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व्यंग्य: ‘वंशवाद सत्ता संस्कार है और उसको फॉलो करना अनुशासन’

राजद के तीन दिनों के कार्यकर्ता शिविर से निकला लालू प्रसाद यादव का स्पष्ट संदेश

Kanhaiya Bhelari

आए थे हरिभजन को, ओटन लगे कपास. कुछ ऐसा ही नजारा रहा राष्ट्रीय जनता दल के तीन दिवसीय कार्यकर्ता प्रशिक्षण शिविर का. सर्वगुणी, सदाचारी, कर्मयोगी राजद पति लालू प्रसाद यादव के निमंत्रण पर देश भर से आए करीब 1500, जिनमें 95 परसेंट बिहारी थे, कार्यकर्ताओं ने 2 मई से 4 मई तक चले इस कार्यक्रम में शिरकत की.

राजद के इन कमिटेड शूरवीरों को सूचना थी कि भगवान बुद्ध की अल्पकालिक प्रवास नगरी राजगीर में होने वाला इस बार का प्रशिक्षण शिविर लीक से हटकर होगा-एकदम ज्ञानवर्धक.


सबकुछ पुरानी लीक पर ही रेंगता रहा

शिविर की तस्वीर

कार्यकर्ताओं को ‘संस्कार’ ठीक करने और अनुशासन में रहने का मुकम्मल पाठ पढ़ाने के लिए भाषण विद्या में दक्ष आर्यावर्त के चुनिंदा ‘गुरुजनों’ को भी शिविर निमंत्रित किया गया था.

लेकिन ऐसा कुछ भी देखने-सुनने को नहीं मिला. सबकुछ पुरानी लीक पर ही रेंगता रहा. मसलन, हर बार की तरह इस बार भी कार्यकर्ताओं ने अपने मर्मज्ञ सूरमा लालू प्रसाद यादव की स्वादिष्ट स्पीच का प्रेम से कर्णभोग लगाया.

बाकी नेताओं के बासी भाषणों को ऊंघते हुए सुना. लजीज शुद्ध शाकाहारी ब्रेकफास्ट और भोजन का लुत्फ उठाया और जरासंध के नगर का भ्रमण कर एकमात्र मैसेज-‘लाठी और कंप्यूटर साथ रखना है और तेजस्वी प्रसाद यादव को सीएम बनाना है’- को दिल और दिमाग में लॉक करके अपने-अपने घर लौटने का काम किया.

अंग प्रदेश के बाशिंदा एक बुजुर्ग कार्यकर्ता का कहना है कि ‘मैं तो सिर्फ तीर्थाटन के लिहाज से शिविर में भाग लेने आया हूं. पुराणों के अनुसार हिंदू के हजारों देवी-देवताओं का यहां वास होता है. मान्यता है कि जिंदगी में एक बार भी जो इस धाम को धांग देता है वो स्वर्ग में अपनी बर्थ कंफर्म करा लेता है. मेरा तो कंफर्म हो गया.’

वो अंगिका भाषा में शिविर के मूल उदेश्य के बारे में समझाते हैं, ‘अनुशासन का पाठ पढ़ाना त एक ठो बहाना है, लालू जी आपनौ समर्थकों सनी कै ई सनेस दैल चाहे छै कि भविष्य कै राजा हमरे बंशज छै.’

‘मेहनत कोई और करे और मलाई कोई और खाए, अब यह नहीं चलेगा’

बासी माहौल में भी कार्यकर्ताओं ने अपने ‘युवराज’ तेजस्वी प्रसाद यादव के राजनीतिक भाषण को गंभीरता से सुना. बिहार के उपमुख्यमंत्री और लालू के छोटे लाल तेजस्वी प्रसाद यादव ने अपने भाषण को जब ओजस्वी धार दी-‘मेहनत कोई और करे और मलाई कोई और खाए, अब यह नहीं चलेगा’- तब कार्यकर्ताओं का जोश परवान पर था क्योंकि अब वो पूरी तरह से समझ चुके थे कि माजरा क्या है?

तेजस्वी ने आगे कहा ‘ मेरी रगों में मेरे पिता का खून है इसलिए ताउम्र उनके बताए व बनाए रास्तों को फॉलो करूंगा.’ इंटरनेशनल कंवेन्शन सेंटर में एकत्रित जमात ने तालियों की गड़गड़ाहट से उनके इस ‘क्रांतिकारी’ कथन का स्वागत किया.

मगध क्षेत्र का एक खांटी लालू भक्त चहकते हुए बड़बड़ाता है, ‘हमर के पता चल गलउ कि हमें हमारे कृष्ण ने राजगीर में उस अखाड़े के पास काहे को जुटने को पत्र भेजा जहां जरासंध का वध हुआ था?' सनद रहे कि बिहार में एक समाज के लोग लालू प्रसाद यादव को कृष्ण का ‘अवतार’ मानते हैं.

बतौर गेस्ट अपीयरेंस शरीक हुए शिवानंद तिवारी ने घुट्टी पिलाई ‘तख्त पर काबिज होना है तो सोच का दायरा बढ़ाना होगा. यादव और अकलियत वोट तक अपने को सीमित रख कर लक्ष्य को हासिल नहीं किया जा सकता है. हमें जिन्न को भी अपने साथ जोड़ना होगा जो हमसे किसी कारणवश दूर चले गए हैं.’

