view all

नोटबंदी: नाकामी में सरकार चित भी मेरी, पट भी मेरी कर रही है

सरकार को उम्मीद थी कि कालाधन रखने वाले लोग बंद की गई 500 और 1,000 की करेंसी का एक बड़ा हिस्सा नालों में बहा देंगे

Sandipan Sharma

नरेंद्र मोदी सरकार के हाथ लगता है मशहूर फिल्म शोले के जय (अमिताभ बच्चन) का सिक्का लग गया है. यह चाहे जैसे भी उछाला जाए, सरकार दावा करती है कि जीत उसी की हुई है. नोटबंदी के नतीजे इस बात का हालिया उदाहरण हैं कि सरकार ‘चित भी मेरी, पट भी मेरी’ के सिद्धांत पर चल रही है.

लेकिन, इकनॉमी कोई सिनेमा नहीं है. ऐसे में यह मत मानिए कि सरकार यह उम्मीद बांध कर चल रही थी कि नोटबंदी में तकरीबन पूरी करेंसी रिजर्व बैंक के पास वापस लौट आएगी. आरबीआई ने कहा है कि बंद हुए नोटों का करीब 99 फीसदी हिस्सा उसके पास लौट आया है. सरकार को उम्मीद थी कि कालाधन रखने वाले लोग बंद की गई 500 और 1,000 की करेंसी का एक बड़ा हिस्सा नालों में बहा देंगे.


पीएम ने कहा था, गंगा में बहेंगे 1,000, 500 के नोट

सरकार के आशावाद का पहला संकेत किसी और से नहीं बल्कि खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से आया. नोटबंदी का फैसला लेने के चार दिन बाद 12 नवंबर 2016 को जापान में प्रधानमंत्री काफी उत्साहित नजर आ रहे थे. उन्होंने हंसते हुए कहा था, ‘घर में शादी है पर पैसे नहीं हैं.’

उसके बाद उन्होंने एक और महत्वपूर्ण बात कही, ‘पहले गंगाजी में कोई 1 रुपया भी नहीं डालता था, पर अब उसी गंगा नदी में 1,000, 500 के नोट बह रहे हैं.’ उनकी इस बात पर खूब तालियां बजीं.

पीएम हमसे क्या कह रहे थे? उस वक्त पीएम के दिए गए बयानों को सुनिए तो लगता है कि सरकार को पूरा भरोसा था कि भारतीय घरों में इतना कालाधन पड़ा हुआ है कि लोग किसी भी तरह से इससे छुटकारा पाने को बेकरार हैं, यहां तक कि वे इसे गंगा नदी में भी बहाने को राजी हैं.

इससे नोटबंदी करने के पीछे सरकार के मूल विश्वास का भी पता चलता है कि नोटबंदी के कदम से बड़ी मात्रा में पैसा सिस्टम में वापस नहीं लौटेगा और इससे सरकार को जबरदस्त फायदा होगा. हालांकि, सरकार अब इससे इनकार कर रही है जो अपनी बात से पलटने का क्लासिकल उदाहरण है.

आतंकी गतिविधियों पर लगाम लगने की उम्मीद थी

यह उम्मीद सरकार और नोटबंदी पर खुशी का इजहार करने वाले सर्मथकों द्वारा जाहिर की गई थी. नोटबंदी के पक्ष में तर्क देते हुए अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि सर्कुलेशन में मौजूद रकम करीब 15-16 लाख करोड़ रुपए है, सरकार को उम्मीद है कि लोगों ने 10-11 लाख करोड़ रुपए जमा करा दिए हैं. उन्होंने कहा था, ‘बकाया 4-5 लाख करोड़ रुपए को नॉर्थ-ईस्ट और जम्मू-कश्मीर में इस्तेमाल किया जा रहा था ताकि भारत में गड़बड़ी फैलाई जा सके. ऐसी गतिविधियों पर लगाम लग जाएगी.’

इस राय का आंशिक तौर पर समर्थन अर्थशास्त्री जगदीश भगवती ने भी किया था. भगवती को मोदी सरकार का समर्थन माना जाता है. उनका मानना था कि 8 नवंबर 2016 को सर्कुलेशन में मौजूद टोटल करेंसी का करीब एक-तिहाई हिस्सा ब्लैकमनी का है और इसमें से करीब 1 लाख करोड़ रुपए वापस नहीं लौटेंगे.

बढ़ा-चढ़ा कर पेश की गई ब्लैकमनी के खात्मे की बात 

अब यह निकल कर आया है कि ब्लैक मनी के खात्मे की यह कहानी कहीं ज्यादा बढ़ाचढ़ा कर पेश की गई. इसकी बजाय पता यह चला है कि मेहनत से कमाई गई या गलत तरीकों से हासिल की गई संपत्ति को भारतीय लोग नदियों-नालों में बहाने के उलट बैंकों में जमा कराने में सफल रहे हैं और इसके लिए उन्होंने कई इनोवेटिव तरीकों का सहारा लिया. आरबीआई की रिपोर्ट कि 99 फीसदी नोट वापस आ गए हैं, से यह बात साफ हो गई है.

सरकार ने अंधेरे में चलाया तीर

नोटबंदी का कदम अंधेरे में तीर चलाने जैसा साबित हुआ है. एक बड़ा बदलाव पैदा करने के चक्कर में मोदी सरकार ने हाथ में हथियार उठाकर चारों तरफ फायर करना शुरू कर दिया. इसके कुछ निशाने बताए गए, मसलन- ब्लैकमनी, नकली करेंसी और टेरर फंडिंग. लेकिन, सरकार इन सभी टारगेट्स से बुरी तरह चूक गई.

बंद की गई करेंसी का तकरीबन पूरा हिस्सा बैंकों में वापस लौट आया और इससे ब्लैकमनी पर लगाम लगाने की जिम्मेदारी आयकर विभाग के कंधों पर आ गई. साथ ही इससे आतंकी हमलों को भी रोकने में कोई बड़ी कामयाबी मिलती नजर नहीं आई है.

कैशलेस इकनॉमी का तर्क भी नहीं चला

पैसों के बैंकों में वापस लौटने की रफ्तार को देखते हुए चिंतित सरकार ने नोटबंदी की मुहिम के बीच में ही कहा था कि इस मुहिम का मकसद कैशलेस इकनॉमी का है. सरकार का यह तर्क भी बेमानी साबित हुआ क्योंकि कैशलेस ट्रांजैक्शंस अभी भी नोटबंदी के पहले के स्तर के करीब ही हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, वैल्यू टर्म में नवंबर 2016 में 94 लाख करोड़ रुपए के इलेक्ट्रॉनिक पेमेंट्स हुए, जो कि बढ़कर दिसंबर में 104 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गए और यह आंकड़ा मार्च 2017 में बढ़कर 149 लाख करोड़ रुपए हो गया. इसके बाद इसमें गिरावट आई और यह जुलाई में घटकर 107 लाख करोड़ रुपए रह गया. यह पांच महीने में सबसे न्यूनतम था.

अब चूंकि एक आम आदमी भी यह देख सकता है कि नोटबंदी का फैसला पूरी तरह से असफल साबित हुआ है, ऐसे में सरकार अब ऐसी उपलब्धियां गिनाने लगी है जो कि उसकी मूल योजना का हिस्सा भी नहीं थीं. केवल शोले के फैन ही सरकार के सफलता के दावों की कहानी पर तालियां बजा रहे हैं.