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दलितों की नाराजगी दूर करने की कोशिश, मेरठ सम्मेलन से माहौल सुधारेगा संघ!

सहारनपुर से सटे मेरठ में 25 फरवरी को संघ की तरफ से अबतक का सबसे बडा सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है

Amitesh

लोकसभा चुनाव से एक साल पहले से ही आरएसएस काफी सक्रिय हो गया है. संगठन विस्तार के नाम पर संघ प्रमुख का लगातार उन राज्यों में दौरा हो रहा है जहां की मजबूती बीजेपी की हालत को लोकसभा चुनाव से पहले और बेहतर कर देगी.

पिछले लोकसभा चुनाव में मोदी लहर के बीच भले ही संघ की सक्रियता को कमतर आंका गया हो, लेकिन संगठन की चुस्ती और सभी स्वयंसेवकों की नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी के लिए की गई दिन-रात मेहनत से इनकार नहीं किया जा सकता. अब एक बार फिर से संघ 2019 के पहले उसी राह पर चल पड़ा है और इस बार भी सभी लूपहोल को खत्म करने का बीड़ा उठाया है संघ प्रमुख मोहन भागवत ने.


संघ प्रमुख मोहन भागवत के सामने इस वक्त सबसे बड़ी चुनौती है संघ परिवार और बीजेपी के राज में दलित-विरोधी छवि से बाहर निकलने की. गुजरात के उना की घटना हो या महाराष्ट्र के कोरेगांव की घटना यह सबकुछ संघ के समरसता के एजेंडे पर ब्रेक लगाने वाला रहा है.

सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में तो योगी सरकार बनने के कुछ ही महीने बाद सहारनपुर की घटना ने तो पूरे सामाजिक समीकरण को ही तार-तार कर रख दिया. दलितों और ठाकुरों की लड़ाई ने बीजेपी के साथ-साथ संघ परिवार को भी परेशान कर दिया था. लेकिन अब संघ की तरफ से तैयारी उन सभी समीकरणों को वापस पटरी पर लाने की हो रही है.

मेरठ में संघ का सबसे बड़ा कार्यक्रम

सहारनपुर से सटे मेरठ में 25 फरवरी को संघ की तरफ से अबतक का सबसे बडा सम्मेलन आयोजित किया जा रहा है. इसमें मेरठ, मुरादाबाद और सहारनपुर कमिश्नरी के 14 जिलों और संघ के हिसाब से 25 जिलों के सभी 987 मंडल से स्वयंसेवक पहुंचने वाले हैं.

इस पूरे इलाके में 10580 गांव हैं और हर गांव से हर तबके से लोगों को लाने की तैयारी है. अबतक 3 लाख 12 हजार लोगों ने इस कार्यक्रम में आने के लिए पंजीकरण करा लिया है. यह सभी स्वयंसेवक अपने परंपरागत गणवेश में मेरठ के सम्मेलन में भाग लेने पहुंचेंगे. इस सम्मेलन में संघ प्रमुख मोहन भागवत के  अलावा धर्मगुरु अवधेशानंद गिरि जी भी मौजूद रहेंगे.

मेरठ प्रांत के प्रचार प्रमुख अजय मित्तल ने फ़र्स्टपोस्ट से बातचीत में बताया कि ‘इस सम्मेलन का मकसद हिंदू समाज के भीतर जाति के बंधन को खत्म करने के अलावा हिंदू समाज को मजबूत और एकजुट करना है. उनका कहना है कि यह सम्मेलन किसी दूसरे के विरुद्ध नहीं है, लेकिन, इसका मकसद हिंदू को राष्ट्रवादी बनाना है.’

दलितों को साधने की कोशिश

दरअसल, अगले चुनाव से पहले संघ फिर से समरसता स्थापित करने की तैयारी में है. एक बार फिर वही फार्मूला एक मंदिर, एक कुंआ, एक श्मशान. यानी हिंदू समाज को एकजुट करने की तैयारी और समाज में बराबरी का भाव देकर दलित और पिछड़े समाज के भीतर बराबरी का बोध कराना है.

