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ममता ने सेना को राजनीति में घसीटा

ममता बैनर्जी ने बेवजह सेना की सामान्य गतिविधि को राजनीति रंग देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है.

सुरेश बाफना

नोटबैन के खिलाफ लखनऊ व पटना में तृणमूल कांग्रेस द्वारा आयोजित रैलियों की विफलता के बाद अब ममता बैनर्जी ने बेवजह सेना की सामान्य गतिविधि को राजनीति रंग देकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की है. ममता ने भारतीय राजनीतिक दलों के बीच आजादी के बाद से चल रही इस सहमति को तोड़ा है कि सेना को राजनीति से पूरी तरह अलग रखा जाए.

भारतीय सेना की इस बात के लिए तारीफ करना चाहिए कि उसने कभी ऐसा कोई कदम नहीं उठाया है, जिससे यह लगे कि वह राजनीति में कोई दखल दे रही है. ममता का यह आरोप पूरी तरह हास्यास्पद है कि मोदी सरकार सेना के माध्यम से पश्चिम बंगाल की सरकार को अपदस्थ करने की कोशिश कर रही है.


दुर्भाग्य की बात यह है कि देश पर 55 साल से अधिक शासन करने वाली सबसे बड़ी कांग्रेस पार्टी ने आरोप से जुड़े तथ्यों को जानने की बजाय संसद में इस मुद्‍दे को उठाकर भारतीय सेना के साथ न्याय नहीं किया है.

कांग्रेस पार्टी का रवैया पूरी तरह राजनीति से प्रेरित रहा है. जब देश की रक्षा में सीमा पर तैनात जवान अपनी जान की बाजी लगाकर रहे हैं, तब सेना पर तथ्यहीन आरोप लगाकर राजनीतिक विवाद में घसीटना एक दुखद घटना है.

तृणमूल कांग्रेस की नेता व पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी चाहती तो वे सेना के वरिष्ठ अधिकारियों से तुरंत सम्पर्क करके सेना की सामान्य गति‍विधि के बारे में स्पष्टीकरण मांग सकती थीं. वे इस संबंध रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर से भी बात कर सकती थीं. ऐसा करने के बजाय उन्होंने मीडिया के माध्यम से विक्टिमहूड का कार्ड खेलने की कोशिश की.

पश्चिम बंगाल सरकार के सचिवालय में सेना के खिलाफ रात बिताना और वहां तीन बार पत्रकार-वार्ता को संबोधित करने का अर्थ स्पष्ट है कि उनकी रुचि तथ्यों को जानने की बजाय मीडिया-इवेंट बनाने में अधिक थी. ममता बैनर्जी की पापुलिस्ट राजनीति इस खतरनाक स्तर पर पहुंच गई है कि उनका सही व गलत का बोध खत्म हो रहा है.

सरकार पर गुमराह करने का आरोप

फोटो: पीटीआई

आज राज्यसभा में रक्षा राज्यमंत्री सुभाष रामराव भामरे द्वारा तथ्यात्मक  जानकारी दिए जाने के बाद भी तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने यह आरोप लगा दिया कि सरकार सदन को गुमराह कर रही है. सरकार द्वारा दी गई जानकारी से स्पष्ट था कि सेना ने अपनी वार्षिक गतिविधि को संचालित करने के संदर्भ में पुलिस को लिखित में सूचित किया था. इस संबंध में हो सकता है कि सेना की तरफ से राज्य सरकार के साथ संवाद में कहीं कोई छोटी चूक हो गई हो, लेकिन इस संभावित छोटी चूक को इतना बड़ा मुद्दा बना देना उचित नहीं था.

डा. मनमोहन सिंह सरकार के कार्यकाल के दौरान अग्रेजी के एक प्रमुख अखबार ने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वी.के.सिंह पर आरोप लगाया था कि उनके आदेश पर मथुरा व अन्य दो स्थानों से सेना दिल्ली की तरफ कूच कर गई थी, जिससे गृह मंत्रालय के अधिकारियों में हड़कम्प मच गया था. बाद में स्पष्ट हुआ कि अखबार ने सेना की सामान्य गतिविधि को गलत ढंग से समझा.

ममता बैनर्जी को पूरा अधिकार है कि वे देश के अगले प्रधानमंत्री के रूप में अपना दावा पेश करें और मोदी सरकार के विमुद्रीकरण का विरोध करें. सेना को अनावश्यक राजनीतिक विवाद में घसीटकर ममता अपने पैरों पर ही कुल्हाड़ी मार रही हैं. ममता को चाहिए कि वह मुख्‍यमंत्री के तौर पर पश्चिम बंगाल की अर्थव्यवस्था व विकास से जुड़े सवालों की भी चिन्ता करें. यदि वे मुख्‍यमंत्री के तौर पर सफल होंगी तो उन्हें देश की जनता प्रधानमंत्री पद पर भी पहुंचा सकती है.