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भले ही सुप्रीम कोर्ट के फैसले से झटका ममता बनर्जी को लगा हो, लेकिन जीती BJP भी नहीं

ममता के तेवर हो सकता है कि राज्य में उनके लिए सियासी तौर पर मददगार हों, शायद वो उनके पीएम बनने की महत्वाकांक्षा में भी सहायक हों, लेकिन, इस सियासी तमाशे से बीजेपी भी नुकसान में नहीं है

Sreemoy Talukdar

अदालत के समनों, अर्जियों, पुनर्विचार याचिकाओं और फैसलों से इतर एक बड़ा सियासी खेल भी चल रहा है. कई बार इस राजनीतिक दंगल में कई ऐसी बातें होती हैं, जो हकीकत के हंगामे में छुप जाती हैं. अक्सर ये छुपे हुए निहितार्थ ऊपरी तौर पर विरोधाभासी नजर आते हैं. मगर, ये विरोधाभास, ये हंगामा अगर सियासी हित को साधे, तो इस में गलत ही क्या है. मंगलवार के घटनाक्रम को नए सिरे से देखें, तो ये  ऊपर कही गई बातों की अच्छी मिसाल हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार को निर्देश दिया है कि वो पूछताछ के लिए सीबीआई के बुलावे पर पेश हों. ये वही आईपीएस राजीव कुमार हैं, जो सीबीआई के पिछले चार नोटिस की अनदेखी कर चुके हैं. एक बार तो वो 'लापता' भी हो गए थे. इनकी वजह से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को चुनाव आयोग से माफी मांगनी पड़ी थी.


केंद्रीय जांच एजेंसी सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में राजीव कुमार के खिलाफ अर्जी दी थी कि वह जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं. इससे पहले सीबीआई के अधिकारी जब रविवार को कोलकाता में राजीव कुमार के घर उनसे पूछताछ के लिए पहुंचे थे, तो उन्हें कोलकाता पुलिस ने कुछ देर के लिए गिरफ्तार कर लिया था.

सीबीआई अधिकारियों को जबरन घसीटते हुए कोलकाता पुलिस की जीपों में भर कर ले जाने की तस्वीरें भी सामने आई हैं. राज्य सरकार ने इस बात की पुरजोर कोशिश की थी कि वो सीबीआई के काम में बाधा डाले. और इस तरह से राज्य प्रशासन असल में हजारों करोड़ के चिट-फंड घोटाले की जांच को अटकाना चाह रहा था.

चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस दीपक गुप्ता और जस्टिस संजीव खन्ना की सदस्यता वाली सुप्रीम कोर्ट की 3 सदस्यीय बेंच ने कोलकाता के पुलिस कमिश्नर को निर्देश दिया कि वो शारदा घोटाले की जांच कर रही सीबीआई को जांच में सहयोग करें. साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई की अर्जी पर पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव, पुलिस महानिदेशक और राजीव कुमार को अदालत की अवमानना का नोटिस भी भेजा है.

साथ ही सर्वोच्च अदालत ने सीबीआई के राजीव कुमार से किसी तरह की 'जबरदस्ती' करने पर रोक लगा दी है. यानी अदालत ने सीबीआई को राजीव कुमार को गिरफ्तार करने से फिलहाल मना कर दिया है. और ये कहा है कि राजीव कुमार से सीबीआई मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग स्थित अपने दफ्तर में पूछताछ करे, जो कि एक 'निष्पक्ष जगह' है.

सीबीआई की टीम को बंगाल में मिल रही थीं धमकियां

सुप्रीम कोर्ट के आदेश की तीसरी बात सबसे अहम है. सीबीआई ने इस बात की शिकायत की थी कि चिट-फंड घोटाले की जांच के दौरान, पश्चिम बंगाल में उसकी टीम को लगातार धमकियां मिल रही थीं और डराने की कोशिश की जा रही थी. गृह मंत्रालय को सीबीआई से एक रिपोर्ट मिली है. इस में जांच एजेंसी ने विस्तार से बताया है कि कैसे उसके अधिकारियों को परेशान किया जा रहा है. हजारों करोड़ के चिट-फंड घोटाले की जांच के काम में बाधाएं खड़ी की जा रही हैं. जबकि ये जांच सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर हो रही है.

यही वजह थी कि सीबीआई, कोलकाता के पुलिस कमिश्नर राजीव कुमार से दिल्ली में पूछताछ करना चाहती थी. जबकि पश्चिम बंगाल सरकार चाहती थी कि राजीव कुमार से पूछताछ उसके अपने इलाके यानी पश्चिम बंगाल में ही हो. ऐसे में सुप्रीम कोर्ट ने राजीव कुमार से पूछताछ के लिए मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग को चुना. और जैसा कि मीडिया में आया है, चीफ जस्टिस रंजन गोगोई ने कहा कि, 'पूछताछ के लिए शिलॉन्ग जाइए. वो ठंडी जगह है. ऐसे में दोनों पक्षों की अक्ल ठंडी रहेगी.'

