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विधानसभा चुनावों से पहले मायावती ने कांग्रेस को जोर का झटका जोर से दिया है

मायावती ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर साफ कर दिया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस से टफ बारगेनिंग होगी.

Amitesh

इसी साल 23 मई को कर्नाटक के मुख्यमंत्री के तौर पर एच.डी. कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में सभी विपक्षी नेताओं का जमावड़ा लगा था. लेकिन, मंच पर यूपीए चेयरपर्सन सोनिया गांधी की बीएसपी सुप्रीमो मायावती के साथ जुगलबंदी चर्चा का विषय रही. मंच पर पहुंचते ही सोनिया गांधी का मायावती से गले मिलना, गर्मजोशी से मुलाकात के बाद काफी देर तक एक-दूसरे से बात करना और मुस्कुराते रहना सुर्खियों में रहा. इस गर्मजोशी से मिलन को आने वाली राजनीति के संकेत के तौर पर देखा जा रहा था.

कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में बने मंच पर विपक्षी नेताओं के जमावड़े में सोनिया गांधी और मायावती के अलावा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी, एसपी अध्यक्ष और  यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलश यादव के अलावा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी मौजूद थे. लेकिन, इन सभी नेताओं की मौजूदगी के बावजूद मायावती से ज्यादा सोनिया गांधी की तरफ से मिलन की बेकरारी दिख रही थी.


लेकिन, इस बेकरारी के बावजूद मायावती ने बेसब्री का कभी परिचय नहीं दिया. एक मंझे राजनीतिज्ञ की तरह अपने बुरे दिनों के बावजूद मायावती ने अपने पुराने तेवर ही बरकरार रखे हैं, क्योंकि उन्हें पता है कि बेसब्री उनकी आगे की सियासी संभावनाओं को गलत दिशा दे सकती है.

मायावती का कांग्रेस को करारा झटका

कर्नाटक के मुख्यमंत्री एच.डी. कुमारस्वामी के शपथग्रहण कार्यक्रम में मायावती और सोनिया गांधी. ( पीटीआई )

मायावती ने छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के नाम का ऐलान कर कांग्रेस को अब बड़ा झटका दिया है. मायावती ने छत्तीसगढ़ में पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की पार्टी छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. समझौते के मुताबिक, राज्य की कुल 90 सीटों में से छत्तीसगढ़ जनता कांग्रेस 55 और बीएसपी 35 सीटों पर चुनाव लड़ेगी. गठबंधन की तरफ से अजीत जोगी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार भी बनाया गया है.

इसके अलावा मध्यप्रदेश की कुल 230 सीटों में से भी 22 सीटों पर बीएसपी ने अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है. बीएसपी ने मध्यप्रदेश की सभी सीटों पर चुनाव लड़ने का ऐलान भी कर दिया है. कुछ इसी तरह का फैसला राजस्थान में भी होने की संभावना दिख रही है.

मायावती के फैसले का क्या होगा असर ?

बात पहले छत्तीसगढ़ की करें तो यहां 2013 के पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 90 सीटों में बीजेपी को 49 और कांग्रेस को 39 सीटों पर जीत मिली थी, जबकि बीएसपी के खाते में एक सीट आई थी. इस आंकड़े को अगर वोट शेयर के हिसाब से देखें तो बीजेपी को 41%, कांग्रेस को 40.30% और बीएसपी को 4.30 % वोट मिले थे.

वोट शेयर के लिहाज से बीजेपी की तुलना में कांग्रेस का वोट शेयर थोड़ा ही कम था. ऐसे में अगर बीएसपी का वोट शेयर अगर कांग्रेस के साथ जुड़ जाए तो उस हालात में बीजेपी के लिए मुश्किलें हो सकती थीं. लेकिन, फिलहाल अजीत जोगी और मायावती के साथ लड़ने से कांग्रेस को नुकसान हो सकता है.

बात अगर मध्यप्रदेश की करें तो यहां पिछले विधानसभा चुनाव में राज्य की कुल 230 सीटों में से बीजेपी को 165, कांग्रेस को 58 और बीएसपी को 4 सीटें मिली थीं. एकतरफा जीत दर्ज कर बीजपी तीसरी बार राज्य की सत्ता में आई थी. वोट शेयर के हिसाब से बीजेपी को 44.88 %, कांग्रेस को 36.38 %  और बीएसपी को 6.29 % वोट मिले थे. यानी बीएसपी का वोट शेयर कांग्रेस के साथ मिल जाता तो फिर बीजेपी के मुकाबले विपक्ष का वोट शेयर थोड़ा ही कम रहता.

इस वक्त राज्य में 15 सालों से बीजेपी सरकार है. शिवराज सिंह चौहान 13 सालों से मुख्यमंत्री हैं. लिहाजा कांग्रेस एंटीइंकंबेंसी की उम्मीद लगाए बैठी है. एससी/एसटी एक्ट में संशोधन के बाद सवर्णों की नाराजगी देखकर कांग्रेस को लगता है कि शिवराज के खिलाफ सवर्णों की नाराजगी का फायदा उसे ही मिलेगा. ऐसे में कोशिश इस बात की थी कि बीएसपी के साथ अगर सीटों का बंटवारा हो जाए तो फिर बीजेपी को हराने का उसका सपना पूरा हो सकता है. लेकिन, मायावती ने यहां भी झटका दे दिया.

