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लोकसभा चुनाव का सियासी लक्ष्य भेदने के लिए SP-BSP गठबंधन में बराबरी की बुनियाद

दोनों नेताओं को पता है कि 2014 और 2017 में यूपी में बीजेपी के हाथों मात खाने के बावजूद बीएसपी और एसपी के वोट प्रतिशत में कमी नहीं आई.

Ranjib

प्रयागराज में संगम किनारे शुरू हो रहे कुंभ मेला से दो दिन पहले लखनऊ में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी के सियासी संगम का ऐलान कर मायावती और अखिलेश यादव ने गए ढाई दशक में उत्तर प्रदेश की सियासत के सबसे धमाकेदार घटनाक्रम की बुनियाद रख दी है. इसकी गूंज दूर तक जाएगी, यह तय है. भारतीय जनता पार्टी के नेता इसे सांप और नेवले का गठजोड़ भले करार दें लेकिन 2019 में केंद्र में फिर से बीजेपी की सरकार बनने की राह में यूपी की 80 लोकसभा सीटों का यह गठबंधन ही सबसे बड़ा रोड ब्लॉक होगा, इसमें कोई संदेह नहीं.

खास बात यह है कि बीएसपी और एसपी के बीच हुआ यह गठबंधन बराबरी की बुनियादी पर खड़ा किया गया है. न सिर्फ दोनों पार्टियों ने आपस में बराबर संख्या में सीटें बांटी हैं बल्कि लखनऊ में हुई जिस प्रेस कांफ्रेंस में मायावती और अखिलेश यादव ने गठबंधन की घोषणा की उसमें बराबरी और एक-दूसरी की भावनाओं का ख्याल रखने की झलक के साथ कई अन्य चीजों में भी दिखीं.


दोनों दलों के सूत्रों का कहना है कि गए कुछ महीनों में मायावती और अखिलेश यादव के बीच हुए संवाद के बाद 4 जनवरी को नई दिल्ली में दोनों नेताओं की जिस बैठक में गठबंधन के अंतिम फार्मूले को अंजाम दिया गया, उसकी बारीकियों में दोनों ओर से सहयोगी को बराबर की तवज्जो देने के भाव लगातार मौजूद रहे. यही वजह है कि 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम ने एसपी-बीसपी का जो गठबंधन किया था, उसमें सियासी अंकगणित के तत्व ज्यादा थे जबकि मायावती और अखिलेश के गठबंधन में सियासत के गणित के साथ भावनात्मक केमिस्ट्री भी भरपूर है.

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स्वाभाविक ललक

बीते साल गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा सीटों के उपचुनाव में गठबंधन कर बीजेपी को हराने के बाद अखिलेश ने लखनऊ में मायावती से उनके घर जाकर धन्यवाद कहा था. जानकार बताते हैं कि उस मुलाकात में दोनों नेताओं की एक-दूसरे के प्रति गर्मजोशी ने ही गठबंधन के लोकसभा चुनाव तक जाने का संदेश दे दिया था. दोनों खेमों के विश्वस्त नेताओं के जरिए संवाद का यह सिलसिला जारी रखा गया और आखिरकार गठबंधन की बुनियाद पड़ गई. गठबंधन करने की स्वाभाविक ललक दोनों ओर से कितनी थी यह साझा प्रेस कांफ्रेंस में तब और स्पष्ट हुई जब देश और जनहित के हवाला देते हुए मायावती ने 1995 के बहुचर्चित गेस्ट हाऊस कांड को तवज्जो न देने की बात कही. वहीं अखिलेश ने अपने कार्यकर्ताओं के लिए कहा कि वे ध्यान रखें कि मायावती का अपमान अखिलेश यादव का अपमान है. लिहाजा बीसपी प्रमुख के सम्मान का पूरा ध्यान रखा जाए. दोनों नेताओं का यह रुख अतीत को भुलाकर आगे बढ़ने का संकेत दिया गया.

