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क्या सोशल मीडिया पर लड़ा जाएगा अगला लोकसभा चुनाव?

देश का हर पांचवा आदमी सोशल मीडिया प्लेफॉर्म पर है. राजनीतिक दल अपनी चुनावी रणनीति में देश की इस नई हकीकत को ध्यान में रख रहे हैं!

Dilip C Mandal

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनावों के बारे में पहले कहा जाता था कि वे टीवी स्टूडियो में लड़े जाते हैं. टीवी बहस में अच्छी परफॉर्मेंस के आधार पर न सिर्फ वहां दोनों प्रमुख दलों के उम्मीदवार फाइनल होते हैं, बल्कि आखिरी फैसले को भी टीवी डिबेट प्रभावित करते हैं. लेकिन 2008 के अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में यह बदल गया. इस समय तक अमेरिका में डिजटल और सोशल मीडिया बहुत असरदार हो चुका था और यह कहा जाने लगा कि अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव सोशल मीडिया पर लड़ा जाता है.

इस चुनाव के बारे में प्रमुख मार्केट रिसर्च संस्था प्यू रिसर्च का अध्ययन बताता है कि अमेरिका के हर चार में से तीन इंटरनेट यूजर ने इस चुनावी बहस में इंटरनेट के जरिए हिस्सा लिया या इंटरनेट से चुनाव संबंधी सूचनाएं लीं. यानी, कुल मिलाकर 55 फीसदी अमेरिकी मतदाता इस चुनाव में इंटरनेट के माध्यम से भी सक्रिय रहे. प्यू रिसर्च के मुताबिक, अमेरिका के इतिहास में 2008 में पहली बार आधे से ज्यादा मतदाताओं ने अपनी राय बनाने के लिए इंटरनेट का इस्तेमाल किया.


क्या अमेरिका का ट्रेंड भारत में भी नजर आएगा?

2008 के बाद अमेरिका में दो राष्ट्रपति चुनाव हो चुके हैं और अब यह बात निर्णायक रूप से कही जा सकती है कि अमेरिकी राजनीति में इंटरनेट और सोशल मीडिया पूरी तरह आ चुका है. राजनीतिक दल अपने सारे बयान सोशल मीडिया पर जारी कर रहे हैं. वहां बहसों की लोकेशन शिफ्ट हो चुकी है और टीवी स्टूडियो की जगह सोशल मीडिया ने ले ली है.

चुनाव के मुद्दे सोशल मीडिया में उठाए जा रहे हैं और बहसें भी वहीं सबसे ज्यादा हो रही हैं. अमेरिका में हुए आखिरी राष्ट्रपति चुनाव का सबसे बड़ा स्कैंडल भी सोशल मीडिया के मैनुपुलेशन के जरिए पब्लिक ओपिनियन को प्रभावित करने के आरोपों को लेकर है. इसके तार रूस से जुड़े पाए जा रहे हैं. हालांकि इस बारे में अभी जांच जारी है. अमेरिकी चुनाव में सोशल मीडिया के असर का यह एक बड़ा प्रमाण है.

क्या भारत भी राजनीतिक प्रचार के मामले में अमेरिका के रास्ते पर जा रहा है? क्या भारत में भी चुनाव सोशल मीडिया पर लड़े जाएंगे? क्या यह 2019 में हो जाएगा? इस सवाल का जवाब खोजने से पहले जरूरी है कि भारत और अमेरिका में इंटरनेट और सोशल मीडिया के परिदृश्य की एक तुलनात्मक तस्वीर देख ली जाए. दोनों देशों में इंटरनेट के आने के समय को लेकर फर्क है. अमेरिका उन देशों में हैं, जहां इंटरनेट सबसे पहले आया.

अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस में रिसर्च सेंटर के कंप्यूटरों के बीच आपसी संवाद के तरीकों की तलाश से यह टेक्नोलॉजी विकसित हुई. अमेरिकी रक्षा संस्थान पेंटागन द्वारा संस्थाओं के बीच आंतरिक कम्युनिकेशन के लिए बनाया गया नेटवर्क अरपानेट ही काफी हद तक आगे चलकर इंटरनेट बन गया. हालांकि इसमें कई देश की कई संस्थाओं का योगदान है. मिसाल के तौर पर, वर्ल्डवाइड वेब या www को बनाने का श्रेय स्विट्जरलैंड की लैबोरेटरी सर्न को जाता है. अमेरिका, यूरोप और ऑस्ट्रेलिया में यह सब सत्तर, अस्सी और नब्बे के दशक में हो चुका था.

क्या अब भारत की बारी है?

भारत में इंटरनेट देर से आया. तब तक दुनिया में ईमेल होने लगे थे. सर्च इंजन और ब्राउजर आ चुके थे. 1995 में विदेश संचार निगम लिमिटेड यानी वीएसएनएल ने भारत में कमर्शियल इंटरनेट की शुरुआत की. दुनिया के बाकी देशों के मुकाबले यह एक सुस्त शुरुआत थी.

लेकिन सोशल मीडिया के मामले में भारत दुनिया के लगभग साथ-साथ चला. फेसबुक और ट्विटर दोनों अमेरिका में डेवलप हुए, लेकिन वे सारी दुनिया के लिए एक साथ उपलब्ध हुए. इन प्लेटफॉर्म से जुड़ने के मामले में भौगोलिक और देश की सीमाएं  बाधक नहीं रहीं.

