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गुटबाजी और कलह पर काबू कर कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में 15 साल बाद पाई कामयाबी

कांग्रेस चुनाव में जनता के मन में बदलाव की इच्छा को तो समझने में सफल रही लेकिन, अपनी पार्टी के उन दिग्गज नेताओं की स्थिति को नहीं भांप पाई, जो इस बदलाव के दौर में भी चुनाव हार गए

Dinesh Gupta

पंद्रह साल से सत्ता का वनवास भोग रही कांग्रेस बहुमत से 2 सीट कम पाकर बीजेपी का तख्ता पलटने में कामयाब हो गई है. राज्य में विधानसभा की कुल 230 सीटें हैं. कांग्रेस के खाते में अभी तक 114 सीटें आईं हैं. दो-तिहाई बहुमत के लिए 116 सीटों की जरूरत होती है. भारतीय जनता पार्टी को 109 सीटों से संतोष करना पड़ा है. नतीजों में बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) और समाजवादी पार्टी (एसपी) को सम्मानजनक सीटें भी हासिल नहीं हुईं हैं.

बीएसपी को 2 और एसपी को सिर्फ 1 सीट मिली है. इस चुनाव में शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल के एक दर्जन से ज्यादा मंत्री चुनाव हार गए हैं. कांग्रेस के आधा दर्जन से अधिक दिग्गज नेता भी चुनाव हार गए हैं. सरकार बनाने के लिए प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ के पत्र पर राज्यपाल आनंदी बेन पटेल को फैसला करना है. कांग्रेस विधायक दल के नेता का चुनाव बुधवार को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) के पर्यवेक्षक ए के एंटोनी की मौजूदगी में होगा.


मजबूत पकड़ से उखड़ते-उखड़ते बची बीजेपी

मध्य प्रदेश में बीजेपी 100 से ज्यादा का आकंड़ा पार कर पाई है तो इसकी सबसे बड़ी वजह उसे पिछले चुनाव में मिली बड़ी जीत थी. बीजेपी को पिछले चुनाव में 165 सीटें मिलीं थीं. बीजेपी को यह भरोसा था कि कांग्रेस किसी भी सूरत में 100 का आकंड़ा नहीं छू पाएगी. बीजेपी के इस भरोसे की वजह उसकी परंपरागत सीटें थीं. दूसरा मुख्यमंत्री शिवराज सिंह और उनकी पार्टी बीजेपी इस बात का अनुमान नहीं लगा पाई कि कांग्रेस के नेता संकट की इस घड़ी में एक हो सकते हैं. बीजेपी को लगता था कि कांग्रेस के नेता अपने अंह के चलते एक बार फिर बीजेपी की जीत का मार्ग प्रशस्त करेंगे.

शिवराज सिंह चौहान सरकार के एक दर्जन मंत्री चुनाव में खुद अपनी सीट नहीं बचा सके

लेकिन, उम्मीद के विपरीत कांग्रेस के नेताओं की एकता ने बीजेपी का चौथी बार सत्ता में आने का सपना तोड़ दिया. कांग्रेस अपना अस्तित्व बचाने के लिए चुनाव मैदान में उतरी थी. उसने 140 सीटें जीतने का लक्ष्य तय किया था. इस लक्ष्य से पिछड़ने की वजह पार्टी की एकता को बनाए रखने के लिए कमजोर उम्मीदवारों का चयन रहा है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की सरकार के खिलाफ उपजी स्ट्रांग एंटी इनकंबेंसी बीजेपी को मिली 109 सीटों के कारण अप्रसांगिक हो गई है. बीजेपी ने इस चुनाव में अपनी 60 सीटों को खोया है. शिवराज सिंह चौहान का अनुमान था कि उनकी संबल योजना सरकार को बचाए रखेगी. लेकिन, जनता का मूड बदलाव का बना हुआ था.