1995 विधानसभा का चुनाव लालू प्रसाद यादव ने जिन्न के प्रचंड सपोर्ट से जीता था जो बाद के दौर में नीतीश कुमार के साथ सट गए थे. जिन्न का मतलब है अति पिछड़ा जाति. पूर्व सांसद जगदानंद ने कार्यकर्ताओं को 2019 में होने वाली चुनावी महाभारत की तैयारी में लग जाने का आह्वान किया.

बड़े ही होशियाराना और चेतावनी भरे अंदाज में राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता मनोज झा ने कहा ‘हमारे अपने भी यूपी के चुनाव में हमसे भितरघात कर चुके हैं. इसे भी हमें हल्के में नहीं लेना चाहिए.’ संभव हो मनोज झा का इशारा नीतीश कुमार की तरफ हो जिन्होंने पूरी तैयारी के बाद भी अपने को यूपी चुनाव से अलग रखा.

नीतीश कुमार पर रघुवंश सिंह का निशाना

रघुवंश प्रसाद सिंह ने तो यहां तक कह दिया ‘हमें अपनी सरकार को भी देखना होगा कि आखिर 70 हजार होमगार्ड जवान हड़ताल पर क्यों हैं, लाखों आंगनबाड़ी सेविकाएं अपना कलेजा क्यों पीट रहीं हैं और राज्य के शिक्षक परेशान क्यों हैं?’

हालांकि रघुवंश बाबू पहले भी बाकायदा बयान देकर आरोप लगा चुके हैं कि नीतीश कुमार यूपी में बीजेपी की मदद करने की तैयारी कर रहे हैं. शिविर में शामिल कई नेताओं और कार्यकर्ताओं के दिल में उठ रही ये टीस प्रकट है कि नीतीश कुमार उनके नेता को लंगड़ी मार रहे हैं.

बहरहाल, बिहार में महागठबंधन की सरकार बने 17 महीने बीत चुके हैं. ऊपर से देखने में लगेगा कि सब कुछ ठीक-ठाक है. पर सच्चाई है कि गाड़ी पटरी से नीचे पिछले 6 महीने से चल रही है. तालमेल का घोर अभाव बरकरार है. आए दिन राजद और जदयू के नेता एक-दूसरे के खिलाफ तल्ख बयानबाजी करते रहते हैं.

कुछ दिन पहले ही नीतीश कुमार के खासमखास, जदयू के वरिष्ठ नेता व एमपी, आरसीपी सिंह ने कहा ‘मेरा दल परिवारवाद का समर्थन नहीं करता है और जिस नेता पर भ्रष्टाचार का आरोप लगा है उसका बचाव वे (राजद) स्वयं करें.’

जवाब में राजद विधायक भाई वीरेंद्र ने कहा ‘ जिसका बेटा लायक होगा वही न परिवारवाद करेगा. हमलोग जानते हैं कि आरसीपी सिंह ऐज यूपी के ब्यूराक्रेट कितना माल मारे हैं.’ फिर जदयू के प्रवक्ता और एमएलए संजय सिंह ने भाई वीरेन्द्र को संपोला बताया और उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग उठाई.

गली-गली में शोर था कि राजद के त्रिदिवसीय प्रशिक्षण शिविर में काडर को इस बात की पुख्ता ट्रेनिंग दी जाएगी की वो कैसे अपने जुबान को काबू में रखें. जुदा हुए जमात के लोगों को वापस लाएं और बदलते परिवेश में अपने चाल-ढाल को बदलें.

लेकिन आमंत्रित अतिथियों क्रमशः प्रोफेसर पुरुषोतम अग्रवाल, इमरान प्रतापगढ़ी, पत्रकार दिलीप मंडल, प्रोफेसर अरुण कुमार और पत्रकार जयशंकर गुप्त ने अपने तार्किक, मार्क्सवादी और लोहियावादी विचारों से कार्यकताओं को रूबरू कराया और अपने ‘रिवोलूश्नरी’ प्रवचन को मोदी सरकार को कोसने और मीडिया में खामियां तलाशने तक ही सीमित रखा.

अपेक्षा थी कि ये गुरुजन कार्यकर्ताओं को गांधी, लोहिया, जेपी और कर्पूरी ठाकुर के गुणों से अवगत कराएंगे. इस पर राजद के बुद्धिजीवी प्रकोष्ठ के एक सदस्य का कहना है, 'इन महापुरुषों का फोटो घर-दुआर के दिरखा पर रखकर अगरबत्ती दिखाइए, यहां तो लालू नाम केवलम. आपको लौकता नहीं है पूरा राजगीर लालूमय हो गया है.'

बहरहाल, एक कार्यकर्ता की रोचक प्रतिक्रिया ‘मेरा मनोरथ पूरा हो गया क्याकि मैं तो यहां आकर सीख लिया कि सत्ता-संस्कार क्या बला है और अनुशासन का मतलब है वंशवाद का आंख मूंदकर समर्थन करते रहना.’