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व्यंग्य: लालू अवतारी पुरुष हैं, भक्तों का चढ़ावा स्वीकार करना उनका धर्म है

हर लालू भक्त को प्रतिदिन दो बार 'लालू भगवान की जय' जपना चाहिए

Kanhaiya Bhelari

बोलिए, बोलिए लालू भगवान की जय- आरजेडी के स्थापना दिवस में भाग ले रहे गंगा पार से आए कुछ अति उत्साहित गंवई नौजवानो ने जब ये नारा लगाया तो कई लोग चौंक गए. लेकिन पिछले 21 साल से आरजेडी ऑफिस में बतौर चपरासी काम कर रहे 65 वर्षीय एक दढ़ियल शख्स के लिए ये नारा सिर्फ नारा नहीं बल्कि इबादत का मंत्र है जो, उनके अनुसार, प्रत्येक लालू भक्त को 24 घंटे में कम से कम दो बार सुबह व शाम जपना चाहिए.

रात भर माथापच्ची के बाद अपन का बुद्धि भी दढ़ियल शक्स के मगज से निकले विचार को डीटो करने का मन बनाने लगा. फिर अपन ने सोचा कि जल्दी का काम शैतान का. अंतिम निर्णय तक पहुंचने से पहले गूगल बाबा की शरण में चलकर शोध कया जाए. फिर लालू प्रसाद के 40-45 वर्षों के राजनीतिक करियर को स्कैन किया तो यही निष्कर्ष निकला कि वाकई राजद सुप्रीमो उन सारे गुणों से लबरेज हैं जो कलयुग में भगवान की उपाधि प्राप्त करने के लिए होनी चाहिए.


पृथ्वी पर जीवित सभी धर्म के महाकाव्य इस तथ्य पर एकमत हैं कि भगवान करूणामय और समदर्शी होते हैं. जाति, गोत्र, रंग, भेद, ऊंच-नीच, धनी, गरीब और भाषा आदि देखकर वे कोई निर्णय नहीं लेते हैं. यूं कहें कि उनका ट्रीटमेंट सब जीवों के साथ बिना भेद-भाव के एक समान होता है. वे कभी डंडी नहीं मारते हैं. भगवान होने का यही मतलब होता है.

इस कसौटी पर कसकर देखिए तो लालू प्रसाद में भी साक्षात भगवान का अक्स दिखेगा. विरोधियों का तो काम ही है आरोप लगाना. हर युग में कई ऐसे नास्तिक हुए हैं जो अवतारी महापुरूषों पर नाना प्रकार के आरोप लगायें हैं. कलयुग भी इस आरोपी परंपरा से अछूता कैसे रह सकता है?

लालू भक्तों की माने तो वर्तमान काल में सुशील कुमार मोदी नामक एक दैत्य बिहार में पैदा हुआ है जो लालू भगवान की शक्ति को चुनौती देने का असफल प्रयास कर रहा है. जीवधारी मोदी को समझना चाहिए कि आज भी राज्य में 35 प्रतिशत जनता ऐसी है जो परमेश्वर लालू का एकटंगा जाप करती है. वो भक्त पूछते हैं कि कौन ऐसे भगवान हैं जिनको चढ़ावा नहीं चढ़ता है?

पोथी पतरा बांचने वाले पंडित हों, किसी राज्य के व्यापारी हों, मछर चालीसा का रचयिता हो, अपना सगा-संबंधी हो, घर के तबेले का चरवाहा हो, जवानी के दिनों के यार हों या फिर सत्ता के दौर के राजनीतिक दोस्त, हमारे देव लालू प्रसाद ने सबका चढ़ावा गदगद होकर स्वीकार किया और बदले में थोक भाव से भक्तों के कद-काठी के अनुसार सियासी पद और प्रतिष्ठा प्रदान किया. जो जिस अनुपात में दिया, वो उसी अनुपात में लिया. इसमें क्या गलत है? ऐसा करना पाप है?

नास्तिक प्रवृति के मोदी भगवान के इसी सदगुण लीला को लेन-देन का नाम देते हैं. मोदी स्वयं स्वीकारते भी हैं कि राजद चीफ व अवतारी पुरूष ने अपने कर्म में भक्तों के प्रति समान भाव और एक ही तरीका- मकान/जमीन दो और पद लो- अपनाया. इस तरह विरोधी होते हुए बीजेपी नेता और पूर्व उप मुख्यमंत्री मानते भी हैं कि लालू भगवान दंडी नहीं मारते हैं.

बहरहाल, बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी के पुख्ता आरोपों पर विश्वास करें तो इस तरीके से भक्तों के भगवान लालू प्रसाद ने अपने परिवार के नाम पर पिछले 25 वर्षों में 1000 करोड़ रुपए से अधिक की संपति अर्जित की है जो विभिन्न जांच एजेंसियों राडार पर है.

कागजात दिखाकर मोदी आरोप लगाते हैं कि लालू प्रसाद ने श्रीमती कांति सिंह को केंद्र सरकार में मंत्री बनाने के लिए अपने बेटे तेज प्रताप यादव और तेजश्वी प्रसाद यादव के नाम पर करोड़ों का मकान और 9 डिसमिल जमीन 2005 में दान करवा ली. कांति सिंह का लालू प्रसाद के साथ 70 के दशक से पारिवारिक रिश्ता है. अस्सी के दशक से परम मित्र रहे रघुनाथ झा ने 2005 में मनमोहन सरकार में राज्य मंत्री बनने के लिए अपना करोड़ों का तीन मंजिला मकान सहित एनएच के बगल में गोपालगंज में 6 कठ्ठा 5 धूर जमीन लालू प्रसाद के दोनो बेटों को दान दी.

उसी तरह ललन चौधरी जो लालू प्रसाद के तबेले में वर्षों से चरवाहें काम करता है उसको विधान परिषद में चपरासी की नौकरी तब मिली जब उसने राबड़ी देवी और बेटी हेमा यादव को करोड़ों की जमीन पटना में दान की. लालू प्रसाद के रेल मंत्री रहते हुए जमीन दान लेकर हृदयानंद चौधरी को खलासी की नौकरी दी.

आरोप है कि खास बड़े साले प्रभुनाथ यादव को भी कुछ खास किस्म का लाभ लेने के वास्ते अपना मकान जीजाजी को देना पड़ा. सुभाष चौधरी को जमीन लेकर नौकरी दी. सन 1992 में स्वर्गीय बृज बिहारी प्रसाद को अपने मंत्रिमंडल में सदस्य बनाने के एवज में लालू प्रसाद ने अपने तब 4 वर्षीय पुत्र तेज प्रताप यादव के नाम पर मुजफ्फरपुर के पास 13 एकड़ 12 डिसमिल जमीन ली. हालांकि लालू प्रसाद ने जुलाई 5 को इस एक आरोप का खंडन करते हुए कहा कि उन्होंने 15 महीने बाद ही दान को कैंसिल करा दिया था.

भक्तों का सुझाव है कि सुशील कुमार मोदी निष्पक्ष भाव से जांच करें तो उनको पता चलेगा कि देश भर में कई अवतारी महापुरूषों को चढ़ावे के रूप में जमीन दान की गई है. लेकिन मोदी तो कारोबारी समुदाय से आते हैं. उनको कैसे पता होगा कि काउ बेल्ट में बिचरने वाले मानव के लिए जर, जोरू और जमीन की क्या अहमियत है?