनिष्क और सचिन का राजनीति से ज्यादा राहुल गांधी से रिश्ता है. जबकि पहली बार की संसद पहुंची सुष्मिता देव राहुल की करीबी मानी जाती है. सुष्मिता पार्टी के वरिष्ठ नेता संतोष मोहन देव की पुत्री हैं.

पहले मां के पास गोवा जाएंगे राहुल  

जानकारी के मुताबिक राहुल नए साल की पूर्व संध्या पर गोवा जायेंगे, जहांं पर उनकी मांं और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांंधी कुछ दिनों से स्वास्थ्य लाभ ले रही हैं.

पहले राहुल को यहांं से दो दिनों के लिए विदेश जाना था, लेकिन अब वे गोवा में ही मांं के पास दो दिन रुककर वापस आ जाएंगे. इसके बाद एक बार पार्टी पदाधिकारियों के साथ अनौपचारिक बैठक कर वे चीन रवाना होंगे.

वैसे गोवा में चुनाव भी है और कांग्रेस को यहांं भाजपा के साथ आम आदमी पार्टी की चुनौती से भी पार पाना है. संभव है की राहुल का मां के पास दो दिन का प्रवास कांग्रेस के लिए कोई सियासी बढ़त देने वाला वाला साबित हो.

राहुल की यात्रा से कांग्रेस में असंतोष 

हालांकि, पांच राज्यों की चुनावी बिसात और नोटबंदी के आंदोलन की कमान पार्टी के बुजुर्ग नेताओं को सौंप राहुल के इस तरह बाहर जाने को लेकर पार्टी में असंतोष है.

पार्टी के एक युवा नेता ने कहा की इस तरह सही समय पर सही जगह न होने के कारण पहले भी उन्होंने अवसर गवाएं है, एक बार फिर वैसा ही दिख रहा है.

गौरतलब है कि नोटबंदी को लेकर विरोध कार्यक्रमों की कमान पार्टी के वरिष्ठ नेता व सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव अहमद पटेल के जिम्मे है.

देश भर में आंदोलन की शुरुआत को हरी झंडी दिखाने से लेकर इसे सुचारू रूप से लंबे समय तक चलाये रखने के लिए एक टीम भी बनायी गई है. लेकिन राहुल की शुरुआती गैरमौजूदगी ने इसके शुरू होने से पहले ही फीका कर दिया है.

नोटबंदी के मुद्दे पर विपक्ष में बिखराव की वजह भी राहुल के इसी रवैये को बताया जा रहा है. एसपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, 'जब वे अपनी ही पार्टी के कार्यक्रमों को लेकर इस प्रकार सोचते हैं, तो किसी साझा कार्यक्रम को लेकर सोचना बेमानी है.'

जाहिर है राहुल की राजनीति को देखते हुए खांटी राजनीति करने वाले उनसे जुड़ने में असहज महसूस करते हैं.

जबकि जिस तृणमूल के साथ आने को लेकर कांग्रेस खुश हो रही है, उसके नेताओं का कहना है की नोटबंदी विरोध की नेता ममता दीदी है.

जाहिर है जमीनी राजनीति में गहरी पैठ रखने वाली ममता बनर्जी कांग्रेस को मंच के रूप में इस्तेमाल तो कर सकती हैं. लेकिन कांग्रेस से महज 10 सीट पीछे खड़ी तृणमूल को राहुल के लिए मंच बनने नहीं देंगी.

यूपी चुनाव को लेकर राहुल गंभीर नहीं?

ऐसे में राहुल को पहले अपनी पार्टी को मजबूत करना होगा, लेकिन यहां भी राहुल गंभीर नजर नहीं आते. राजनीतिक रूप से देश के सबसे बड़े राज्य यूपी की जिम्मेदारी वरिष्ठ पार्टी नेता गुलाम नबी आजाद संभाल रहे हैं. साख बचाने के लिए पार्टी को यहां गठबंधन की तलाश है.

राहुल और अखिलेश दोनों एक दूसरे के गुडबुक्स में हैं

उत्तर प्रदेश में पार्टी के लिए आनेवाला हफ्ता राजनीतिक रूप से बेहद अहम रहने वाला है. राज्य में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह ने गंठबंधन को खारिज करते हुए तीन सौ से ज्यादा पार्टी उम्मीदवारों का एलान कर दिया है. जबकि कांग्रेस से गठबंधन के पक्षधर मने जा रहे राज्य के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव बगावती तेवर में हैं.

अखिलेश के राहुल से अच्छे संबंध जगजाहिर हैं. ऐसे में राहुल की यात्राएं इस सब को कितना प्रभावित करेंगी पार्टी में इसको लेकर मंथन और चिंता दोनों है.

इसी तरह उत्तराखंड में पार्टी को सत्ता बचानी है, तो पंजाब और गोवा में उसके लिए वापसी का एक अवसर है. हालांकि राजनीति को लेकर अपनी राह चलने वाले राहुल की अपनी प्राथमिकताएं रही हैं.

ऐन मौकों पर गायब होते रहे हैं राहुल 

इससे पहले भी राहुल ऐन मौकों पर विदेश यात्राओं पर जाते रहें हैं. 2014 की करारी हार के बाद जब पार्टी को उनकी जरूरत थी, राहुल गांधी तकरीबन 2 महीने के लिए छुट्टी पर चले गए.

जानकारी दी गयी वे विपश्यना करने गए थे. हालांकि इस दौरान उनके यूरोप घूमने के जानकारी भी सामने आई. जून 16 में बजट सेशन से पहले राहुल 56 दिन की छुट्टी पर चले गए थे.

इसको लेकर भी उनकी खूब आलोचना हुई थी. विपक्षी पार्टियों ने यह कहते हुए निशाना साधा था कि ऐसे अहम वक्त पर छुट्टी पर जाकर राहुल ने साबित कर दिया है कि उन्हें देश के मुद्दों को लेकर चिंता नहीं है.

योग दिवस पर उनकी और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की गैर मौजूदगी को लेकर भी कांग्रेस शीर्ष आलोचना के घेरे में रह चुका है.