संघ को लग रहा है कि सहारनपुर में दलित समाज के साथ पिछले साल मई में हुई हिंसा और उसके बाद के हालात के बाद उस समुदाय में रोष बढ़ा है. खासतौर से भीम आर्मी की बढ़ती सक्रियता ने संघ की चिंता बढ़ा दी है. लिहाजा इस तरह के सम्मेलन से उस गलतफहमी को दूर करने की कोशिश हो रही है.

मेरठ के जागृति विहार एक्सटेंशन में आयोजित होने वाले इस सम्मेलन में तीन लाख से ज्यादा लोगों के आने की संभावना है, लिहाजा यहां 650 एकड़ में सभी स्वयंसेवकों के बैठने की व्यवस्था बनाई गई है. इस मैदान में एक किलोमीटर चौड़ी और ढ़ाई किलोमीटर लंबी बैठने की व्यवस्था होगी, जिससे स्वयंसेवक यहां अपना शारीरिक अभ्यास कर सकेंगे.

जबकि 600 एकड़ के दूसरे भू-भाग में गाडियों के पार्किंग की व्यवस्था बनाई गई है. करीब चार हजार बसों के अलावा और भी गाडियों के पार्किंग की व्यवस्था की गई है. इसके अलावा मुख्य मंच 35 फीट की उंचाई पर बनाया गया है, फिर भी ढाई किलोमीटर पीछे तक देख सकने के लिए 25 से 30 एलईडी स्क्रीन भी लगाई जा रही है.

सम्मेलन में भाग लेने वाले सभी स्वयंसेवक अपने यहां से खाने का दो-दो पैकेट लेकर आएंगे, लेकिन, कोई अपना खाना नहीं खाएगा. अलग-अलग वर्ग के लोगों के घर से खाने आएंगे और उसे सभी खाएंगे. इससे समाज के हर वर्ग में एक अच्छी भावना का प्रवाह होगा.

पहले से भी संवेदनशील रहा है पश्चिमी प्रांत

पश्चिमी यूपी वैसे भी काफी संवेदनशील इलाका रहा है. मुजफ्फर नगर में पहले भी  हिंसा हो चुकी है. अभी हाल ही में कासगंज की हिंसा के चलते भी यूपी में तनाव देखने को मिल रहा था. पिछले लोकसभा चुनाव में ध्रुवीकरण का फायदा बीजेपी  को हुआ था. लेकिन, अब दलित समुदाय के भीतर सहारनपुर की घटना के बाद थोड़ी नाराजगी देखने को मिल रही है. ऐसे में इस तरह के कार्यक्रम से फिर से संघ परिवार की कोशिश हिंदू समाज को एकजुट कर उस नाराजगी को दूर करने की है. जिससे अगले साल के चुनाव से पहले कड़वाहट को दूर किया जा सके.

26 जनवरी को कासगंज में भड़की हिंसा की एक तस्वीर

बिहार में भी संघ के विस्तार की कोशिश

हालांकि, 25 फरवरी के  मेरठ के कार्यक्रम से पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत अभी दस दिनों के बिहार प्रवास पर हैं. इस दौरान लगातार संघ की शाखाओं में बढ़ोत्तरी और विस्तार पर उनका पूरा फोकस है. 14-15 फरवरी को आरएसएस की बिहार की कार्यकारिणी की बैठक का मसकद भी बिहार में संघ की जड़ों को मजबूत बनाना है.

बिहार पहले से भी संघ प्रमुख मोहन भागवत का कार्यक्षेत्र रहा है. लेकिन अब बतौर संघ प्रमुख वो बिहार के अलग-अलग भागों में स्वयंसेवकों के बीच नई उर्जा का संचार करने की कोशिश कर रहे हैं. बिहार में दक्षिण पंथ से ज्यादा समाजवादी के लोगों का पहले से वर्चस्व रहा है.

लेकिन अभी समाजवादी नीतीश कुमार के साथ बीजेपी फिर से सरकार में है. लिहाजा संघ को बिहार में भगवा किले को मजबूत करने का यह माकूल समय लग रहा है.

इस साल संघ काफी सक्रिय हो गया है. बिहार से लेकर यूपी तक संघ की सक्रियता से साफ है कि अगले लोकसभा चुनाव में भी संघ की पिछले लोकसभा चुनाव की तरह ही बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका रहने वाली है.