ऐसे में अदालत के आदेश के बारे में सिर्फ यही कहा जा सकता है कि ये पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के लिए बड़ा झटका है. आखिर ममता बनर्जी अपने पसंदीदा अधिकारी को बचाने के लिए रविवार देर रात उनके घर तक जा पहुंची थीं. इसके बाद वो रात से ही 'अनिश्चितकालीन' धरने पर बैठ गईं. ताकि, वो सीबीआई के राजीव कुमार से पूछताछ के कदम का 'विरोध' कर सकें.

फिर भी अदालत के आदेश को ममता ने अपनी 'नैतिक जीत' और 'पश्चिम बंगाल की जनता की जीत' बताया है. साथ ही ममता ने कहा कि वो इसके लिए सुप्रीम कोर्ट की शुक्रगुजार हैं. ममता बनर्जी ने ये भी दावा किया कि उनका पक्ष तो 'शुरू से ही बहुत मजबूत' था. सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ममता बनर्जी ने अपने धरनास्थल से ही प्रतिक्रिया दी थी. उनके बयानों पर टीएमसी के मंत्रियों, सदस्यों और कार्यकर्ताओं ने जमकर तालियां पीटी थीं.

ममता बनर्जी ने अपने बयान के जरिए जिस तरह से खुद को मिले सियासी झटके को घुमाया, उससे तो गुगली के उस्ताद शेन वॉर्न और अनिल कुंबले भी शर्मा जाएं. लेकिन, जब तक टीएमसी प्रमुख के तौर पर अपनी पार्टी और अपने काडर को, मुख्यमंत्री के तौर पर राज्य की जनता को ये समझा पाने में कामयाब होती हैं कि ये उनकी जीत है, तब तक उनका सियासी हित तो सध ही रहा है.

हो सकता है कि बहुत से लोग इसे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का 'भरम' कहें, लेकिन ऐसा कहने वालों को ध्यान रखना होगा कि वो जमीनी राजनीति के खेल को गलत समझ रहे हैं. हो सकता है कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद ममता बनर्जी को अपने सियासी टारगेट में बदलाव करना पड़ा हो. इस बात का इशारा उन्होंने एक के बाद एक अपने ट्वीट के जरिए भी दिया. लेकिन, अदालत से मिले इस झटके से ममता बनर्जी को तगड़ा सियासी झटका भी लगा है, ये कहना गलत होगा.

क्या इस सियासी ड्रामे से ममता बन जाएंगी राष्ट्रीय स्तर की नेता?

इस पूरे तमाशे को ममता बनर्जी ने बड़ी चतुराई से पेश किया. इस बात की पूरी उम्मीद है कि इससे उन्हें बहुत सियासी फायदा हो सकता है. हालांकि, इस में एक झोल भी है. ममता बनर्जी ने ये गुणा-भाग लगाया होगा कि खुद को पीड़ित के तौर पर पेश कर के और सड़क पर धरने की राजनीति कर के वो पश्चिम बंगाल में खुद को कद्दावर नेता बनाए रखेंगी.

वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ गंभीर आरोप लगा कर, लोकतंत्र बचाओ, लोकतंत्र की हत्या, भारत के केंद्रीय ढांचे को नुकसान और सुपर इमरजेंसी जैसे आरोप लगाकर वो शायद ये उम्मीद कर रही हैं कि इन सियासी सुर्खियों से वो राष्ट्रीय नेता के तौर पर उभरेंगी. और तब वो प्रधानमंत्री की गद्दी पर बाकी विपक्षी नेताओं की तरह अपना दावा भी ठोक सकेंगी.

लेकिन, एक संवैधानिक संकट खड़ा कर के सियासी फायदे की फसल काटने की कोशिश में ममता बनर्जी ने अनजाने में बीजेपी को भी पश्चिम बंगाल में एक फायदा पहुंचाया है. बीजेपी के पास पश्चिम बंगाल में मजबूत संगठन की कमी है. स्थानीय स्तर पर पार्टी के पास कोई बड़ा चेहरा या नेता नहीं है, जो जमीनी स्तर पर बहुत मजबूत और लोकप्रिय हो.

इन कमियों की वजह से बीजेपी अब तक पश्चिम बंगाल में मुख्य विपक्षी दल की जगह को भर नहीं पाई है. कुछ इलाकों में बीजेपी मजबूत हो रही है. लेकिन, अब तक बीजेपी ने सीपीएम की कीमत पर ही अपना सियासी दायरा बढ़ाया है. वहीं, कांग्रेस के पास मामूली ही सही, लेकिन छोटा सा प्रतिबद्ध वोट बैंक जरूर है.

