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मध्य प्रदेश चुनाव: जावरा सीट पर कांग्रेस और बीजेपी के बागी बिगाड़ सकते हैं खेल

Nitesh Ojha

28 तारीख को मध्य प्रदेश में होने वाले चुनाव से पहले सोमवार को प्रचार-प्रसार का शोर खत्म हो गया. सभी राजनीतिक दल अपनी पूरी ताकत झोंक चुके हैं अब इंतजार 11 तारीख का है जब दलों की मेहनत का परिणाम सामने आएगा. मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में हर सीट पर वैसे तो कई राजनीतिक दल हिस्सा ले रहे हैं, लेकिन ज्यादातर यह मुकाबला दोनों मुख्य राजनीतिक दल कांग्रेस और बीजेपी में ही है. राज्य की जावरा सीट पर भी मुख्यत: यही दोनों पार्टियां मैदान में हैं, हालांकि कुछ मायनों में यहां मुकाबला चौतरफा हो चुका है.

दरअसल जावरा में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों के नेता टिकट न मिलने के कारण बागी हो गए थे. इसके बाद इन नेताओं ने निर्दलीय ही चुनावी रण में उतरने का फैसला किया. कांग्रेस के बागी नेता हमीर सिंह राठौर चाबी निशान के सहारे विधानसभा का ताला खोलने की कोशिश में हैं, तो वहीं बीजेपी के बागी श्याम बिहारी पटेल भी निर्दलीय चुनाव लड़ रहे हैं. बीजेपी ने आधिकारिक तौर पर राजेंद्र पांडेय को टिकट दिया है, जबकि कांग्रेस ने केके कालूखेड़ा को मौका दिया है.


हमीर सिंह, कांग्रेस के बागी नेता

गौरतलब है कि जावरा विधानसभा प्रदेश की उन चंद विधानसभाओं में शुमार है, जहां मुसलमानों की आबादी 30 प्रतिशत या उससे ज्यादा है. यह सीट कांग्रेस की पारंपरिक सीट मानी जाती है. लेकिन बीजेपी नेता राजेंद्र पांडेय के क्षेत्र में लगातार सक्रिय रहने से लोगों में उनके प्रति काफी सहानुभूति रही है, जिससे 2003 और 2013 के चुनाव में वे अपनी पार्टी को जिताने में कामयाब रहे थे. इस बार भी पार्टी ने राजेंद्र पांडेय पर ही अपना भरोसा जताया है.

राजेंद्र पांडेय, बीजेपी के आधिकारिक प्रत्याशी

कांग्रेस ने पूर्व विधायक स्व. महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के भाई के.के सिंह कालूखेड़ा को अपना उम्मीदवार बनाया है. महेंद्र सिंह कालूखेड़ा जावरा समेत गुना जिले की मुंगावली सीट से भी 6 बार विधायक रह चुके हैं. महेंद्र सिंह को ज्योतिरादित्य सिंधिया के बेहद करीबियों में से एक माना जाता था. महेंद्र सिंह का पैतृक गांव भी जावरा में ही है, जिसके चलते क्षेत्रवासी उन्हें अपने परिवार के सदस्य के रूप में देखते हैं. कांग्रेस द्वारा उनके भाई को टिकट दिए जाने से इस सीट पर मुकाबला काफी कड़ा हो गया है.

हालांकि दोनों पार्टियों के बागी नेताओं के मैदान पर उतने से यह मुकाबला और ज्यादा दिलचस्प हो गया है. लेकिन क्या ये बागी दोनों पारंपरिक दलों के प्रत्याशियों को नुकसान पहुंचाने की स्थिति में हैं? इस सवाल के जवाब में जावरा के ही स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि यह संभव है. उनका मानना है कि राजेंद्र पांडेय की क्षेत्र के मुसलमानों के बीच अच्छी छवि है, साथ ही सवर्णों की बड़ी आबादी के भारी समर्थन से भी उन्हें इस क्षेत्र से विधायक बनने का मौका मिल सकता है.

श्याम बिहारी, बीजेपी के बागी नेता

पिछले चुनाव में कांग्रेस द्वारा मो.युसूफ को चुनाव लड़ाने से राजेंद्र पांडेय की जीत का मार्जिन भी 30 हजार से ज्यादा वोटों का रहा था जिससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा हुआ है. हालांकि इस बार उनके लिए मुकाबला उतना आसान नहीं होने वाला है. कांग्रेस ने कद्दावर नेता महेंद्र सिंह कालूखेड़ा के भाई के.के सिंह को उतारकर कर मुकाबला कड़ा कर दिया है. बीजेपी के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर के.के सिंह के पक्ष में जा सकती है. इसके अलावा स्थानीय मुस्लिम भी कांग्रेस का रुख कर सकते हैं जो कुछ राष्ट्रीय मुद्दों के कारण बीजेपी को लेकर संशय में हैं. कांग्रेस के लिए यह चुनावी माईलेज का काम कर सकता है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस सीट पर बागी नेताओं में से कोई एक भी अगर अपनी जमानत बचा लेता है तो मुकाबला फंस सकता है. इशारों-इशारों में वो कहते हैं कि बागियों को हल्के में न लें, ये किसी का भी खेल बिगाड़ सकते हैं.