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उपचुनाव में कांग्रेस की जीत : क्या सिंधिया की लोकप्रियता को स्वीकार करेंगे राहुल?

कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी इन दोनों चुनावों को अपनी छवि के आधार पर ही लड़ा था क्योकि इस चुनाव का नारा 'अबकी बार सिंधिया सरकार' था

Dinesh Gupta

कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले ग्वालियर-चंबल संभाग में पिछले एक साल में विधानसभा के तीन उपचुनाव हुए और तीनों क्षेत्रों के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में गए हैं. मुंगावली और कोलारस के विधानसभा उपचुनावों के परिणाम कांग्रेस के पक्ष में आने के बाद सिंधिया अपनी लोकप्रियता को साबित करने में सफल रहे हैं. कांग्रेस ने दोनों ही उप चुनाव सिंधिया के चेहरे पर लड़े थे. चुनाव सिंधिया के संसदीय क्षेत्र में थे. उम्मीदवारों के चयन से लेकर जीत की रणनीति की योजना भी सिंधिया ने ही तैयार की थी. कांग्रेस के सभी बड़े नेता इस क्षेत्र में प्रचार की रस्म अदायगी करने के लिए ही गए थे.

राज्य में पिछले एक साल में कुल चार विधानसभा के उप चुनाव हुए हैं. इनमें तीन सिंधिया के चेहरे और रणनीति पर लड़े गए. चित्रकूट के उप चुनाव में पार्टी ने प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह को फ्री हैंड दिया था. चित्रकूट में भी जीत कांग्रेस के खाते में गई थी. कोलारस और मुंगावली के उप चुनाव में कांग्रेस को मिली सफलता के बाद राज्य में सिंधिया को मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर प्रोजेक्ट करने की मांग का जोर पकड़ना तय माना जा रहा है.


मुंगावली में कांग्रेस उम्मीदवार बृजेन्द्र सिंह यादव 2124 मतों से चुनाव जीते हैं. मुंगावली में कांग्रेस प्रत्याशी का मुकाबला बीजेपी की बाई साहब से था. कोलारस में महेन्द्र यादव कांग्रेस के उम्मीदवार थे. उनका मुकाबला बीजेपी के देवेन्द्र जैन से था. कोलारस में कांग्रेस उम्मीदवार महेन्द्र यादव की जीत 8083 वोटों से हुई है.

सिंधिया ने जीत का क्षेत्र जनता और कांग्रेसी कार्यकर्त्ताओं को देते हुए इसे सत्य की जीत बताया. आम चुनाव में चेहरे के सवाल पर सिंधिया कहते हैं कि पार्टी जो भी जिम्मेदारी देगी, वो उसे पूरी तरह निभाने के लिए तैयार हैं.

शिवराज सिंह की चिंता भी सिंधिया का चेहरा ही है

मध्यप्रदेश में कांग्रेस पिछले पंद्रह साल से सत्ता से बाहर है. राज्य में पहली बार इतने लंबे समय तक गैर कांग्रेसी सरकार रही है. साल के अंत तक राज्य में विधानसभा के आम चुनाव होना है. चुनाव में सिंधिया को शिवराज सिंह चौहान के मुकाबले में मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित किए जाने की मांग कांग्रेस में लंबे समय से उठ रही है. कांग्रेस सांसद सिंधिया भी यह मानते हैं कि पार्टी को मुख्यमंत्री पद के चेहरे के साथ ही चुनाव मैदान में उतरना चाहिए. सिंधिया की इस राय से कांग्रेस के दूसरे बड़े नेता सहमत नहीं हैं.

