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केजरीवाल सरकार के ‘स्पेशल 20’ हुए अयोग्य, चुनाव आयोग ने चला दी 'झाड़ू'

20 विधायकों के अयोग्य होने के बावजूद आप के पास 46 विधायक होंगे जो कि बहुमत के आंकड़े 36 से दस ज्यादा होंगे लेकिन अंदरूनी कलह की वजह से कोई बागी ‘दस का दम’ न दिखा जाए

Kinshuk Praval

आम आदमी पार्टी के भीतर इस वक्त रिक्टर स्केल पर 20 की तीव्रता वाला भूचाल आया हुआ है. वजह ये है कि चुनाव आयोग से आप को नए साल में तगड़ा झटका मिला है. लाभ के पद के मामले में आप के स्पेशल विधायकों की टीम के 20 लोगों को चुनाव आयोग ने अयोग्य माना है. चुनाव आयोग ने विधायकों की सदस्यता खत्म करने की सिफारिश राष्ट्रपति के पास भेज दी है. राष्ट्रपति के एक दस्तखत भर से ही दिल्ली विधानसभा की तस्वीर बदल जाएगी. अब आम आदमी पार्टी ने चुनाव आयोग के फैसले के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.

आप के कुल 21 विधायक संसदीय सचिव पद पर माने गए हैं जो कि लाभ का पद है. संविधान के अनुसार दिल्ली विधानसभा में केवल एक ही विधायक संसदीय सचिव रह सकता है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव नियुक्त किया था. चुनाव आयोग ने 21 विधायकों को नोटिस जारी किया था. विधायक जरनैल सिंह ने पंजाब से चुनाव लड़ने के लिए दिल्ली विधानसभा से इस्तीफा दे दिया था. ऐसे में बीस विधायक अयोग्य माने गए हैं.


20 अयोग्य विधायकों के साइड इफैक्ट

इस वक्त दिल्ली विधानसभा में आम आदमी पार्टी के कुल 66 विधायक हैं. अगर 20 विधायकों के मामले में आम आदमी पार्टी को राहत नहीं मिलती तो अयोग्य विधायकों की वजह से बीस सीटों पर उपचुनाव होंगे. लेकिन उपचुनाव से पहले जो बात पार्टी के भीतर हाइपर टेंशन का काम कर सकती है वो ये कि पार्टी की स्थिति 66 से घटकर सीधे 46 पर आ गिरेगी. हालांकि ये संख्या बल भी बहुमत के लिए जरुरी आंकड़े 36 से 10 ज्यादा है लेकिन पार्टी के भीतर चल रही अंदरूनी कलह की वजह से ना मालूम कब कौन ‘दस का दम’ दिखा जाए. जरा सी भी दल-बदल या पार्टी-टूट की पटकथा दिल्ली सरकार का सीन ‘दी एंड’ कर सकती है.

कुमार और कपिल करेंगे क्रांति?

पार्टी से निलंबित कपिल मिश्रा और बागी क्रांतिकारी कुमार विश्वास के लिए ये मौका हिसाब बराबर करने का हो सकता है. कुमार विश्वास का राज्यसभा टिकट काट कर पार्टी आलाकमान ने कुमार के प्रति अपने ‘विश्वास’ को जाहिर कर दिया था. कुमार भी इस वक्त ‘बागी मोड’ में हैं. पार्टी के वरिष्ठ नेता गोपाल राय ने कुमार विश्वास पर एमसीडी चुनाव के वक्त पार्टी तोड़ने और सरकार गिराने का आरोप लगाया था. ये तक कहा था कि इसी वजह से उनका टिकट काटा गया. लेकिन बड़ा सवाल ये था कि इतनी बड़ी बगावत की साजिश के बावजूद केजरीवाल एंड टीम ने कुमार को पार्टी से बाहर क्यों नहीं किया.

ऐसा लगता है कि कुमार का पार्टी के भीतर कुछ विधायकों में इतना असर है जिसकी वजह से ये बड़ा फैसला नहीं लिया जा सका. वर्ना पार्टी ने योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण  के मामले में कौन सी नरमी बरती थी. ऐसे में कहीं न कहीं पार्टी कुमार विश्वास की पार्टी के भीतर धमक को महसूस करती है तभी पार्टी की टूट के खतरे के अंदेशा के चलते केवल कुमार विश्वास को राज्यसभा टिकट न देकर सजा दी. लेकिन युद्ध का इतिहास देखा जाए तो बागी का सिर कलम न करना ही बाद में हार की वजह भी बनता रहा है. ऐसे में कुमार विश्वास अब आप की घटती संख्या पर अगर कुछ विधायकों को अपने काव्य-रस की घुट्टी पिला दें तो आम आदमी पार्टी के लिए ‘दिल्ली दूर’ हो सकती है.

कुमार विश्वास ही अकेले इस रण में नहीं है. दिल्ली सरकार के पूर्व मंत्री कपिल मिश्रा भी बड़े बेआबरू हो कर दिल्ली सरकार के कूचे से बाहर निकले थे. कपिल मिश्रा ऐसा कोई दिन नहीं छोड़ते जब वो ट्वीटर के तरकश से अरविंद केजरीवाल पर आरोपों के तीर नहीं छोड़ते हों. कपिल मिश्रा भी नाजुक मोड़ पर गुजर रही केजरीवाल एंड टीम पर भीतरघात कराने की जुगत में जुटेंगे क्योंकि अभी नहीं तो फिर शायद कभी नहीं उन्हें ऐसा मौका मिलेगा.

आप ने दिया सबको 'मौका'

लाभ के पद पर घिरी आम आदमी पार्टी एक बार फिर पार्टी के भीतर के तूफान और बाहरी हमले से जूझ रही है. बीजेपी और कांग्रेस ने भी जोरदार हमला बोला है. बीजेपी ने केजरीवाल सरकार को बर्खास्त करने की मांग की तो कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि केजरीवाल को कुर्सी पर बने रहने का कोई अधिकार नहीं है. कांग्रेस जिस करप्शन के आरोपों की वजह से सत्ता से बेदखल हुई थी अब उसी करप्शन को कांग्रेस ने आप के खिलाफ हथियार बनाया है.

जाहिर तौर पर करप्शन के खिलाफ लोकपाल की लड़ाई लड़कर सत्ता तक पहुंची आम आदमी पार्टी की विश्वसनीयता पर चुनाव आयोग की सिफारिश बड़ा आघात है. चुनाव आयोग के मुताबिक इन विधायकों के पास 13 मार्च 2015 से 8 सितंबर 2016 के बीच संसदीय सचिव का पद था जबकि कानून के मुताबिक  दिल्ली में कोई भी विधायक रहते हुए लाभ का पद नहीं ले सकता.

राष्ट्रीय मुक्ति मोर्चा के प्रेसिडेंट रवींद्र कुमार ने दिल्ली हाईकोर्ट में इन नियुक्तियों के खिलाफ याचिका दाखिल करते हुए कहा था कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के पास ऐसी नियुक्तियों का अधिकार नहीं है. जबकि वकील प्रशांत पटेल ने 19 जून 2015 को याचिका दाखिल करते हुए 21 विधायकों के लाभ के पद पर रहने की वजह से सदस्यता रद्द करने की मांग की थी. वहीं दिल्ली हाईकोर्ट ने भी सितंबर 2016 के फैसले में संसदीय सचिव पद हुई नियुक्तियों को रद्द कर दिया था. ऐसे में बड़ा सवाल कि आप का क्या होगा?