अपने चुनावी वादों को जनता तक ले जाने में असफल रही कांग्रेस

मध्य प्रदेश में कांग्रेस दो बड़े मुद्दों के साथ चुनाव मैदान में उतरी थी. पहला मुद्दा, किसान के 2 लाख रुपए तक का कर्ज माफी करने का था. दूसरा मुद्दा, बिजली के बिल आधा करने का था. कांग्रेस इन दोनों मुद्दों को जनता के बीच ठीक से पहुंचा नहीं सकी. कांग्रेस ने अपने पूरे चुनाव अभियान में वोटरों पर बदलाव का मनोवैज्ञानिक दबाव बड़ी सफलता से बनाया था. लेकिन, बूथ मेनेजमेंट में कांग्रेस पिछड़ गई थी. कांग्रेस के सामने बहुमत के जादुई आकंड़े 116 सीटों पर पंहुचने की चुनौती काफी बड़ी थी. लगातार 15 साल से सत्ता से बाहर चल रही कांग्रेस के पास संसाधनों की जबरदस्त कमी थी. जमीनी स्तर पर कांग्रेस संगठन भी नाम मात्र का था. प्रदेश कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनने के बाद कमलनाथ को जमीनी स्तर पर कांग्रेस के संगठन को सक्रिय करने में काफी मशक्कत करना पड़ी.

यद्यपि (हालांकि) चुनाव जीतने के लिए कांग्रेस की मैदानी रणनीति काफी कमजोर देखी गई. संभवत: यही वजह है कि कांग्रेस के सभी बड़े नेताओं ने यह बयान देना शुरू कर दिया था कि चुनाव में बीजेपी का मुकाबला नाराज मतदाताओं से हो रहा है. कांग्रेस नाराज वोटरों के सहारे ही सत्ता पाने की उम्मीद कर रही थी. पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने जिस तरह से किसानों के मुद्दे पर तख्ता पलट किया, उसकी तुलना में मध्य प्रदेश में कांग्रेस का प्रदर्शन कमजोर ही माना जाएगा. मध्य प्रदेश में कांग्रेस कर्ज मुक्ति के नारे को दूर-दराज के गांवों तक सफलतापूर्वक नहीं ले जा पाई थी. इसका संकेत चुनाव नतीजों से मिलता है.

मध्य प्रदेश में कांग्रेस को 15 साल बाद कामयाबी दिलाने में कमलनाथ का अहम रोल है

जिस मंदसौर में पुलिस फायरिंग से किसानों की मौत हुई वहां भी कांग्रेस की स्थिति में बड़ा बदलाव नहीं आया. नतीजे बीजेपी के ही पक्ष में आए हैं. मालवा-निमाड़ की 66 सीटों में से आधी सीटें कांग्रेस को जरूर मिली हैं. कर्ज मुक्ति के नारे का फायदा कांग्रेस को अर्धशहरी क्षेत्रों में मिला है. कांग्रेस ने महाकौशल अंचल में अपनी वापसी की है. महाकौशल को कमलनाथ के प्रभाव वाला क्षेत्र माना जाता है. जबकि ज्योतिरादित्य सिंधिया का प्रभाव ग्वालियर-चंबल की 44 सीटों के अलावा मालवा-निमाड़ की दर्जन भर सीटों पर दिखाई देता है.

कांग्रेस इस चुनाव में जनता के मन में बदलाव की इच्छा को तो समझने में सफल रही लेकिन, अपनी पार्टी के उन दिग्गज नेताओं की स्थिति को नहीं भांप पाई, जो इस बदलाव के दौर में चुनाव हार गए. कांग्रेस की कमजोर स्थिति चुनाव प्रचार अभियान के दौरान भी कई स्थानों पर देखी गई थी, बावजूद इसके दिग्गज नेताओं ने समय रहते स्थिति सुधारने की कोशिश नहीं की.