इसी तरह राजस्थान में भी पिछले विधानसभा चुनाव में भले ही बीएसपी को तीन सीटों पर जीत मिली थी लेकिन उसका वोट शेयर तीन फीसदी था. मायावती चाहती थीं कि छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश के साथ-साथ राजस्थान में भी उन्हें सम्मानजनक सीटें दी जाएं, लेकिन, राजस्थान में कांग्रेस को अपने दम पर जीत का भरोसा ज्यादा दिख रहा है. कांग्रेस को लगता है कि राजस्थान में सत्ता विरोधी माहौल का सबसे ज्यादा फायदा उसे ही मिलेगा. ऐसे में यहां बीएसपी के साथ समझौते को लेकर कांग्रेस ज्यादा उत्साहित नहीं दिखी.

अब राजस्थान में बीएसपी के समाजवादी पार्टी और लेफ्ट के साथ मिलकर चुनाव लड़ने के संकेत मिल रहे हैं. मतलब यहां भी कांग्रेस और बीजेपी दोनों के खिलाफ मोर्चा खोलने की तैयारी हो रही है.

मायावती ने पहले ही दिया था संकेत

मायावती ने कांग्रेस को साफ संदेश दे दिया है, बीजेपी के खिलाफ महागठबंधऩ के लिए कांग्रेस के नेतृत्व को स्वीकारने और उसकी पिछलग्गू बनने का कोई सवाल नहीं है. हालांकि इसके संकेत पहले ही मिल गए थे जब मायावती ने पेट्रोल-डीजल के दाम के मुद्दे पर बोलते हुए बीजेपी के अलावा कांग्रेस की नीतियों को भी जिम्मेदार बताया था.

फिर, उनकी तरफ से सम्मानजनक सीटों पर ही गठबंधन होने की बात कही गई थी. मायावती ने 15 सितंबर को यह बयान दिया था. उस दिन साफ हो गया था कि जितनी सीटों की मांग उनकी तरफ से की जा रही है, उस पर बात नहीं बन पा रही है.

सूत्रों के मुताबिक, कांग्रेस की तरफ से बीएसपी को महज तीस सीटें देने की बात हो रही थी, लेकिन, बीएसपी मध्यप्रदेश में अपने लिए पचास से ज्यादा सीटों की मांग कर रही थी. इसके अलावा छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी सीटें मांग रही थी. लिहाजा बात परवान नहीं चढ़ पाई. लेकिन, मायावती ने एकतरफा सीटों का ऐलान कर कांग्रेस को परेशानी में डाल दिया है, जिसमें संकेत विधानसभा चुनाव के आगे का भी है.

मायावती बिगाड़ेंगी ‘महागठबंधन’ का खेल ?

मायावती के इस तेवर के बाद अब सियासी गलियारों में इस बात के कयास लगाए जाने लगे हैं कि मायावती का अगला कदम क्या होगा! खासतौर से विधानसभा चुनावों के बाद लोकसभा चुनाव के बाद की रणनीति के संकेत अभी से ही मिलने लगे हैं. मायावती के तेवर से लग रहा है कि यूपी में लोकसभा चुनाव के वक्त भी वो कांग्रेस के साथ समझौते के मूड में नहीं है.

हालांकि, समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलश यादव की तरफ से बीएसपी के साथ समझौते को लेकर बार-बार बयान दिया जा रहा है. अखिलेश दो कदम पीछे हटने के संकेत भी दे रहे हैं. लेकिन, उनकी भी दिली इच्छा यही है कि समझौता मायावती के साथ हो न कि कांग्रेस के साथ. पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ समझौता कर चुके अखिलेश यादव की साइकिल ऐसी पंक्चर हुई कि दोबारा कांग्रेस से हाथ मिलाने से वो परहेज कर रहे हैं.

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा के उपचुनाव में भी कांग्रेस के अलग चुनाव लड़ने के बावजूद एसपी-बीएसपी के समझौते के चलते दोनों ही सीटों पर एसपी उम्मीदवार की जीत हो गई थी. कैराना और नूरपुर में भी एसपी-बीएसपी और आरएलडी के गठबंधन का फायदा मिला था, ये अलग बात है कि कांग्रेस ने यहां गोरखपुर और फूलपुर की गलती न दोहराते हुए विपक्षी उम्मीदवार का समर्थन कर दिया था.

लेकिन, एसपी और बीएसपी दोनों को कांग्रेस से दोस्ती नागवार गुजर रही है. दोनों को लगता है कि चुनाव से पहले गठबंधन होने की सूरत में कांग्रेस और उसके नेतृत्व को फायदा ज्यादा मिलेगा. लेकिन, केवल एसपी-बीएसपी और आरएलडी के साथ समझौता कर अधिक सीटों पर चुनाव लड़कर पोस्ट पोल एलायंस की संभावना बेहतर विकल्प दे सकती है. मोल-भाव करने का पूरा मौका भी मिलेगा.

मायावती ने विधानसभा चुनाव में कांग्रेस से अलग होकर चुनाव लड़ने का ऐलान कर साफ कर दिया है कि उत्तर प्रदेश में उसकी तरफ से लोकसभा चुनाव के दौरान भी कांग्रेस से टफ बारगेनिंग होगी. कांग्रेस को यूपी में पूरी तरह नतमस्तक होना पड़ेगा वरना बगैर कांग्रेस भी अखिलेश के साथ मायावती जा सकती हैं. मायावती के तेवर और सौदेबाजी के अंदाज से तो यही लग रहा है कि लोकसभा चुनाव के वक्त आखिरी वक्त में वो अपने पत्ते खोलेंगी कि किसके साथ जाना है और किसका हाथ छोड़ना है.