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नोटंबदी से मिले मौके को गंवाना नहीं चाहतीं ममता बनर्जी

पीएम मोदी के वोटबैंक में सेंध लगाने की बाट जोह रहे विपक्ष के लिए सुनहरा मौका है.

Sreemoy Talukdar

इस साल मई में मिली प्रचंड जीत के बावजूद ममता बनर्जी ने खुद को राष्ट्रीय फलक पर पेश नहीं किया. पश्चिम बंगाल में उन्होंने न केवल बीजेपी को बल्कि कांग्रेस-लेफ्ट के गठबंधन को भी धूल चटाई. इसके बाद पत्रकारों ने उनके अरमानों को कुरेदन की बहुत कोशिश की थी.

उन्हें बीजेपी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट कर प्रधानमंत्री बनने तक के सपने दिखाए गए. लेकिन दीदी ने खुद को पश्चिम बंगाल तक सीमित रखा.


राजनीति में सही मौके पर सही चाल चलना ही आपको सफल बनाता है. जनता के लिए मुसीबत राजनेता के लिए मौका बन सकता है.

प्रधानमंत्री की नोटबंदी ने आम जनता के लिए आर्थिक परेशानी खड़ी कर दी है. पूरे देश को लाइन में लगा दिया. यह नरेंद्र मोदी के वोटबैंक में सेंध लगाने की बाट जोह रहे विपक्ष के लिए सुनहरा मौका बन गया है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी उन चंद राजनेताओं में से एक हैं जिन्हें जनता की नब्ज मालूम है. उन्होंने हमेशा खुद को जनता से जोड़े रखने का प्रयास किया है. सादी जीवनशैली से वो आम लोगों के साथ दिखने की कोशिश करती हैं. इसी छवि के बल पर ममता ने बंगाल में तीन दशक से चली आ रही लेफ्ट की सत्ता खत्म की.

नोटबंदी के असर ने ममता का चुनाव बाद रुख बदल दिया है. अब दीदी राष्ट्रीय स्तर पर विपक्ष की अगुवाई करने की कोशिश करती नजर आ रही हैं. ऐसा दो कारणों से हो सकता है.

ममता ने क्यों बदली रणनीति?

पहला राष्ट्रीय स्तर पर कांग्रेस की जगह बीजेपी का मुख्य पार्टी के रुप में उभरना. कांग्रेस कुछ समय पहले तक विपक्ष को एक मंच पर लाने और महागठबंधन जैसा मंच तैयार करने में सक्षम थी. लेकिन हाल में राहुल गांधी के नेतृत्व में देश धीरे-धीरे कांग्रेस मुक्त हो रहा है. इससे शून्य पड़ते विपक्ष में ममता को मौका नजर आया है.

दूसरा, नोटबंदी का असर हर घर, हर व्यक्ति पर पड़ा है. इसमें कोई शक नहीं कि प्रधानमंत्री ने देश के हर मतदाता को प्रभावित किया है. फैसले का असर कहीं नकारात्मक तो कहीं सकारात्मक हो सकता है. कुछ लोग खुश होंगे तो कुछ हालात को ठीक से संभाल न पाने की वजह से मोदी से नाराज ही होंगे.

विपक्ष के नेताओं के पास यही नाराजगी भुनाने का मौका है. ममता इसे भलीभांति समझती हैं.

यही नहीं ममता के गढ़ में भी संघ और भाजपा अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने लगी है. बंगाल में बीजेपी का बढ़ना ममता को नए गठबंधन को गढ़ने के लिए मजबूर कर रहा है. इसीलिए उन्होंने लेफ्ट को साथ आकर काम करने का न्यौता दिया है.

टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक ममता बनर्जी ने बिना वक्त गंवाए विपक्ष के तमाम नेताओं को फोन किया.

इनमें सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी, आम आदमी पार्टी सुप्रीमो अरविंद केजरीवाल और आरजेडी के लालू प्रसाद यादव शामिल हैं. ममता इनसे नोटबंदी के खिलाफ इन्हें लामबंद करने की कोशिश की है.

लेफ्ट छोड़ सब ने ममता को माना दीदी

उम्मीद के मुताबिक कांग्रेस ने अपनी बाहें फैला कर ममता के प्रस्ताव का स्वागत किया है. ममता बुधवार को संसद में नोटबंदी पर एक बैठक की अध्यक्षता करेंगी. इसमें राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद भी शामिल  होंगे. इसके बाद राहुल गांधी के साथ राष्ट्रपति से मिलने जा रहे विपक्षी प्रतिनिधिमण्डल का भी नेतृत्व ममता बनर्जी करेंगी.

नोटबंदी पर लामबंद हो रहे विपक्ष में कांग्रेस की भूमिका सीमित रहने वाली है. हाल के दिनों में मोदी के खिलाफ सबसे मुखर रहने वाले अरविंद केजरीवाल भी ममता के नेतृत्व में आगे बढ़ने के संकेत दे चुके हैं.

क्षत्रपों के मिलने से बनने वाला तीसरा मोर्चा कभी मजबूती नहीं पा सका है. इसमें हर पार्टी और उसका नेता अलग होता है. इनकी सोच और रणनीति भी अलग होती है.

वाम दलों और ममता के बीच त्रिपुरा में भीषण संघर्ष जारी है. इस बीच लेफ्ट ने उनके साथ दिखने से साफ इंकार कर दिया है. क्योंकि ममता का बढ़ना लेफ्ट के लिए नुकसानदेह है

ममता को इससे ज्यादा फर्क पड़ने वाला नहीं है. संसद के शीतकालीन सत्र में तृणमूल कांग्रेस नये आक्रामक रुप में नजर आएगी.