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मंदसौर: किसानों की मौत पर राजनीति बहुत हुई लेकिन चुनाव में वह अकेला खड़ा है

मध्यप्रदेश में कांग्रेस पिछले पंद्रह साल से सत्ता से बाहर चल रही है. डेढ़ साल पहले पुलिस फायरिंग में किसानों के मारे जाने के बाद कांग्रेस में यह उम्मीद जगी है कि वह सत्ता में वापसी कर सकती है

Dinesh Gupta

मंदसौर के मंडी परिसर में हर तरफ प्याज और लहसुन बिखरा पड़ा है. कई किसान ऐसे भी हैं जो कई दिन से खरीददार के इंतजार में बैठे हुए हैं. मंडी के गेट के बाहर भी सैकड़ों ट्रक-ट्रालियां खड़ी हैं. चुनाव में कौन जीतता है, इससे किसानों को कोई मतलब नहीं है.

मंदसौर में लगभग डेढ़ साल पहले किसानों पर हुई पुलिस फायरिंग के बाद जो नेता सक्रिय थे, वे मंडी परिसर के आसपास भी नहीं दिखाई दे रहे हैं. नेताओं को डर है कि कहीं किसानों का गुस्सा उन पर ही न फूट पड़े.


किसानों को नहीं मिल पा रहा लागत मूल्य

मंदसौर की मंडी प्याज, लहसुन की सबसे बड़ी मंडी है. इस मंडी में मंदसौर जिले के अलावा राज्य के अन्य हिस्सों से भी प्याज एवं लहसुन बिकने आते है. मंदसौर की यह मंडी प्रदेश की आदर्श मंडियों में से एक है. लेकिन, उपज की बंपर आवक से उत्पन्न होने वाली समस्याओं का कोई निदान मंडी प्रशासन के पास नहीं है.

मंडी पर सालों से बीजेपी का ही कब्जा है. नेता चुनाव में लगे हुए हैं. आचार संहिता के डर से भी नेता मंडी परिसर की और नहीं झांक रहे हैं. प्रशासन चुनावी तैयारियों में लगा हुआ है. मंडी परिसर के अंदर और बाहर जाम के हालात हैं. पुलिस प्रशासन भी फायरिंग की घटना के बाद से किसानों पर सख्ती करने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है.

मंडी में व्यापारी अपनी मर्जी से भाव तय कर रहे हैं. मंडी प्रशासन इसमें कोई दखल नहीं दे रहा है. अच्छी क्वालिटी की लहसुन जिसे मंडी व्यापारियों की भाषा में बम कहा जाता है,उसकी खरीदी अधिकतम चौदह सौ रुपए क्विंटल पर हुई है. ऐसी उपज कम किसानों के पास है. ज्यादतर किसानों के पास छोटी लहसुन है. जिसके दाम सौ रुपए क्विंटल से ज्यादा नहीं मिल पा रहे हैं. किसान का लागत मूल्य भी इससे नहीं निकलता है.

लगभग चार साल पहले इसी मंडी में लहसुन चौदह हजार रुपए क्विंटल बिका था. इसके बाद बड़ी संख्या में किसानों ने लहसुन की उपज लेना शुरू कर दिया. चुनावी साल में अच्छे दाम मिलने की उम्मीद किसान लगाए हुए थे. लेकिन, आवक ज्यादा होने के कारण भाव नहीं मिल पा रहे हैं. मंदसौर की कृषि उपज मंडी में गुरुवार का दिन ऐतिहासिक रहा. यहां साल की सबसे अधिक आवक रही.

बुधवार की रात में ढाई घंटे तक वाहनों को प्रवेश देने के बाद भी गुरुवार को 2 हजार से ज्यादा वाहन कतार में लगे रहे. मंडी निरीक्षक समीरदास ने बताया कृषि उपज मंडी में 900 वाहन उपज एक बार में खाली करवा सकते हैं. लेकिन वाहन की मात्रा अधिक होने से बाहर खड़े वाहनों को अब दो दिन तक इंतजार करना पड़ेगा.

कांग्रेस को सत्ता में वापसी की उम्मीद मंदसौर से जगी:

मध्यप्रदेश में कांग्रेस पिछले पंद्रह साल से सत्ता से बाहर चल रही है. डेढ़ साल पहले पुलिस फायरिंग में किसानों के मारे जाने के बाद कांग्रेस में यह उम्मीद जगी है कि वह सत्ता में वापसी कर सकती है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी फायरिंग की पहली बरसी पर मंदसौर आकर किसानों के कर्ज माफ करने की घोषणा कर चुके हैं.