राज्य में दिग्विजय सिंह और कमलनाथ  कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं. दिग्विजय सिंह इन दिनों नर्मदा परिक्रमा कर रहे हैं. वहीं कमलनाथ ने खुले तौर पर अब तक मुख्यमंत्री के पद पर दावेदारी पेश नहीं की है. मध्यप्रदेश कांग्रेस की राजनीति में कमलनाथ की भूमिका हमेशा ही किंग मेकर की रही है. तीन दशक से भी अधिक समय में ऐसे कई अवसर आए जब कमलनाथ राज्य के मुख्यमंत्री बन सकते थे लेकिन, उन्होंने केन्द्र की राजनीति में दिलचस्पी दिखाई. इस चुनाव में कमलनाथ हवा का रुख भांपने की कोशिश कर रहे हैं. अभी तक उन्होंने अपने पत्ते नहीं खोले हैं.

तस्वीर: दिग्विजय सिंह के फेसबुक से

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की चिंता का विषय कमलनाथ और दिग्विजय सिंह दोनों ही नहीं हैं. मुख्यमंत्री चौहान की चिंता सिर्फ सिंधिया के चेहरे को लेकर है. सिंधिया साफ-सुथरी छवि वाले नेता हैं. उन पर कोई व्यक्तिगत आरोप भी नहीं है. युवा वर्ग को भी आकर्षित करने की क्षमता सिंधिया में है. मुंगावली और कोलारस के उप चुनाव में सिंधिया की सीएम पद की दावेदारी को कमजोर करने के लिए ही मुख्यमंत्री चौहान ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी थी. पिछले चार महीने में दोनों विधानसभा क्षेत्रों में मुख्यमंत्री ने कई सभाएं और कार्यक्रम किए. यहां तक कि रात्रि विश्राम भी गांव में ही किया. लेकिन मुख्यमंत्री ने जिन भी गांवों में सभाएं की तो अधिकतर जगह बीजेपी को जीत हासिल नहीं हो सकी. कोलारस में कांग्रेस उम्मीदवार के वोट काटने के लिए महेन्द्र यादव नाम के पांच उम्मीदवार निर्दलीय के तौर पर भी मैदान में उतारे गए थे. इन उम्मीदवारों ने कांग्रेस के पांच हजार से अधिक वोटों का नुकसान किया.

प्रतिपक्ष के नेता अजय सिंह ने चुनावी नतीजों के बाद कहा कि 'बीजेपी दो सीट जीत नहीं सकती और दो सौ सीटों की बात कर रही है.' जबकि हार पर मध्यप्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष नंदकुमार चौहान ने सफाई दी है कि जीत का अंतर कम करना ही बड़ी कामयाबी है.

मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान

हार के अंतर को कम करने में सफल रहे मुख्यमंत्री

मुंगावली और कोलारस दोनों ही कांग्रेस के कब्जे वाली सीटें थीं. साल 2013 के  चुनाव में बीजेपी के उम्मीदवारों को पच्चीस हजार से अधिक वोटों से हार का सामना करना पड़ा था. उस वक्त बहुजन समाज पार्टी के उम्मीदवार भी मैदान में थे. लेकिन इस बार इन उप चुनावों में बीएसपी ने अपने उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारे. इस कारण यह अनुमान लगाया जा रहा था कि कांग्रेस की जीत ऐतिहासिक वोटों से होगी. सिंधिया भी जीत के अति विश्वास में चुनाव प्रचार कर रहे थे.

मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी की रणनीति जीत की संभावनाएं दिखाई न देने की स्थिति में हार के अंतर को कम करने पर केन्द्रित हो गई थी. परिणामों से पहले ही शिवराज ने ये कह दिया था कि ये दोनों सीटें पहले भी बीजेपी की नहीं थीं. जीत का अंतर कम होना यह बताता है कि क्षेत्र की जनता सिंधिया के कामकाज से खुश नहीं है.

बीजेपी ने कोलारस में अनुसूचित जाति और जनजाति वहीं मुंगावली में जैन मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की रणनीति पर काम किया. कोलारस में संरक्षित सहरिया आदिवासी हैं. इन्हें हर माह एक हजार रूपए नगद देने का फैसला शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने लिया. इसका लाभ बीजेपी को मिला भी है.

