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मध्यप्रदेश में असंतुष्टों की ताकत से तय होंगे चुनाव परिणाम

उम्मीदवारों की सूची के जारी होने के बाद से दोनों ही दलों में कार्यकर्ताओं का असंतोष और गुस्सा सड़कों पर खुलकर दिखाई दे रहा है

Dinesh Gupta

मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी ने अपने उम्मीदवारों की पहली और कांग्रेस ने दूसरी लिस्ट जारी कर दी है. इस सूची के जारी होने के बाद दोनों ही दलों में कार्यकर्ताओं का असंतोष और गुस्सा सड़कों पर खुलकर दिखाई दे रहा है. घोषित उम्मीदवारों की तुलना में असंतुष्ट अपनी ताकत खुलकर दिखा रहे हैं. कांग्रेस ने युवा आदिवासी संगठन जयस के अध्यक्ष हीरालाल अलावा को मनावर से उम्मीदवार बनाकर आदिवासी वोटरों को अपने पक्ष में करने की कोशिश जरूर की है, लेकिन उस की इस कोशिश से पार्टी का निष्ठावान कार्यकर्ता नाराज है.

कांग्रेस से ज्यादा नाराजगी बीजेपी में दिखाई दे रही है. पार्टी के कई मौजूदा विधायक अपना टिकट कटने के बाद उम्मीदवारों के चयन में करोड़ों रुपए की राशि के लेनदेन के आरोप लगा रहे हैं. दोनों ही दलों में उभरी बगावत से राज्य में चुनावी मुकाबला काफी दिलचस्प होने के आसार है. पार्टियों के पास बगावत पर काबू पाने के लिए मात्र चार दिन ही बचे हैं. इन चार दिनों में जो दल असंतुष्टों को साध लेगा परिणाम उसके पक्ष में जाने के आसार उतने ही ज्यादा होंगे.


असंतोष को थामने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने निरस्त किए कार्यक्रम

मध्य प्रदेश, भारतीय जनता पार्टी का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता है. राज्य में पिछले 15 साल से भारतीय जनता पार्टी की सरकार है. पिछले 13 साल से शिवराज सिंह चौहान राज्य के मुख्यमंत्री हैं. इन 13 सालों में शिवराज सिंह चौहान ने पार्टी के संगठन पर भी अपनी पकड़ काफी मजबूत की है. पिछले तीन चुनाव में उन्होंने अपने कई विरोधियों को घर बैठा दिया. लेकिन, किसी ने भी पार्टी लाइन से बाहर जाकर अपने गुस्से का इजहार नहीं किया.

लेकिन टिकट के बंटवारे की पहली सूची जारी होने के बाद जिस तरह का असंतोष बीजेपी के निष्ठावान कार्यकर्ताओं का सामने आया है, उसने पार्टी ही नहीं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी चिंता में डाल दिया है. सबसे मुखर स्वर टीकमगढ़ और रतलाम जिले से सुनाई दिए हैं. टीकमगढ़ के विधायक केके श्रीवास्तव ने सार्वजनिक रूप से आरोप लगाते हुए कहा कि पार्टी के टिकट करोड़ों रुपए में बेचे गए हैं. उन्होंने पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रभात झा को निशाने पर लिया है. श्रीवास्तव का आरोप है कि पार्टी द्वारा सर्वे के आधार पर टिकट दिए जाने की बात सिर्फ निष्ठावान कार्यकर्ताओं को गुमराह करने के लिए कही गई थी.

बागली विधानसभा क्षेत्र के विधायक चंपालाल देवड़ा टिकट वितरण से खुश नहीं हैं. उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है. पार्टी ने इस क्षेत्र से पहाड़ सिंह कन्नौज को उम्मीदवार बनाया है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को सबसे बड़ा झटका संजय सिंह मसानी के कांग्रेस में जाने से लगा है. संजय सिंह मसानी मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पत्नी साधना सिंह के सगे भाई हैं.

कांग्रेस संजय सिंह के जरिए बीजेपी के कार्यकर्त्ता पर हार का मनोवैज्ञानिक दबाव बनाना चाहती है. संजय सिंह मसानी पिछले तीन चुनाव से लगातार सिवनी-बालाघाट से टिकट की मांग करते रहे हैं. हालांकि उनके कांग्रेस मे जाने से कोई बड़ा नुकसान बीजेपी को होता दिखाई नहीं दे रहा है. यह संदेश जरूर जा रहा है कि मुख्यमंत्री के परिवार के लोागों को भी जीत में संशय दिखाई दे रहा है.

