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नोटबंदी पर मनमोहन सिंह: बुरे दिन आने वाले हैं

नोटबंदी से न तो कालेधन पर पूरी तरह रोक लग पाएगी और न ही कालाधन व्यवस्था से गायब होगा.

FP Staff

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने एक लेख के जरिए मोदी सरकार पर बड़ा हमला बोला है.अंग्रेजी अखबार 'द हिंदू' में मनमोहन सिंह के लिखे लेख का हम यहां हिंदी में अनुवाद दे रहे हैं.

कहा जाता है कि ‘इंसान का आत्मविश्वास उसके पैसों से आता है.’ हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 8 नवंबर की रात एक झटके में देश की सवा सौ करोड़ आबादी का आत्मविश्वास हिला दिया.


पीएम मोदी ने रातों-रात हमारी अर्थव्यवस्था में चल रही 85 फीसदी मुद्रा को बेकार घोषित कर दिया. यह 1000 और 500 रुपए के नोट में थी. देश की जनता को अपनी सुरक्षा और सरकार से संरक्षण मिलने का भरोसा होता है. प्रधानमंत्री के इस एकाएक लिए गए फैसले ने यह भरोसा भी तोड़ दिया.

प्रधानमंत्री ने देश के नाम संदेश में कहा,

इतिहास में ऐसे मौके आते हैं, जब देश के विकास के लिए बड़े और निर्णायक फैसले लेने की जरूरत पड़ती है.

उन्होंने नोटबंदी लागू करने का दो मुख्य कारण बताए. पहला था, ‘सीमा पार से आतंक को मिल रही मदद और जाली नोट के कारोबार को रोकना.’  दूसरा कारण पीएम ने बताया कि नोटबंदी से कालेधन और भ्रष्टाचार पर लगाम लगेगी.

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह. फोटो: गेटी

पीएम के बताए दोनों कारण ठीक हैं. जाली नोट और कालाधन भारत के लिए आतंकवाद और सामाजिक भेदभाव जितने ही गंभीर मसले हैं. इन्हें खत्म करने के लिए पूरी ताकत से लड़ने की जरूरत है.

(पूर्व प्रधानमंत्री का मूल लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

नेक इरादों की सड़क

ऐसे फैसलों से आगाह करने के लिए एक मशहूर कहावत है. ‘नर्क का रास्ता नेक इरादों की सड़क से ही गुजरता है.’

हमारे प्रधानमंत्री को यह गलतफहमी है कि नकद का एक-एक रुपया कालाधन है और कालाधान सिर्फ नकद में ही है. लेकिन ऐसा नहीं है.

आइए इसे समझते हैं.

भारत में काम करने वाले 90 फीसदी लोगों को नकद में ही उनका पैसा मिलता है. इनमें कंस्ट्रक्शन के कामों मे लगे मजदूरों और खेतीहर मजदूरों  की संख्या सबसे ज्यादा है.

2001 के बाद से भले ही देश के सुदूर इलाकों में बैंक की शाखाएं दोगुनी हो गईं हों लेकिन आज भी 60 करोड़ भारतीयों तक बैंकों की पहुंच नहीं बन पाई है. इन लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी का आधार नकद पैसा ही है.

इनकी बचत भी नकद में ही होती है. अधिकतर बचत 1000 और 500 के नोटों के रूप में ही थी. इस बचत को कालाधन बताकर इनकी जिंदगी को नर्क बना देना, इन्हें बहुत बड़ी आपदा में झोंकने जैसा है.

लाखों-करोड़ों भारतीय नकद में कमाते हैं, नकदी में ही खर्च करते हैं और नकद में ही बचत भी करते हैं. नकदी के साथ उनका यह व्यवहार पूरी तरह जायज है.

अपने देश की जनता की रोजी-रोटी को सुरक्षित करना और संरक्षित करना किसी भी सरकार की पहली जिम्मेदारी होती है. लोकतांत्रिक तरीके से चुनी हुई एक गणतंत्र की सरकार के लिए तो यह सबसे बड़ी प्राथमिकता होनी चाहिए. लेकिन नोटबंदी से प्रधानमंत्री ने अपनी इस मूलभूत जिम्मेदारी का मजाक बना दिया है.

नोटबंदी विरोध. फोटो: सोलारिस

न तो घुन पिसा न ही गेहूं

भारत के लिए कालाधन बेशक एक बड़ी समस्या है. काले धन से लोगों ने अपनी अघोषित आय के जरिए अकूत संपत्ति बना ली है. कालाधन जमीन, सोना और विदेशी मुद्रा के रूप में जमा है. गरीबों के पास ये सब नहीं है.

