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महाराष्ट्र किसान संकट: लोकलुभावन राजनीति ने डुबोई देश के औद्योगिक राज्य की लुटिया

किसानों के नाम पर लोकलुभावन मगर गलत योजनाओं ने राज्य की अर्थव्यवस्था को हाशिए पर पहुंचाया है

Dinesh Unnikrishnan

अगर आप महाराष्ट्र का 2017-18 का आर्थिक सर्वे ध्यान से देखें तो आप पाएंगे कि दो वजहों से राज्य की अर्थव्यवस्था पर बुरा प्रभाव पड़ा है और वहां की वित्तीय हालत चरमरा गई है. पहली वजह है कृषि क्षेत्र के विकास में कमी. दूसरी देवेंद्र फडणवीस सरकार के पिछले साल जून में किसानों के कर्ज माफी के वादे को पूरा करने के लिए लिए गए अतिरिक्त कर्ज ने वहां कि वित्तीय हालत खास्ता कर दी है. महाराष्ट्र का किसान संकट एक सटीक उदाहरण है कि किस तरह से राज्य की आर्थिक स्थिति, बिना सोची समझी योजनाओं, राजनीतिक लोकप्रियता की चाहत में कर्ज माफी और राज्य में बढ़ते कृषक संकट को हल करने के लिए गलत सलाह के चयन से, बिगड़ती चली जाती है.

महाराष्ट्र में फडणवीस सरकार ने वहां के कृषि संकट से निपटने के लिए जो किया उससे हर उस राज्य को बचना चाहिए जो कि अपने राज्य की वित्तीय सेहत को बिगड़ने नहीं देना चाहते. इससे ये भी साबित होता है कि किस तरह से किसानों की कर्ज माफी का भार किसी बड़े औद्योगिक राज्य तक की आर्थिक स्थिति खराब कर सकता है. नए वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक बढ़ता राजकोषीय व्यय और आर्थिक विकास में तीखी गिरावट महाराष्ट्र कि वित्तीय स्थिति कि विशेषता बन गई है. ये गड़बड़ी दूसरे राज्यों यहां तक केंद्र सरकार के लिए भी एक सबक की तरह है.


क्या कहते हैं आंकड़े

आइए देखते हैं कि महाराष्ट्र की वित्तीय स्थिति की हालत इस समय कैसी है. नवीनतम आर्थिक सर्वे ( 2017-18 ) के मुताबिक विकास दर 2017-18 में गिरकर 7.3 फीसदी हो गई है. ये महाराष्ट्र के फडणवीस सरकार के तीन सालों के शासन में सबसे कम विकास दर है. महाराष्ट्र में पिछले वित्तीय वर्ष में विकास दर 10 फीसदी थी और 2015-16 में भी 7.6 फीसदी थी. इस बार राजकोषीय व्यय उस समय बहुत तेजी से बढ़ गया जब किसानों की कर्ज माफी के लिए सरकार को अलग से 20 हजार करोड़ रुपए की व्यवस्था करनी पड़ी. इससे इस साल के शुरु में अनुमानित राजस्व घाटा 4,511 करोड़ रुपया और राजकोषीय घाटा 38,789 करोड़ रुपए से कहीं ज्यादा बढ़ गया.

सबसे बड़ा राज्य को झटका लगा है कृषि क्षेत्र से, जो राज्य की आबादी के पचास फीसदी से ज्यादा लोगों को रोजगार देती है. यहां पर सर्वे के मुताबिक अनुमानित तौर पर 2017-18 में इस क्षेत्र का विकास घट कर 8.3 फीसदी हो गया है. पिछले वित्तीय वर्ष में राज्य की विकास दर 10 फीसदी थी जिसमें सबसे बड़ा योगदान कृषि क्षेत्र और उससे जुड़ी गतिविधियों का ही था जिनमें 22.5 प्रतिशत का उछाल दर्ज किया गया था. हालांकि इसके पीछे अच्छे मानसून का भी योगदान था. कम वर्षा को भी कृषि क्षेत्र के विकास में कमी का कारण माना जा सकता है लेकिन इसके इतर भी आर्थिक सर्वेक्षण में कुछ इशारा किया गया है. कृषि और उससे जुड़ी गतिविधियों का शेयर राज्य की शुद्ध आय में लगातार घटता जा रहा है.

