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मध्य प्रदेश चुनाव 2018: क्या प्रेमचंद गुड्डू के नाम पर अजीत बोरासी को घट्टिया से मिलेंगे वोट?

साथ ही अजीत का कांग्रेस पार्टी से जुड़ा इतिहास भी उनको चुनावी रण में कमजोर प्रत्याशी बना रहा है.

Nitesh Ojha

मध्य प्रदेश की राजनीति जितनी तेजी से करवट ले रही है, उतना ही राज्य के विधानसभा चुनाव में रोमांच पैदा हो गया है. राज्य में पासा कब पलट जाए, इस सवाल का पुख्ता जवाब फिलहाल किसी के पास नहीं है. लेकिन इस बीच नेताओं का दल-बदल भी जारी है. कभी मध्य प्रदेश कांग्रेस में कद्दावर नेता रहे प्रेमचंद गुड्डू आज 'हाथ' छोड़ 'कमल' का दामन थाम चुके हैं. इस साल 2 नवंबर को कांग्रेस छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल होने वाले गुड्डू का मध्य प्रदेश के उज्जैन क्षेत्र पर दबदबा माना जाता है. दबदबा ऐसा था की उनके बेटे भी अजीत बोरासी भी कांग्रेस में अपना सिक्का जमा चुके थे. बेटे अजीत बोरासी युवा कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष के पद पर भी रह चुके हैं. लेकिन चुनाव से ऐन पहले पिता और बेटे की इस जोड़ी ने बीजेपी में शामिल होना गनीमत समझा. कांग्रेस छोड़ने के ईनाम के तौर पर कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह के करीबी माने जाने वाले प्रेमचंद गुड्डू को बीजेपी ने उनके बेटे अजीत को घट्टिया सीट से टिकट भी दे दिया. हालांकि अजीत को टिकट मिलने के पहले इस सीट पर जम कर ड्रामा हुआ.

बीजेपी ने इस सीट से पहले मौजूदा विधायक सतीश मालवीय का टिकट काटकर अशोक मालवीय को टिकट दिया था. लेकिन फिर अशोक मालवीय का टिकट काटकर अजीत सिंह बोरासी को चुनावी रण में उतारा गया. ऐसे में कार्यकर्ता लगातार कन्फ्यूज होते रहे. हालांकि आखिर में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को उसी के लिए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में वोटों की अपील करनी पड़ रही है, जिसका एक महीने पहले तक वे विरोध कर रहे थे.


अजीत के कार्यकर्ताओं में उत्साह की कमी

बात अगर विरोधी उम्मीदवार की करें तो कांग्रेस ने इस बार घट्टिया सीट से रामलाल मालवीय को टिकट दिया है. रामलाल इस अनुसूचित जाति आरक्षित सीट से पिछला चुनाव हार गए थे. लेकिन हारने के बाद से ही वह इस क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहे हैं. इसके चलते लोगों के बीच उनके लिए सहानुभूति देखने को मिल रही है. वहीं अजीत को लोग बाहरी उम्मीदवार की नजर से देख रहे हैं. न सिर्फ लोग बल्कि उनके खुद के कार्यकर्ताओं में उत्साह की भारी कमी देखी जा सकती है.

घट्टिया के एक गांव गोयला बुजुर्ग के एक बीजेपी कार्यकर्ता का कहना है कि इस बार मुकाबला काफी टक्कर का है. इस बात को साबित करने के लिए वह तर्क देते हैं कि जिन नेताओं के टिकट अजीत के लिए काटे गए हैं, वे खुलकर विरोध तो नहीं कर रहे हैं लेकिन उनके समर्थन में भी वो सामने नहीं आ रहे हैं. उनसे जुड़े सवाल पर कुछ बीजेपी नेताओं का कहना है कि टिकट कट जाने के बाद ऐसी खटास लाजमी है और इसका असर अजीत के विरोध में देखने को मिल सकता है.

कमजोरी में लिया पिता के नाम का सहारा

चुनावी दंगल में खुद अजीत भी इस बात को पहचान चुके होंगे की चुनाव में उनकी स्थिति थोड़ी खराब है क्योंकि पार्टी में अंदर के लोग ही उनसे नाराज हैं. इसी वजह से वह क्षेत्र में लगातार दौरे कर लोगों से वोट की अपील कर रहे हैं. वहीं उनकी अपील में अनुभव की कमी साफ देखी जा सकती है. उनकी कमजोरी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि उन्होंने विधानसभा चुनाव के दौरान अपने नाम में अपने पिता का नाम जोड़ लिया. अजीत बोरासी का चुनाव प्रचार अजीत प्रेमचंद गुड्डू के नाम से हो रहा है. ताकि उनको उनके पिता के नाम का फायदा मिल सके. साथ ही जनता वोट करते समय कन्फ्यूज न हो.

साथ ही अजीत का कांग्रेस पार्टी से जुड़ा इतिहास भी उनको चुनावी रण में कमजोर प्रत्याशी बना रहा है. इसलिए वह शायद मीडिया के सवालों से भी बचते देखे गए. ऐसे में एमपी चुनाव में ये देखना होगा कि परिवारवाद के नाम पर कांग्रेस को घेरने वाली बीजेपी गुड्डू परिवार के बूते इस इलाके में कमल खिला पाएगी या ये फैसला उसके हाथों से सीट गंवाने का मुख्य कारण बन जाएगा.