पिछली सरकारों ने आयकर विभाग और प्रवर्तन निदेशालय के जरिए कालाधन जमा करने वालों की खिलाफ कारवाई करती रही है. अघोषित आय को अपनी इच्छा से घोषित करने की योजना पहले भी लागू की गई थी.

ऐसा कभी भी नहीं हुआ कि कालाधन पर कारवाई करने के लिए सबको निशाना बनाया गया हो. इन कार्रवाइयों से यह बात साबित हुई कि कालाधन केवल नकद के रुप में नहीं है. नकदी कालेधन का बहुत छोटा सा हिस्सा है.

पीएम का नोटबंदी का फैसला नकद में कमाने वाले ईमानदार भारतीय के भरोसे पर गहरी चोट है. जबकि बेईमानों के लिए यह सिर्फ एक मामूली सी फटकार जैसा है. इस पर सरकार ने कालाधन इकट्ठा करने वालों के लिए 2000 रुपए का नोट निकाल कर और ज्यादा आसानी कर दी है.

नोटबंदी से न तो कालेधन पर पूरी तरह रोक लग पाएगी और न ही कालाधन व्यवस्था से गायब होगा. दुनिया के अधिकतर देशों के लिए यह बहुत बड़ा काम होगा. भारत जैसी बड़ी अर्थव्यवस्था में पुरानी मुद्रा को नई से बदलना कोई आसान काम नहीं है. भारत का आकार और विविधता इस काम को और भी ज्यादा मुश्किल कर  देता है.

ईमानदार का भरोसा टूटा

छोटे देश भी रातोंरात अपनी मुद्रा बदलने का जोखिम नहीं उठाते. ऐसा करने के लिए वो थोड़ा वक्त लेते हैं. अर्थव्यवस्था से मुद्रा धीरे-धीरे हटाई जाती है.

जिन लोगों ने अपनी आधी उम्र राशन के लिए दुकानों के बाहर लाइन में लगकर गुजारी है, उन्हें एक बार फिर लाइन में खड़ा देख कर अफसोस होता है. वो भी सिर्फ इसलिए कि जल्दबाजी में एक फैसला हम पर थोप दिया गया. मैंने कभी इसकी कल्पना तक नहीं की थी.

हमारी अर्थव्यवस्था पहले ही बुरे दौर से गुजर रही है. नोटबंदी इसे और नुकसान पहुंचाएगी. यह बात बिलकुल सही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में दूसरे मुल्कों की तुलना में नकदी का उपयोग ज्यादा होता है. लेकिन इससे यह भी तो साबित होता है कि हम नकद पर अधिक निर्भर हैं.

अर्थव्यवस्था के लिए इस पर ग्राहकों का भरोसा भी जरूरी होता है. अचानक नोटबंदी लागू होने से इसे भी धक्का लगा है. करोड़ों भारतीयों का भरोसा टूटने से अर्थव्यवस्था भी टूट सकती है. ईमानदार भारतीय के इस भरोसे को वापस हासिल कर पाना आसान नहीं होगा.

सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) पर इसका असर तो होगा ही, इसके साथ बेरोजगारी भी बढ़ेगी. वैसे तो आप सभी आने वाले मुश्किल समय के मानसिक रुप से तैयार हो गए होंगे फिर भी मेरी सभी यह अपील है के बुरे दिनों के लिए आप अपनी कमर कस लें.

कालाधन हमारे समाज के लिए नासूर की तरह है. इसको खत्म कराना भी उतना ही जरूरी है. लेकिन ऐसा करने में हमें करोड़ों ईमानदार भारतीयों पर इसके असर को भी ध्यान में रखना चाहिए.

पुरानी सरकारों ने कालेधन पर कुछ नहीं किया और आपके पास ही इसका सबसे अच्छा इलाज है. आप ऐसा सोच सकते हैं लेकिन यह सच नहीं है.

सरकारों और नेताओं को अपनी जिम्मेदारी निभाते हुए गरीब कमजोर तबके का ध्यान रखना चाहिए. अधिकतर नीतिगत फैसलों के कुछ दुष्परिणाम भी होते हैं. ये फैसले लेने से पहले हमें इनके नफा-नुकसान का विश्लेषण अच्छे से करना चाहिए.

कालेधन के खिलाफ युद्ध छेड़ने का फैसला आपको मनमोहक लग सकता है लेकिन इसमें एक भी ईमानदार भारतीय का मारा जाना अच्छी बात नहीं.