2001-02 में जहां शुद्ध आय में इसकी भागीदारी 15.3 प्रतिशत थी वो 2016-17 आते आते घट कर 12.2 फीसदी रह गई. खास बात ये है कि ये आंकड़े तब हैं जबकि कृषि क्षेत्र ने अब भी राज्य की आधी आबादी से ज्यादा लोगों को रोजगार दिया हुआ है. इसी तरह का ट्रेंड देश की अर्थव्यवस्था का भी रहा है. जीडीपी में आजादी के समय कृषि क्षेत्र का योगदान करीब 50 फीसदी का था जो अब घटते घटते 13-फीसदी तक रह गया है. राज्य में किसानों के हो रहे लगातार आंदोलन को देखते हुए फडणवीस सरकार ने इसे सुलझाने के लिए कर्ज माफी का आसान रास्ता चुना. सरकार ने तात्कालिक फैसला करते हुए किसानों को कर्ज माफ करने का फैसला तो कर लिया लेकिन कृषि क्षेत्र की समस्या का स्थायी समाधान खास करके के सिंचाई के क्षेत्र में और बाजार की कार्यप्रणाली को सुधारने के लिए उसने कोई दीर्घकालिक और स्थायी उपायों पर ध्यान नहीं दिया.

लोकलुभावन अ-व्यवस्था

इन दीर्घकालिक और स्थायी उपायों पर ध्यान देने के बजाए फडणवीस सरकार ने लोकलुभावन घोषणा के तहत राज्य में किसानों के 34 हजार करोड़ रुपए के कर्ज को माफ कर दिया. इस योजना का कार्यान्वयन अपने आप में ही अव्यवस्थित था. फ़र्स्टपोस्ट ने अपने कई लेखों से इस मामले पर सबका घ्यान आकर्षित किया था. लाइव मिंट की एक रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक केवल 13,381 करोड़ रुपया ही लाभ लेने वालों के खाते में पहुंचा है. इन आकड़ों के बावजूद सवाल ये उठाए जा रहे है कि लाभ लेने वाले वास्तविक किसान आखिर हैं कहां और शायद यही वजह है कि राज्य भर के किसान मुंबई में मार्च करके सरकार से पूरे कर्जे माफ करने और फसल नुकसान होने पर सहायता की मांग कर रहे हैं.

पूर्व के अनुभव भी ये बताते हैं कि कर्ज माफी का लाभ किसानों को कभी भी पूरी तरह से नहीं मिला है हां तात्कालिक राहत जरुर मिली है. इससे कर्ज वापस करने की संस्कृति पर गहरी चोट पड़ी है जिससे बैंकों के खाते में बैड लोन्स की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है. अब तक ये स्पष्ट हो चुका है कि कोई भी सरकार स्थायी रुप से किसानों के संकट को सुलझाने में भरोसा नहीं करती हैं.

आर्थिक सर्वे ने महाराष्ट्र के विकास गति धीमी पड़ने और राजकोषीय घाटा बढ़ने के दो प्रमुख कारणों की ओर इशारा किया है. पहला, फडणवीस सरकार द्वारा कर्ज माफी के वादे को पूरा करने के लिए अतिरिक्त कर्ज की व्यवस्था और दूसरा कृषि क्षेत्र के विकास में गिरावट, जो कि सरकार की गलत और अपरिपूर्ण योजनाओं का परिणाम रही. कर्ज माफी योजना ने भी फडणवीस सरकार को राजनीतिक बढ़त भले ही दी हो लेकिन इससे वास्तविक लाभ शायद ही किसी को हुआ है. ऐसे में महाराष्ट्र के किसानों के आंदोलन को सटीक उदहारण माना जा सकता है कि कैसे राजनीतिक लोकप्रियता की चाहत में अच्छी भली अर्थव्यवस्था को गलत नीतियों के चलते झोल बनाया जा सकता है.