मंदसौर का किसान काफी समृद्ध माना जाता है. जिले में पाटीदार काफी संख्या में हैं. गुजरात के पाटीदार नेता हार्दिक पटेल भी लगातार अपने समाज के लोगों को कांग्रेस के पक्ष में एकजुट करने की कोशिश लगातार कर रहे हैं. मंदसौर में अफीम का उत्पाद भी होता है. इसके लिए पट्टे देने की नीति भारत सरकार तय करती है. इस नीति से भी चुनाव में जीत-हार तय होती है.

भारत सरकार ने अपनी नई अफीम नीति के तहत इस बार रकबा भी बढ़ाया है. नई नीति के तहत उन किसानों को ही पट्टे दिए गए हैं, जिनका उत्पादन पिछले सालों में घटिया था. वर्ष 1999 से लेकर वर्ष 2003 तक औसत से एक किलो कम देने पर कटे हुए पट्टे पुन: बहाल हुए हैं.

जिन किसानों पर एनडीपीएस एक्ट के तहत कार्रवाई हुए और वे दोषमुक्त हुए हों तो वह किसान भी पात्रता की श्रेणी में आ गए. किसानों ने 4.9 प्रति हेक्टेयर की दर से मार्फिन प्रतिशत दिया हो या औसत 52 किलो प्रति हेक्टेयर रहा हो वे भी पात्र हो गए.

मंदसौर, राज्य के मालवा-निमाड़ अंचल में आता है. इस अंचल में विधानसभा की कुल 66 सीटें हैं. इस अंचल में जो दल ज्यादा सीटें लेने में सफल हो जाता है, सत्ता उसे मिल जाती है. इस अंचल में कांग्रेस साल-दर-साल कमजोर होती चली गई है. पुलिस फायरिंग में छह किसानों के मारे जाने के बाद शिवराज सिंह चौहान की सरकार को किसान विरोधी सरकार प्रचारित करने के लिए कांग्रेस को मौका भी मिल है.

मंदसौर के चुनाव में किसान मुद्दा नहीं हैं

मंदसौर जिले में विधानसभा की कुल चार सीटें हैं. किसान वोटर हर सीट पर बड़ी संख्या में है. इसके बाद भी जिले में किसान की समस्या चुनाव का प्रमुख मुद्दा नहीं है. हर विधानसभा क्षेत्र में अलग-अलग समीकरण काम कर रहे हैं. कहीं उम्मीदवार की छवि राजनीतिक दल को लाभ पहुंचा रही है तो कहीं जातिय समीकरणों के जरिए सीटें जीतने की कोशिश कांग्रेस-भाजपा कर रहे हैं.

मंदसौर विधानसभा की सीट पर कांग्रेस ने बाहरी उम्मीदवार नरेन्द्र नाहटा को मैदान में उतारा है. नाहटा लगभग 73 साल के हैं. वे टिकट नीमच जिले की मनास सीट से मांग रहे थे. मनास उनकी परंपरागत सीट थी. कांग्रेस ने मंदसौर जिले में भेज दिया. नाहटा, पूर्व मंत्री हैं. किसी दौर में उनका दबदबा क्षेत्र में रहा है. इस कारण भाजपा उम्मीदवार यशपाल सिसोदिया उन्हें कमजोर नहीं मान रहे हैं. सिसोदिया का यह तीसरा चुनाव है. ग्रामीण क्षेत्र में उनकी पकड़ कमजोर रहीं है. मंदसौर शहर ही उनका साथ देता है.

कांग्रेस ने मुस्लिम-जैन समीकरण बैठाने की कोशिश की है. कांग्रेस उम्मीदवार जैन हैं. मंदसौर की पिपलिया मंडी में पुलिस फायरिंग हुई थी. पुलिस फायरिंग में मारे गए किसान मल्हारगढ़ विधानसभा क्षेत्र के भी थे. इस क्षेत्र से भाजपा ने पूर्व मंत्री जगदीश देवड़ा को फिर से टिकट दिया है. देवड़ा को पाटीदारों की नाराजगी का सामना करना पड़ रहा है. मल्हारगढ़ से कांग्रेस उम्मीदवार परशुराम सिसोदिया हैं. जनपद उपाध्यक्ष हैं.