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उपवास की सियासत से शिवराज अपनी छवि सुधारने में सफल रहे हैं?

कांग्रेसी नेताओं के वीडियो वायरल होने से शिवराज को विपक्ष के प्रचार पर लगाम लगाने में मदद मिल गई

Amitesh

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की छवि एक ऐसे नेता की रही है जो सबके लिए हर समय मौजूद रहने वाला है. किसानों से लेकर गरीबों तक सबके हित के लिए काम करने वाला और हर मोर्चे पर सबके साथ खड़ा दिखने वाला. तभी तो प्रदेश में उन्हें मामा कहकर पुकारा जाता है.

लेकिन, हालिया किसान आंदोलन और पुलिसिया फाइरिंग में किसानों की मौत के बाद उनकी छवि को बड़ा धक्का लगा था. हर ओर से आलोचना हो रही थी और निशाने पर थे सूबे के मुखिया शिवराज.


चौतरफा घिरे शिवराज ने उपवास करने का फैसला कर लिया और उपवास की पॉलिटिक्स के जरिए अपने विरोधियों को चित करने की तैयारी की जिसमें वो काफी हद तक सफल हो गए.

उपवास से धूमिल हो रही छवि को साफ करने की कोशिश

शिवराज की उपवास की सियासत ने प्रदेश के भीतर किसानों को लेकर चल रहे आंदोलन की आग को काफी हद तक ठंढा कर दिया. शिवराज सिंह चौहान ने उपवास स्थल से भी सरकारी काम-काज करना जारी रखा.

उपवास स्थल पर ही पुलिसिया फाइरिंग में मारे गए किसानों के परिवार वालों से मुलाकात कर उनके दर्द पर मरहम लगाने की कोशिश की. यहां तक कि मारे गए एक व्यक्ति के कांग्रेसी कार्यकर्ता होने की बात सामने आने के बाद विवाद भी हुआ, फिर भी तमाम बातों को दरकिनार कर शिवराज ने सबको एक-एक करोड़ रूपए की राशि मुआवजा के तौर पर देने का फैसला किया.

उधर, उपवास की जगह अलग-अलग किसान संगठनों के प्रतिनिधियों की बातचीत और उनकी समस्याओं का निदान करने के भरोसे ने किसानों के आंदोलन की आग को ठंढा कर दिया. अगर शिवराज उपवास न करते तो शायद शांति बहाली इस कदर नहीं हो पाती.

हालांकि कहा जा रहा है कि शिवराज के उपवास के बाद इस पूरे मामले में उन्होंने अपनी छवि सुधारने की पूरी कोशिश की और अपनी उस छवि को ठीक करने की कवायद की जो अबतक किसी न किसी रूप में धूमिल हो रही थी.

कांग्रेस पर आग भड़काने के आरोप से हुआ शिवराज को फायदा 

उधर, मध्यप्रदेश के किसान आंदोलन के दौरान जिस तरह से कांग्रेस के कई नेताओं के वीडियो सामने आए जिसमें उन्हें आंदोलन की आग को भड़काने की कोशिश करते दिखाया गया है.

इन तमाम घटनाओं से उन आरोपों को बल मिला जिसमें ये कहा गया था कि किसानों के आंदोलन को कांग्रेस के लोग भड़का रहे हैं. इन सभी घटनाओं ने शिवराज सिंह चौहान की छवि को फिर से पटरी पर लाने में काफी मदद की.

शिवराज और उनकी टीम इस बात को साबित करने में कारगर हो गए कि कांग्रेस के सभी नेताओं यहां तक कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी का भी प्रदेश का दौरा सियासी नाटक के अलावा कुछ नहीं था. राहुल के मध्यप्रदेश दौरे के बाद कांग्रेसी नेताओं के वीडियो के वायरल होने से शिवराज को विपक्ष के प्रचार पर लगाम लगाने में मदद मिल गई.

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उपवास से सियासी उठापटक में बाजी मार ली

प्रदेश में अगले साल की आखिर में विधानसभा चुनाव होने हैं. उसके एक साल पहले किसानों के इस हिंसक आंदोलन ने मुश्किलें तो बढ़ा ही दी हैं. लेकिन, शिवराज सिंह की अपनी ही पार्टी के भीतर के सियासी समीकरण भी उनके लिए परेशानी का सबब हो सकते हैं.

ऐसे में सफल उपवास के जरिए शिवराज ने न केवल विपक्षी दलों को मात देने की कोशिश की है, बल्कि अपनी पार्टी बीजेपी के भीतर की सियासी उठापटक में भी बाजी मार ली है. इस बात की उम्मीद कम ही है कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव से एक साल पहले मध्यप्रदेश में चेहरे बदलने की नौबत आए.