बाबूलाल गौर और सरताज सिंह ने दी असंतोष को हवा

बीजेपी के लिए सबसे अप्रिय स्थिति पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर और सरताज सिंह ने निर्मित की है. गौर राज्य के मुख्यमंत्री और सरताज सिंह केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं. हालांकि बीजेपी ने अपनी पहली सूची में इन दोनों नेताओं के निर्वाचन क्षेत्र गोविंदपुरा और सिवनी मालवा के लिए उम्मीदवारों की घोषणा नहीं की है. लेकिन, दोनों का टिकट कटना तय माना जा रहा है. बाबूलाल गौर की बहू कृष्णा गौर निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं. सरताज सिंह भी नरम पड़ने को तैयार नहीं है.

राज्य का ऐसा कोई अंचल नहीं है,जहां उम्मीदवारों की घोषणा के बाद विरोध में नारेबाजी,धरना प्रदर्शन न हो रहे हो. विधानसभा चुनाव में उतारे जा रहे दो सांसद नागेंद्र सिंह और मनोहर ऊंटवाल भी अपने-अपने क्षेत्रों में विरोध का सामना कर रहे हैं. ऊंटवाल, देवास और नागेंद्र सिंह खजुराहो से सांसद हैं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के गृह जिला सीहोर में भी बगावत की स्थिति है. यहां जिला पंचायत की अध्यक्ष उर्मिला मठेरा ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर आष्टा विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी. पार्टी में उठे बगावत के स्वर के चलते मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को अपनी चुनावी सभाएं रद्द करनी पड़ी हैं. मुख्यमंत्री अब दीपावली के बाद ही चुनावी दौरे करेंगे.

सत्ता के प्रवेश द्वार मालवा-निमाड़ में है दोनों दलों में असंतोष

राज्य के मालवा और निमाड़ क्षेत्र को सत्ता का प्रवेश द्वारा माना जाता है. इस क्षेत्र में विधानसभा की कुल 66 सीटें हैं. पिछले डेढ़ साल से दस इलाके में किसान राजनीति चल रही है. इस क्षेत्र में आदिवासी सीटों की संख्या भी अच्छी खासी है. मालवा-निमाड़ अंचल को बीजेपी का गढ़ माना जाता है. कांग्रेस इस गढ़ को भेदने की कोशिश लगातार कर रही है. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी इस अंचल पर फोकस कर रहे हैं. कांग्रेस औप बीजेपी के उम्मीदवारों की पहली सूची आने के बाद कार्यकर्त्ताओं में सबसे ज्यादा असंतोष की स्थिति इसी अंचल में देखी जा रही है.

कांग्रेस का गढ माने जाने वाले झाबुआ में कांग्रेस के उम्मीदवारों को लेकर असंतोष है. झाबुआ में कांग्रेस ने सांसद कांतिलाल भूरिया की मर्जी से टिकट बांटे हैं. उनके पुत्र डॉ.व्रिकांत भूरिया को झाबुआ से, भतीजी कलावती भूरिया को अलीराजपुर से टिकट दिया गया है. इससे कांग्रेस में नाराजगी है. एक हजार से अधिक कार्यकर्त्ता सड़कों पर विरोध कर रहे हैं और पुतला जला रहे हैं.

बीजेपी में सरदारपुर की सीट को लेकर बवाल मचा हुआ है. यहां से मौजूदा विधायक वेल सिंह का टिकट काटा गया है. वेल सिंह भूरिया ने कहा कि पार्टी बाहरी के बजाए स्थानीय कार्यकर्त्ता को टिकट देती तो मुझे एतराज नहीं था. बीजेपी ने यहां संजय बघेल को टिकट दी है. वेल सिंह भूरिया ने कहा कि टिकट नहीं बदली गई तो मुख्यमंत्री को जीत के लिए खुद मेरे पास आना होगा.

मालवा-निमाड़ अंचल को साधने के लिए ही बीजेपी ने पूर्व सांसद प्रेमचंद्र गुड्डू को कांग्रेस से तोड़कर अपनी पार्टी में शामिल किया है. लेकिन, इससे आलोट और घटिया विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्त्ता बगावत के मूड में आ गया है. धार जिले में कांग्रेस ने युवा आदिवासियों के संगठन जयस के अध्यक्ष हीरालाल अलाव को टिकट देकर नया दांव खेला है. जयस संगठन ने कांग्रेस से कोई चुनावी समझौता नहीं किया है. अलावा के कांग्रेस में चले जाने से नाराज जयस के पदाधिकारियों ने उन्हें अपने संगठन से बाहर कर दिया है. इससे कांग्रेस को आदिवासी वोटों को बचाए रखने के लिए नई रणनीति बनाना होगी.