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फर्जी वोटर: सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी या चुनावी रणनीति का हिस्सा?

कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव को प्रभावित करने के लिए सत्ताधारी दल बीजेपी ने चुनाव नतीजों को प्रभावित करने के लिए साठ लाख लोगों के नाम गलत ढंग से जोड़े हैं

Dinesh Gupta

नवंबर में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव के लिए मतदान होना है. राज्य में वोटर लिस्ट को अब तक अंतिम रूप नहीं दिया जा सका है. कांग्रेस का आरोप है कि चुनाव को प्रभावित करने के लिए सत्ताधारी दल बीजेपी ने चुनाव नतीजों को प्रभावित करने के लिए साठ लाख लोगों के नाम गलत ढंग से जोड़े हैं. चुनाव आयोग के अधिकारी वोटर लिस्ट में गलती होने की बात तो स्वीकार कर रहे हैं. लेकिन वे इन्हें फर्जी स्वीकार नहीं कर रहे हैं.

राज्य की मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सलीना सिंह का कहना है कि वोटर लिस्ट में ज्यादातर ऐसे लोगों के नाम हैं, जो वर्तमान पते पर नहीं रहते हैं अथवा जिनका निधन हो गया है. वोटर लिस्ट को अपडेट करने के काम से जुडे अधिकारी गडबड़ी के लिए चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर को जिम्मेदार मान रहे हैं.


कांग्रेस ने कोलारस एवं मुंगावली उपचुनाव में पकड़ी थी गड़बड़ी

फरवरी महीने में राज्य के दो विधानसभा क्षेत्र कोलारस एवं मुंगावली में उपचुनाव हुए थे. इन उपचुनावों के दौरान कांग्रेस के सामने वोटर लिस्ट में फर्जी मतदाताओं के नाम आए थे. इसकी शिकायत निर्वाचन आयोग को भी की गई थी. आयोग की जांच में शिकायत सही पाई गई थी. आयोग ने मुंगावली की सूची में गड़बड़ी के लिए अशोकनगर के तत्कालीन कलेक्टर बीएस जामोद की जिम्मेदारी तय की. कोलारस विधानसभा क्षेत्र की गड़बड़ी में शिवपुरी के तत्कालीन कलेक्टर तरुण राठी की जिम्मेदारी तय की गई. आयोग के आदेश के बाद सरकार ने दोनों जिलों के कलेक्टर बदल दिए.

कोलारस एंव मुंगावली के उपचुनाव में ही कांग्रेस को पहली बार यह समझ में आया कि वोटर लिस्ट में भी फर्जीवाड़ा कर चुनाव परिणाम अपने पक्ष में किए जा सकते हैं. वोटर लिस्ट को लेकर कांग्रेस और उसके कार्यकर्ता कभी गंभीर नहीं रहते हैं. कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया की पहल पर कांग्रेस ने पहली बार मतदातासूचियों की जांच के लिए सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की मदद ली. सॉफ्टवेयर के नतीजों के आधार पर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने साठ लाख फर्जी वोटर होने की शिकायत चुनाव आयोग को दी. शिकायत पर मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने राज्य के चार विधानसभा क्षेत्रों की वोटर लिस्ट जांचने के लिए आयोग के अधिकारियों के जांच दल गठित कर दिए. जांच रायसेन जिले की भोजपुर, भोपाल जिले की नरेला, हरदा जिले की सिवनी मालवा और होशंगाबाद विधानसभा क्षेत्र की वोटर लिस्ट की हो रही है. जांच दल को सात जून तक अपनी रिपोर्ट मुख्य चुनाव आयुक्त को देना है.

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कांगे्रस का आरोप, आबादी के अनुपात से ज्यादा बढ़े हुए हैं वोटर

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ कहते हैं कि हमने सौ से अधिक विधानसभा क्षेत्रों की मतदाता सूची की जांच कराई थी. इस जांच के आधार पर ही हम वोटर लिस्ट में गडबड़ी की शिकायत कर रहे हैं. कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया कहते हैं कि प्रदेश की आबादी 24 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है, लेकिन मतदाता 40 प्रतिशत की दर से बढ़ रहे हैं. पार्टी का दावा है कि पड़ोसी राज्य उत्तरप्रदेश के मतदाताओं के नाम सूची में गलत ढंग से जोड़े गए हैं.

कांग्रेस ने वोटर लिस्ट की जांच के लिए जिस सॉफ्टवेयर की मदद ली है उसने ऐसे नाम छांटे हैं, जिनमें एक फोटो का उपयोग कई जगह किया गया है. एक ही फोटो वाले मतदाता कई विधानसभा क्षेत्र और पोलिंग स्टेशन पर हैं. फोटो महिला की लगी है लेकिन नाम और लिंग पुरुष दर्ज है. मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी की वेबसाइट के अनुसार, वर्तमान में मध्यप्रदेश में कुल पांच करोड़ सात लाख अस्सी हजार तीन सौ सैंतीस वोटर हैं. कांग्रेस के आरोप का आधार जनसंख्या के आकंड़ें हैं. जनसंख्या के आकंड़ें वर्ष 2011 में आए थे.

2011 के आंकड़ों में प्रदेश की जनसंख्या सात करोड़ 25 लाख 97 हजार 565 बताई गई. राज्य में पिछले दशक की जनगणना वृद्धि दर से यह बढ़ोतरी चार प्रतिशत कम है. आबादी के आंकड़ों में 3,76,12,920 पुरुष एवं 3,49,84,645 महिलाएं हैं. जनगणना 1991-2001 के बीच प्रदेश की सनसंख्या वृद्धि दर 24.3 थी, जो 2001-2011 के दशक में घटकर 20.3 हो गई है, यानी पिछले दशक की तुलना में 2011 के दशकीय में जनसंख्या वृद्धि दर में चार प्रतिशत की कमी दर्ज की गई है. जनगणना आकंड़ों में राज्य में प्रति 1000 पुरुषों पर 930 महिलाएं हैं. मध्यप्रदेश की जनसंख्या से बच्चों की कुल संख्या का अनुपात 14.5 है. प्रदेश में वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में 18 वर्ष का वही मतदाता सूची में नाम दर्ज करा सकता है, जिसका जन्म 1 जनवरी 2000 के पहले हुआ है.

वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बढ़े थे एक करोड़ वोटर

जनगणना के आकंड़ों और मतदाताओं के आंकड़ों में कोई मेल नहीं है. पहली बार प्रदेश में मतदाताओं की संख्या में सबसे ज्यादा वृद्धि वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में सामने आई थी. वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या चार करोड़ चौसठ लाख अड़तालीस हजार आठ सौ बानबे थी. जबकि वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में कुल मतदाताओं की संख्या तीन करोड़ इकसठ लाख तिहत्तर हजार तीन सौ छयालीस थी. अर्थात एक करोड़ दो लाख से अधिक मतदाता वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में बढ़े थे. यह मतदाता आज भी सूची में हैं. जबकि इस साल तैतालीस लाख से अधिक नए मतदाता जुड़े हैं. अर्थात पिछले एक दशक में लगभग एक करोड़ चालीस लाख से अधिक नए मतदाता सूची में शामिल हुए हैं. वर्ष 2009 के लोकसभा चुनाव में तीन करोड़ इकसठ लाख से अधिक मतदाता थे. वर्ष 2013 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को लगभग एक करोड़ चौबीस लाख और बीजेपी को लगभग एक करोड़ बावन लाख वोट मिले थे. कांग्रेस को कुल 36.38 प्रतिशत और बीजेपी को 44.87 प्रतिशत वोट मिले थे. वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 36.04 प्रतिशत और बीजेपी को 36.81 प्रतिशत वोट मिले थे.

चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर से हुई है चूक?

कांग्रेस नेता कमलनाथ सवाल करते हैं कि 40 प्रतिशत की दर से वोटर बढ़ने पर बीजेपी आखिर चुप क्यों है? उसे भी एतराज करना चाहिए. सभी राजनीतिक दलों को भी इसे गंभीरता से लेना चाहिए. इसके जवाब में भारतीय जनता पार्टी के प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल कहते हैं कि कांग्रेस को आपत्ति सूची प्रकाशित होने के बाद करना चाहिए. चुनाव आयोग ने राज्य की वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण का नया कार्यक्रम जारी किया है. इसके अनुसार 31 जुलाई को मतदाता सूची का प्रारूप प्रकाशित किया जाएगा. दावे-आपत्ति का निराकरण किए जाने के बाद 27 सितंबर को सूची का अंतिम प्रकाशन किया जाएगा.

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फरवरी माह में वोटर लिस्ट में गड़बड़ी सामने आने के बाद चुनाव आयोग ने राज्य भर की मतदाता सूचियों की बारीकी से जांच कराई. इस जांच के आधार पर आयोग ने 17 लाख से अधिक ऐसे नामों की पहचान की है, जिनके फोटो अथवा नाम एक से अधिक पोलिंग स्टेशन अथवा विधानसभा क्षेत्र में दर्ज है. राज्य की मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी सलीना सिंह ने कहा कि हमने ऐसे दस लाख नामों को हटाया है, जो वर्तमान पते पर नहीं रहते, निधन हो चुका है अथवा अन्य स्थान पर रहने चले गए हैं. सलीना सिंह का दावा है कि वोटर लिस्ट की जांच के लिए 17 पैरामीटर हैं. राज्य के एक आला अधिकारी ने बताया कि वोटर लिस्ट में गड़बड़ी दो कारणों से हुई. पहली बड़ी वजह बूथ लेबल के अधिकारियों द्वारा घर-घर जाकर भौतिक सत्यापन न कराने से हुई है. एक से अधिक स्थानों पर नाम आ जाने की गड़बड़ी चुनाव आयोग के सॉफ्टवेयर के कारण हुई. अप्रैल महीने में मुख्य निर्वाचन आयुक्त ओपी रावत जब भोपाल आए थे, उनके सामने भी सॉफ्टवेयर की गड़बड़ी का मामला अधिकारियों ने रखा था. आयोग ने इस शिकायत के बाद सॉफ्टवेयर का नया वर्जन लॉन्च किया है.

वीआईपी सीट पर सबसे ज्यादा फर्जी वोटर

चुनाव आयोग का दल जिन चार विधानसभा क्षेत्रों की वोटर लिस्ट की जांच कर रहा है वे व्हीआईपी सीट मानी जातीं हैं. भोजपुर विधानसभा क्षेत्र से राज्य के पर्यटन मंत्री सुरेन्द्र पटवा चुनाव लड़ते हैं. पूर्व केन्द्रीय सुरेश पचौरी कांग्रेस की टिकट से इस विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़े थे. भोपाल जिले की नरेला सीट से राज्य के सहकारिता मंत्री विश्वास सारंग चुनाव लड़ते हैं. सिवनी-मालवा की सीट राज्य के पूर्व मंत्री सरताज सिंह की सीट हैं. जबकि होशंगाबाद से विधानसभा अध्यक्ष सीताशरण शर्मा चुनाव लड़ते हैं. प्रदेश के पांच जिले ऐसे हैं, जहां सबसे ज्यादा अपात्र और फर्जी नाम वोटर लिस्ट में हैं. ये जिले भोपाल, धार, शिवपुरी, सागर और रीवा हैं. शिवपुरी सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया के संसदीय क्षेत्र का हिस्सा है.