कोलारस में अनुसूचित जाति एवं जनजाति के मतदाता निर्णायक भूमिका में सामने आए जिस वजह से कांग्रेस की जीत का अंतर भी कम हुआ. ऐसे में सिंधिया की लोकप्रियता पर सवाल खड़े होना स्वभाविक है. बीजेपी ने हर साठ मतदाताओं पर एक कार्यकर्त्ता लगाया था. पार्टी की यह रणनीति सफल रही है.

अबकी बार सिंधिया सरकार का नारा

कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी इन दोनों चुनावों को अपनी छवि के आधार पर ही लड़ा था. इस चुनाव का नारा 'अबकी बार सिंधिया सरकार' था. सिंधिया की काट के तौर पर भारतीय जनता पार्टी ने उनकी बुआ और राज्य की खेल मंत्री यशोधरा राजे सिंधिया को आगे कर दिया. यशोधरा राजे के अलावा पार्टी ने पूरा मंत्रिमंडल मैदान में उतार दिया. केन्द्रीय मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने भी कोलारस में डेरा डाल दिया. सिंधिया अकेले ही बीजेपी के चक्रव्यूह से निकलने की कोशिश करते रहे.

भारतीय जनता पार्टी हार का अंतर कम कर जो मनोवैज्ञनिक संकेत देना चाहती थी,उसमें वह सफल भी रही. कांग्रेस की लीड कम होने से यह संकेत चला ही गया कि सिंधिया अपने संसदीय क्षेत्र में ही लोकप्रिय नहीं हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपना पूरा प्रचार इस बात पर केन्द्रित रखा था कि जो विकास चौदह साल में नहीं हुआ,वह बीजेपी के जीतने पर पांच महीने में कर दिखाएंगे.

मुंगावली को स्मार्ट सिटी बनाने का वादा भी किया गया है. कोलारस और मुंगावली के विधानसभा चुनाव पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की कविता की लाइन से प्रतिक्रिया व्यक्त की. उन्होंने कहा कि 'हार से न जीत से, किंचित नहीं भयभीत में'. मुख्यमंत्री चौहान की यह प्रतिक्रिया उन कयासों के बारे में थी जो कि राज्य में नेतृत्व परिवर्तन से जुड़ी हुई थीं.

कोलारस और मुंगावली में जीत का अंतर जरूर कम हो गया है लेकिन, बीजेपी के सामने सिंधिया की चुनौती अभी भी बनी हुई है. संभावना अभी भी यही है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्री के तौर पर सिंधिया को प्रोजेक्ट नहीं करेंगे. इसकी वजह पार्टी की गुटबाजी को माना जा रहा है.

सफल नहीं रहा बीएसपी से अघोषित गठबंधन का प्रयोग

मुंगावली-कोलारस के इन उप चुनावों में बीएसपी की गैर मौजूदगी का लाभ कांग्रेस उठा नहीं सकी. दोनों ही विधानसभा क्षेत्रों में बीएसपी ने कोई उम्मीदवार मैदान में नहीं उतारा था. पिछले विधानसभा चुनाव में बीएसपी को कोलारस में 23920 और मुंगावली में 12081 वोट मिले थे. इसी वजह से  कांग्रेस को उम्मीद थी कि बीएसपी की गैरमौजूदगी से उसे बीजेपी को करारी हार देने का मौका मिलेगा. लेकिन उप चुनाव में बीएसपी का वोट कांग्रेस के पाले में ट्रांसफर होता नहीं दिखा. भारतीय जनता पार्टी ने जरूर बीएसपी के वोट बैंक में सेंध लगा दी.

विधान सभा चुनाव में बीजेपी ने दो सौ सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. यह लक्ष्य अनुसूचित जाति एवं जनजाति वर्ग के मतदाताओं को ध्यान में रखकर ही तय किया गया है. पार्टी इन दोनों वर्गों में अपना जनाधार बढ़ाने की लगातार कोशिश भी कर रही है. कोलारस और मुंगावली में मिले समर्थन ने हार के बावजूद बीजेपी को संजीवनी दे दी है.