भारत में आज 27 करोड़ से ज्यादा फेसबुक यूजर हैं. ट्विटर से जुड़े लोगों की संख्या लगभग ढाई करोड़ है. जबकि ह्वाट्सऐप इन दोनों से भी तेज दोड़ा और 2009 में बाजार में आने के बाद आज इसके यूजर्स 20 करोड़ से ज्यादा हैं. ह्वाट्सऐप के बढ़ने की रफ्तार सबसे तेज है. भारत सोशल मीडिया कंपनियों के सबसे बड़े बाजारों में शामिल है.

हर पार्टी सोशल मीडिया पर सक्रिय

अमेरिका की ही तरह भारत में भी अमूमन हर राजनीतिक पार्टी और हर नेता सोशल मीडिया पर सक्रिय है. नरेंद्र मोदी के ऑफिशियल फेसबुक पेज को 4.30 करोड़ लोगों ने और राहुल गांधी के फेसबुक पेज को 17 लाख लोगों ने लाइक किया है. अखिलेश यादव पेज को लाइक करने वाले 67 लाख और तेजस्वी यादव के पेज को लाइक करने वाले 11 लाख लोग हैं. ट्विटर पर नरेंद्र मोदी को 4.2 करोड़ लोग तो राहुल गांधी को 70 लोग फॉलो करते हैं.

आप देख सकते हैं बीजेपी और खासकर नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया पर ज्यादा लोकप्रिय हैं. इसकी कई वजहें हैं. मिसाल के तौर पर प्रधानमंत्री के व्यक्तित्व की चमक और उनका मुखर होना इसकी एक बड़ी वजह हो सकती है.

प्रधानमंत्री बनने से पहले ही नरेंद्र मोदी सोशल मीडिया पर काफी लोकप्रिय हो चुके थे. इसके अलावा यह भी मुमकिन है कि सोशल मीडिया में लोकप्रिय होने को नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने जितनी गंभीरता से लिया, वह समझ बाकी राजनीतिक दलों में देर से विकसित हुई.

2014 के चुनावों में जमकर हुआ था सोशल मीडिया का इस्तेमाल

2014 के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दलों ने सोशल मीडिया का जमकर इस्तेमाल किया. हालांकि बीजेपी इस रेस में आगे रही क्योंकि उसने इस मीडियम के महत्व को पहले पहचाना और अपने संसाधन इस पर लगाए.

अब कोई भी पार्टी इस मीडियम को इग्नोर नहीं कर रही है. लगभग हर पार्टी के आईटी सेल हैं, जो डिजिटल मीडियम पर पार्टी की बात को फैलाने और विरोधियों का मुकाबला करने में जुटे हैं.

यह मामला पार्टी समर्थकों और कार्यकर्ताओं से आगे निकल चुका है और इसमें सोशल मीडिया एक्सपर्ट और कंपनियां लगी हैं. पार्टी के पक्ष वाले कंटेंट को वायरल करने की योग्यता वाले साइबर विशेषज्ञ लगातार मुद्दे तलाशते रहते हैं और उसके अनुरूप रिएक्ट करते हैं.

इसी पृष्ठभूमि में यह सवाल उठता है कि 2019 के लोकसभा चुनाव में सोशल मीडिया किस तरह की भूमिका अदा करेगा.

भारत में टीवी, प्रिंट और डिजिटल मीडियम के तरक्की की जो रफ्तार है, उसे देखते हुए अनुमान लगाया जा सकता है कि 2019 तक भी टीवी सबसे लोकप्रिय समाचार और संवाद माध्यम बना रहेगा. प्रिंट की तरक्की की रफ्तार कम है. डिजिटल मीडियम सबसे तेजी से बढ़ रहा है, लेकिन बढ़ने की ताजा रफ्तार के साथ वह 2019 में प्रिंट और टीवी दोनों से छोटा ही रहेगा.

इसके बावजूद पार्टियां डिजिटल और सोशल मीडियम पर सबसे ज्यादा जोर इसलिए दे रही हैं क्योंकि यह मीडियम युवाओं के हाथ में हैं और समाज में राय बनाने में इनकी बड़ी भूमिका है. साथ ही, डिजिटल माध्यम में दोतरफा और बहुआयामी संवाद होता है. इसमें कई लोग कई लोगों से बात करते हैं. इसमें ग्रुप बनाने की भी सुविधा है. इस वजह से लोगों की राय बनाने में ये ज्यादा प्रभावी है.

डिजिटल मीडियम खबरें और विचार तुरंत लोगों तक पहुंचाता है और इसमें कटेंट की कोई सीमा नहीं है. इसके जरिए एक ही बात को शब्दों और ऑडियो-विडियो तथा ग्राफिक्स के जरिए पहुंचाया जा सकता है. इसमें सर्च की सुविधा के कारण सामग्री को बाद में और बार-बार देखना भी मुमकिन हो पाता है. राजनीतिक दल एक ही चीज को अलग अलग तरीके से और कई बार लोगों तक इसके माध्यम से पहुंचा रहे हैं.

अभी जो संकेत हैं, उससे लगता है कि 2019 का लोकसभा चुनाव बेशक सोशल और डिजिटल मीडिया पर जीता नहीं जाएगा, लेकिन चुनाव के दौरान लोगों की राय को प्रभावित करने में इसकी बड़ी भूमिका होगी. इसे अनदेखी करने वाले दल घाटे में रहेंगे.