सीटों की संख्या में भी बराबरी का ध्यान रखा गया. हालांकि लगातार यह कयास लग रहे थे कि बीएसपी ने गठबंधन में एसपी से ज्यादा सीटें लड़ने की मांग रखी है. कई मौकों पर अखिलेश यह कह भी चुके थे कि वे दो कदम पीछे हटने को भी तैयार हैं लेकिन प्रेस कांफ्रेंस में मायावती ने घोषणा की कि दोनों पार्टियां बराबर की संख्या में 38-38 सीटों पर लड़ेंगी. जिस पर अखिलेश ने अपनी बात कहते हुए बराबर का सम्मान देने के लिए मायावती के प्रति आभार जताया. इतना ही नहीं लखनऊ की सड़कों पर लगे बैनर, प्रेस कांफ्रेंस में मंच पर लगा बैनर, दोनों नेताओं का अपनी बात कहने का तरीका और यहां तक कि एक-दूसरे को सौंपे गए गुलदस्तों में भी बराबरी के भाव का भरपूर ध्यान रखा गया.

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मसलन बैनरों में नीले और लाल रंग के आधे-आधे बंटे हिस्सों में मायावती और अखिलेश की तस्वीरें लगाना, मायावती की ओर से अखिलेश को दिए गए गुलदस्ते का रैपर बीएसपी के नीले रंग का होना जबकि अखिलेश की ओर से दिए गए गुलदस्ते का रैपर लाल होना लेकिन दोनों ही गुलदस्तों में एक ही किस्म के पीले रंगों के फूल देने का खास ध्यान रखना भी बता रहा था कि दोनों नेता इसका भरपूर ध्यान रख रहे हैं कि दोनों ओर के कैडर जमीन पर भी बराबरी के साथ मिलकर काम करें. मायावती अपनी प्रेस कांफ्रेंसों में पहले से लिखा हुआ बयान पढ़ती हैं. जबकि अखिलेश मौके पर अपनी बात कहते हैं. साझा प्रेस कांफ्रेंस में मायावती ने हमेशा की तरह पहले से लिखा हुआ पढ़ा जबकि अखिलेश ने अपनी परंपरा से हटते हुए मायावती की तरह ही लिखा हुआ बयान पढ़ा. इसे भी संतुलन बनाए रखने का प्रयास ही माना जा रहा.

वोट प्रतिशत में कमी नहीं

मायावती और अखिलेश यह बखूबी जानते हैं कि शीर्ष पर आपसी बराबरी का संदेश ही नीचे जमीन पर भी दोनों ओर के कार्यकर्ताओं के कंधे से कंधा मिलाकर जुटने को प्रेरित करेगा. क्योंकि ऐसा न हुओ तो ऊपर से बना गठबंधन जमीन पर कारगर नहीं हो जाएगा. एसपी के कोर वोट बैंक यादवों और बीएसपी के मूल आधार समूह दलितों के बीच मजबूत जमीनी एकता बने यह दोनों दलों के लिए जरूरी है. तभी पिछड़ों, दलितों और मुस्लिमों का मजबूत सामाजिक समीकरण बनाकर मायावती और अखिलेश 2019 का राजनीतिक लक्ष्य भेद पाएंगे. दोनों नेताओं को पता है कि 2014 और 2017 में यूपी में बीजेपी के हाथों मात खाने के बावजूद बीएसपी और एसपी के वोट प्रतिशत में कमी नहीं आई और इसे जोड़ दिया जाए तो बीजेपी को पटकनी दी जा सकती है. गठबंधन का ऐलान उसी लक्ष्य की ओर पहला कदम है. अब हर मंडल मुख्यालय पर मायावती और अखिलेश की संयुक्त रैलियों की तैयारी है. ताकि दोनों दलों के कार्यकर्ता मिलकर रैलियों की तैयारी करें और उनका साथ चुनाव में बूथों तक बना रहे.