केंद्रीय नेतृत्व की पुरजोर कोशिशों के बावजूद बीजेपी अब तक पश्चिम बंगाल में टीएमसी के मजबूत गढ़ में सेंध नहीं लगा पाई है. जबकि पार्टी ने राज्य की 42 में से 23 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. बंगाल के एक तबके में ममता बनर्जी के तुगलकी रवैए के प्रति नाराजगी है. लेकिन, बीजेपी इस नाराजगी को अपने हक में नहीं भुना सकी है, हालांकि बीजेपी के पास राज्य में अभी कुछ गंवाने के लिए है नहीं.

लेकिन, सड़कछाप ड्रामा और सियासी नौटंकी कर के ममता ने पश्चिम बंगाल के वोटर में ध्रुवीकरण पैदा कर दिया है. इस में बीजेपी के लिए अच्छा मौका निकल आया है कि वो खुद को राज्य में मुख्य विपक्षी दल के तौर पर पेश कर सके. इससे सीपीएम तो जमीनी स्तर पर विलुप्त ही हो जाएगी.

बंगाल में बीजेपी के दफ्तरों में टीएमसी कार्यकर्ताओं की तोड़-फोड़ की तस्वीरों, मोदी को हिटलर के तौर पर दिखाने वाले पोस्टर, टीएमसी कार्यकर्ताओं के नारे, 'मोदी भारत छोड़ो' और प्रधानमंत्री के खिलाफ ममता बनर्जी के तीखे बयानों से बीजेपी उन लोगों का समर्थन हासिल कर सकती है, जो ममता बनर्जी से नाखुश हैं.

मोदी अपने हक में बना सकेंगे 'चौकीदार बनाम भ्रष्टाचार' का माहौल

'मोदी और शाह' पर सीबीआई के दुरुपयोग का आरोप लगाकर, ममता बनर्जी जिस तरह से रात को एक पुलिस अधिकारी के लिए जाकर धरने पर बैठ गईं. और, बाद में जिस तरह वो पुलिस अधिकारी भी जाकर धरने में शामिल हो गया. उससे तो यही संदेश गया कि ममता बनर्जी शारदा और रोज वैली चिटफंड घोटाले के आरोपियों को बचा रही हैं.

इन घोटालों में पश्चिम बंगाल के लाखों लोगों की खून-पसीने की कमाई डूबी थी. ऐसे में इन लोगों को अपने पाले में करने का बीजेपी के पास सुनहरा मौका है. इससे पश्चिम बंगाल में बड़े पैमाने पर सियासी ध्रुवीकरण हो सकता है. बेहद कमजोर स्थिति से शुरुआत करने वाली बीजेपी के पास तो सिर्फ कमाने का मौका है. उसके पास गंवाने के लिए कुछ भी नहीं है.

इस में कोई दो राय नहीं कि इस राजनीतिक ड्रामे की वजह से ममता बनर्जी राष्ट्रीय राजनीति में सुर्खियां बटोर रही हैं. उन्होंने जिस तरह से बीजेपी के खिलाफ अपना विरोध तेज किया है, उससे वो विपक्ष के अस्पष्ट और एक दूसरे से होड़ में जुटे नेताओं के महागठबंधन की मजबूत नेता के तौर पर उभरी हैं. यहां ध्यान देने वाली बात है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी इस धरने में ममता बनर्जी के साथ मंच पर एक साथ नहीं नजर आए.

उन्होंने ममता के समर्थन में महज एक ट्वीट करके अपना काम चला लिया. जबकि कई विपक्षी नेताओं ने ममता बनर्जी का समर्थन किया. लेकिन, जिस तरह से ममता बनर्जी ने सीबीआई को चिट-फंड घोटाले के आरोपियों पर शिकंजा कसने से रोका, उससे ममता और उनके साथी विपक्षी नेताओं के लिए अपना बचाव कर पाना मुश्किल होगा.

इसका सीधा फायदा मोदी को होगा. वो 'चौकीदार बनाम भ्रष्टाचार' का माहौल अपने हक में बना सकेंगे. इससे प्रधानमंत्री मोदी राष्ट्रपति स्टाइल चुनाव अभियान चलाने में कामयाब होंगे. उनकी पार्टी बीजेपी भी इस बात का प्रचार कर सकेगी कि केवल मोदी ही भ्रष्टाचार मुक्त प्रशासन दे सकते हैं, जबकि बाकी का विपक्ष तो असल में 'ठगबंधन' या जैसा कि मंगलवार को अरुण जेटली ने अपने ब्लॉग में लिखा कि ये 'द क्लेप्टोक्रैट क्लब' है.

तो, ममता के तेवर हो सकता है कि राज्य में उनके लिए सियासी तौर पर मददगार हों. शायद वो उनके पीएम बनने की महत्वाकांक्षा में भी सहायक हों. लेकिन, इस सियासी तमाशे से बीजेपी भी नुकसान में नहीं है. हम ये कह सकते हैं कि रविवार से मंगलवार तक चला ये सियासी ड्रामा बीजेपी और ममता बनर्जी दोनों के लिए फायदेमंद रहा है.