BSP-SP से गठबंधन न करना कांग्रेस की रणनीतिक सफलता

प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष कमलनाथ चुनाव की घोषणा से पहले लगातार यह संकेत देते रहे कि बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए समान विचारधारा वाले दल बीएसपी और समाजवादी पार्टी से मिलकर चुनाव मैदान में उतरेगी. चुनाव की घोषणा के साथ ही कांग्रेस ने गठबंधन करने से इनकार कर दिया. जबकि शरद यादव की पार्टी के लिए टीकमगढ़ जिले की निवाड़ी सीट पर कांग्रेस ने अपना उम्मीदवार घोषित नहीं किया. मध्य प्रदेश में चुनावी समझौता न हो पाने की ठीकरा बीएसपी प्रमुख मायावती ने दिग्विजय सिंह के सिर फोड़ दिया.

वहीं एसपी प्रमुख अखिलेश यादव को भी कांग्रेस के फैसले से जबरदस्त धक्का पहुंचा. उन्होंने अपनी नाराजगी का इजहार बुंदेलखंड क्षेत्र में कांग्रेस के बागी नेताओं को पार्टी का टिकट देकर किया. बीएसपी और एसपी के असर वाले क्षेत्र ग्वालियर-चंबल, बुंदेलखंड और विंध्य प्रदेश का इलाका है. राज्य के इन अंचलों में विधानसभा की लगभग 60 से ज्यादा सीटें हैं. कांग्रेस को विंध्य क्षेत्र में अपेक्षित सफलता नहीं मिली है. जबकि ग्वालियर एवं चंबल अंचल में कांग्रेस बीजेपी से कई सीटें छीनने में सफल रही है. कांग्रेस को बुदेलखंड में भी उम्मीद के अनुसार सीटें नहीं मिली हैं. कांग्रेस के दो कार्यकारी अध्यक्ष रामनिवास रावत और सुरेंद्र चौधरी भी चुनाव नहीं जीत पाए. कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह की हार से लगा है. अजय सिंह अपनी परंपरागत सीट चुरहट से चुनाव हारे हैं. अजय सिंह, कांग्रेस के दिग्गज नेता अर्जुन सिंह के बेटे हैं. इसी परिवार के एक अन्य सदस्य राजेंद्र कुमार सिंह भी चुनाव हार गए. वो विधानसभा के उपाध्यक्ष और कांग्रेस के चुनाव घोषणा पत्र समिति के अध्यक्ष थे. विंध्य अंचल की रीवा, सतना, सीधी और सिंगरौली जिले में कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ है. इस नुकसान के कारण ही कांग्रेस पूरे दिन बहुमत का आकंड़ा देखने के लिए तरसी रही.

राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस को मध्य प्रदेश समेत हिंदी पट्टी के 3 राज्यों में जीत मिली है (फोटो: पीटीआई)

मध्य प्रदेश में तीसरे दल के उदय की संभावनाए नहीं बनीं

मध्य प्रदेश के चुनाव नतीजों से बीएसपी और एसपी दोनों को ही निराश हाथ लगी है. समाजवादी पार्टी को मात्र 1 सीट से ही संतोष करना पड़ा है. बहुजन समाज पार्टी अपने परंपरागत गढ़ भी नहीं बचा पाई. ग्वालियर-चंबल के जिस इलाके में बीएसपी हमेशा ही कांग्रेस को नुकसान पहुंचाती रही थी, वहां स्थिति बदली गई है. एट्रोसिटी एक्ट के खिलाफ इस अंचल में सवर्णों का बड़ा आंदोलन हुआ था. अनुसूचित जाति वर्ग ने भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन किया था.

मंगलवार को आए चुनाव नतीजे इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि मध्य प्रदेश में अनुसूचित जाति वर्ग कांग्रेस की ओर से वापस लौटा है. राज्य में सपाक्स और आम आदमी पार्टी (आप) की मौजूदगी से कांग्रेस को बड़ा नुकसान होता दिखाई नहीं दिया है. कांग्रेस बहुमत के आकंड़े सिर्फ 2 सीटें दूर हैं. 2 सीटों की मदद उसे पार्टी के चुनाव जीतने वालीे बागी उम्मीदवारों से मिलने की संभावना है. इनमें एक बुरहानुपर क्षेत्र से चुने गए ठाकुर सुरेंद्र सिंह हैं. इन्होंने राज्य की दिग्गज मंत्री अर्चना चिटनीस को हराया है.